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मीरजापुर- सरकारी विज्ञापन में बेमिसाल पर सच्चाई में बदहाल

मीरजापुर। विकास के तमाम दावों के बीच मीरजापुर की जनता मूलभूत सुविधाओं के लिए आज भी परेशान है। ऊबड़-खाबड़ सड़क, बजबजाती नालियां, जल निकासी की समस्या, दूषित पेयजल आपूर्ति, गली और सड़कों पर फैली गंदगी, ‘सरकार के 9 साल बेमिसाल’ का दावा करने वालों को मुंह चिढ़ा रही हैं। सरकार के 9 साल बेमिसाल के […]

मीरजापुर। विकास के तमाम दावों के बीच मीरजापुर की जनता मूलभूत सुविधाओं के लिए आज भी परेशान है। ऊबड़-खाबड़ सड़क, बजबजाती नालियां, जल निकासी की समस्या, दूषित पेयजल आपूर्ति, गली और सड़कों पर फैली गंदगी, ‘सरकार के 9 साल बेमिसाल’ का दावा करने वालों को मुंह चिढ़ा रही हैं।

सरकार के 9 साल बेमिसाल के कथन पर तंज कसते हुए राष्ट्रवादी मंच के संयोजक मनोज श्रीवास्तव कहते हैं कि ‘सरकार कुछ भी कहे, पर हकीकत यह है कि मीरजापुर बेहाल, बदहाल और फटेहाल है। छोटे से मंडल मुख्यालय पर नेताओं की ‘करनी’ से जनता मर्माहत है। आखिर वह अपनी व्यथा किससे कहे? नेताओं की चुप्पी और उनके आंख, कान बंद कर लेने से विकास का पैसा तिजोरियों में भरा जा रहा है। इसकी जांच के साथ ही पाई-पाई की वसूली होनी चाहिये।’ वह कहते हैं कि ‘सरकार की तमाम योजनाएं जिले और नगर के नाम पर आती हैं। भारी-भरकम खर्च होता है, लेकिन नजारा जस का तस रह जाता है। पैसा हज़म और खेल ख़तम… का गेम लम्बे समय से जिले में चल रहा है। शास्त्री सेतु को जर्जर बताकर केवल धन समेटा जा रहा है। करोड़ों खर्च करके इस सेतु को बनने के कुछ माह बाद ही जर्जर होना भारी ‘गड़बड़’ का इशारा करता है। अब तीसरी बार मरम्मत की तैयारी है। जर्जर पुल के नाम पर 21 करोड़ खर्च लिखा जाएगा। पुल मरम्मत की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए। विकास के नाम पर लूट करने वालों की जांच कराकर अनैतिक रूप से लूटी गयी संपत्ति की वसूली किया जाए।’

विंध्यधाम जाने वाले मार्गों की हालत बदहाल

जिस विंध्याचल धाम को काशी और अयोध्या की तर्ज पर ‘कारीडोर’ के जरिए विकसित करने की कवायद तेजी से चल रही है, उसी धाम को जाने वाले प्रमुख मार्गों की हालत बद से बदतर हो चली है। खास करके, रेलवे पुलिया के नीचे बरसात और नालों का पानी एकत्र हो जाने से लोगों का विंध्याचल तक पहुंच पाना कठिन ही नहीं असाध्य हो जाता है। आश्चर्य की बात है कि मीरजापुर के नगर भाजपा विधायक रत्नाकर मिश्र इसी विंध्याचल के निवासी हैं। वह दूसरी बार नगर विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल में भी इस समस्या का निस्तारण करा पाने में वह असफल साबित हुए हैं। जिले में दो-दो मंत्री (एक केंद्र में दूसरे प्रदेश में) होने के बावजूद भी लंबित प्रमुख समस्याओं का निस्तारण न हो पाना शर्मनाक है। यही हाल अन्य जनप्रतिनिधियों का भी है, जो कोरे आश्वासनों के सिवाय कोई खास उपलब्धि हासिल नहीं कर पाए हैं। भाषणों में सरकार की योजनाओं में शुमार कुछ योजनाओं का उल्लेख अक्सर किया जाता है, लेकिन उन्होंने खास क्या किया है, इस सवाल पर उनकी भी बोलती बंद हो जाती है। जिले में कई ऐसी परियोजनाएं रही हैं, जिसकी नींव पूर्ववर्तीय सरकार में रखी गई थी या उन्हीं के कार्यकाल में इसकी घोषणा की गई थी, उन पर अमल कर विकास का ढिंढोरा पीटने वाले जनप्रतिनिधि आज भी जनता को लुभाते आ रहे हैं।

विंध्याचल देवी धाम जाने वाला ओझला पुल, जिसे नगर के सुविख्यात व्यापारी व समाजसेवी जयराम गिरी ने अपनी कमाई से निर्मित करवाया था, वह पर्यटन और वास्तुकला की दृष्टि से काफी अहम स्थान रखता है। मौजूदा दौर में जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा और पर्यटन विभाग की अदूरदर्शितापूर्ण नीतियों के चलते ओझला पुल अब जर्जर होकर ढहने के कगार पर है। बाहर से आने जाने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र यह पुल किसी कौतूहल से कम नहीं है। वर्ष के दोनों नवरात्र के दिनों में मात्र झालर की सजावट कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेने वाला स्थानीय प्रशासन भी इस ऐतिहासिक पुल (सराय) के जीर्णोद्धार की दिशा में उदासीन बना हुआ है। रख-रखाव और देख-भाल के अभाव में यह पुल पूरी तरह से नसेड़ियों-जुआड़ियों और अराजक तत्वों का अड्डा बन चुका है।

रेलवे अंडर ब्रिज के नीचे लगा बारिश का पानी

रेलवे अंडर ब्रिज बने हैं मुसीबत 

सरकार के 9 साल बेमिसाल अभियान पर सर्वप्रथम रेलवे अंडर ब्रिज पानी फेरने का काम कर रहे हैं। अंडर ब्रिज बनाकर दुर्घटनाओं को रोकने और आसपास के गांव के लोगों को सुगम आवागमन का लाभ देने के गरज से रेल महकमें के इंजीनियरों ने भले ही समपार फाटक से राहत दिलाने का काम किया है, लेकिन अब यह किसी आफत से कम नहीं है। खासकर बरसात के दिनों में रेलवे अंडर ब्रिज तालाब और नाले का रूप ले लेते हैं, जिनके बीच से होकर आवागमन करना मजबूरी बन चुका है। कई बार ग्रामीण धरना-प्रदर्शन से लेकर प्रशासन, जनप्रतिनिधियों और रेलवे के उच्चाधिकारियों को भी पत्र देकर अवगत कराते हुए समस्या के समाधान की मांग कर चुके हैं, बावजूद इसके स्थिति यथावत बनी हुई है। मीरजापुर जनपद के नटवां तिराहा के पास रेलवे अंडर ब्रिज के नीचे हल्की बारिश होने से ही पानी जमा हो जाता है। पानी भरने से गाड़ियों की लम्बी कतार लग जाती है। लोगों को काफी मजबूरी में रेलवे लाइन पार करके जाना पड़ता है, जिससे दुर्घटना का भय बना रहता है। तंज कसते हुए नगर के रविशंकर साहू कहते हैं- ‘भाजपा के 9 साल बेमिसाल, फिर भी नटवां, रेहड़ा, पटेंगरा रेलवे अंडर ब्रिज का वही हाल। केवल बरसात के दिनों में आती है यहां की याद, बाकी जनप्रतिनिधियों को फोटो खिंचाने से फुरसत ही कहां है?’

जल-जीवन मिशन ने बढ़ाई मुश्किलें

जिस जल जीवन मिशन के जरिए सरकार हर घर नल योजना की पाइप लाइन के तहत घर-घर पानी पहुंचाने की कवायद में जुटी हुई है, वह इन दिनों लोगों के लिए मुसीबत का कारण बन चुका है। पाइप लाइन और सीवर लाइन बिछाने के नाम पर पूरे नगर-गांव की गलियों को खन-खोद दिया गया है। आलम यह है कि बरसात होते ही सड़कें और पटरियां बैठने लगी हैं। सड़कों और गलियों में फैला कीचड़ का साम्राज्य दुर्घटना का कारण बन रहा है, गंदगी को भी बढ़ावा मिल रहा है। नटवां मलिन बस्ती से नटबिर चौराहे तक सीवर का कार्य विगत एक साल से चल रहा है। गंगा प्रदूषण के खंड-दो के अन्तर्गत यह कार्य आता है। हर दो महीने बाद यहां खोदाई शुरू कर दी जाती है। आज तक न तो समतलीकरण किया गया और ना ही गिट्टी डाली गई है, जिससे आवागमन कठिन हो गया है। ठेकेदारों और  विभाग की लापरवाही से आए दिन कार, ई-रिक्शा, ऑटो आदि सड़क के इन गड्ढों में फंस जाते हैं, जिससे उन पर सवार सवारियां चोटिल हो रही हैं। इसी प्रकार कहीं मेनहोल आधा टूटा है, तो कहीं एक-एक फिट पानी भरा हुआ है।

महिमा मिश्रा

समाजवादी पार्टी की महिला नेत्री महिमा मिश्रा मीरजापुर नगर की बदहाली और सड़कों की दुर्दशा पर कहती हैं- ‘यह सरकार कानून और सुरक्षा के नाम पर पूरी तरह से विफल होने के साथ-साथ विकास कार्यों में भी विफल है। सिर्फ ढिंढोरा पीट कर तथा हिंदू-मुस्लिम की लड़ाई छेड़, यह सरकार अपने कोरे आश्वासनों से लोगों का पेट भरती आ रही है। थाना और तहसील समाधान दिवस पर फरियादियों को उमड़ने वाली भीड़, अस्पतालों में चिकित्सा सुविधा के अभाव, महिलाओं और बालिकाओं के होने वाले शोषण के मुद्दे पर वह कहती हैं कि सुरक्षा की बात करने वाली यूपी सरकार में महिलाएं और बालिकाएं सुरक्षित नहीं हैं।’

फरियादियों की फरियाद का नहीं हो पा रहा समाधान

थाना और तहसील दिवसों पर लगने वाले समाधान दिवस के जरिए ग्रामीण अंचल के रहवासियों को उनकी समस्याओं के त्वरित निस्तारण एवं मौके पर जाकर विवाद सुलझाने के गरज से प्रारंभ किया गया यह अभियान सार्थक होने के बजाय निरर्थक साबित हो रहा है। लंबित प्रार्थना पत्रों को छोड़ दिया जाए तो कुछ विशेष मामलों में भी त्वरित समाधान के बजाय टरकाऊ नीति का सहारा लिया जा रहा है।

गुंजा

आदिवासी, गरीब, दलित महिलाओं-बेटियों के लिए संघर्ष करने वाली मड़िहान की गुंजा कहती हैं- ‘बहन-बेटियों की इज्जत पर नजर रखने वाले लोगों पर ठोस कार्रवाई न होने के कारण महिलाओं एवं किशोरियों के उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ रही हैं।’ वह स्वयं अपने उत्पीड़न की पीड़ा को व्यक्त करते हुए अपने आंसुओं को पोंछती हैं और दुःखी मन से कहती हैं कि ‘वह अपने साथ हुए जुल्म और ज्यादती की शिकायत लेकर थाने पर जा चुकी हैं, लेकिन अभी तक उनकी सुनवाई नहीं हुई है, जिससे मनबढ़ों के हौसले बुलंद बने हुए हैं। वह उन्हें जान से मारने की धमकियां देते फिर रहे हैं।’

सड़क पर लगा बारिश का पानी

सड़क बनाने फिर खोदने का हो रहा है विकास

मीरजापुर नगर सहित आसपास के इलाकों में पिछले वर्ष से प्रारंभ हुआ सीवर एवं पेयजल लाइन बिछाने का कार्य अभी तक शुरू नहीं हो पाया है। कहा तो यह जा रहा था कि बरसात से पूर्व ही इस कार्य को पूर्ण कर लेना है, लेकिन बरसात प्रारंभ होने के बाद भी अभी तक कार्य पूर्ण होना संभव नहीं दिखाई दे रहा है। मीरजापुर नगर के नटवां रोड पर गंगा प्रदूषण द्वारा डाली गई सीवर लाइन पर चेम्बर बनाये बिना ही सड़क बनाया जा रहा है। स्थानीय लोगों ने जब इसका विरोध किया तो उन लोगों ने बताया कि इसका ठेकेदार कोई और है। इस कार्य के बाद में  इसको दोबारा खोद कर चेम्बर बनाए जाएंगे। सरकारी धन का दुरुपयोग व पैसे का बंदरबाट ऐसे ही किया जाता है। एक ही समय में दोनों कार्य हो सकते थे, मगर नहीं, उसको फिर से किया जाएगा। दोबारा सड़क जाम, कीचड़ इत्यादि परेशानियों को सोच कर लोग परेशान हो जा रहे हैं।लोगों की मांग है कि सीवर कार्य व चेम्बर बनाने के बाद ही सड़क का निर्माण कराया जाए ताकि दोबारा परेशान न होना पड़े। जो होना है एकबार में ही हो जाए।

शैलेन्द्र अग्रहरी

व्यापारी नेता एवं चिंतक शैलेंद्र अग्रहरी ‘गांव के लोग डॉट कॉम’को बताते हैं कि ‘लखनऊ जैसे बड़े शहर में वाहन का जमीन में समा जाना, सड़कों पर मलबा और कचरे का ढेर जमा होना, सरकार के स्वच्छता अभियान व सड़कों के निर्माण कार्य के गुणवत्ता की पोल खोलने के लिए काफी हैं। नालियों की सफाई न होने के कारण हल्की बरसात में ही कूड़े-कचरे का ढेर, बरसात और नालियों के पानी के साथ सड़कों पर तालाब का रूप ले लेता है, इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

कानून व्यवस्था की बदहाली, बढ़ते पुलिसिया उत्पीड़न पर वह कहते हैं कि ‘पुलिसिया उत्पीड़न करने की मंशा डंडे के रूप में जारी है, जिस पर रोक लगा पाने में सरकार नाकाम साबित हो रही है। अकूत भ्रष्टाचार का बोलबाला पूरे प्रदेश में बढ़ा है, जिससे मीरजापुर जनपद भी अछूता नहीं है।’

संजय सत्संगी

संजय सत्संगी बिजली-पानी, सड़क की बदतर स्थिति को लेकर स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि ‘मैं नहीं चाहता कि मेरा कोई खास और नात-रिश्तेदार, मेहमान मेरे घर या मेरे शहर में आए।’ वजह पूछे जाने पर वह तपाक से कहते हैं कि ‘सड़कों की दशा तो आप देख ही रहे हैं (गड्ढे में तब्दील सड़क की ओर इशारा करते हुए) ऐसे में भला कैसे कोई अपने यहां किसी को बुलाना चाहेगा? जनप्रतिनिधियों के विकासवाद के दावे पर तंज कसते हुए वह कहते हैं कि ‘ऊंची दुकान, फीके पकवान…’ का मुहावरा मीरजापुर नगर के विकासवाद पर सटीक बैठता है।

विकास सिर्फ अपना और दल का

तमाम सामानों के लिए विश्व की मंडी रहे मीरजापुर जिले के निर्मित पीतल के बर्तन और कालीन देश ही नहीं, विश्व में अपनी पहचान बनाने में कामयाब होने के साथ-साथ हजारों परिवारों के रोजी-रोटी का साधन हुआ करते थे। आज वह उपेक्षा के चलते बेकारी, बेरोजगारी, उपेक्षा का दंश झेल रहा है। मीरजापुर जिले में विकास तो हो रहा है, लेकिन ‘अपना’ और अपने ‘दल’ का, बाकी का हाल तो बदहाल, बेहाल है।

मनोज श्रीवास्तव

राष्ट्रवादी मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज श्रीवास्तव अपनी तीखी प्रतिक्रिया में कहते हैं- ‘जिले में नेतृत्व का अभाव दिखाकर बाहर से नेताओं को थोपा जाता रहा है, जो जिले के इतिहास भूगोल तक नहीं जानते, जिसे जनपद की सोंधी माटी से कोई लगाव नहीं है, वह क्या करेंगे? जिले को सराय बना दिया गया है। जिले का प्रतिनिधि गैर जनपद के लोगों को बनाया जा रहा है, जो यहाँ के जनता की उपेक्षा कर रहे है। छोटी-छोटी समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। जनता अपने आपको ठगा महसूस कर रही है। वह बताते हैं जिले का एक ब्लाक छानबे अपनी मेहनत और खेती की बदौलत दलहन पैदा करता था। बाजार में छनवर का चना मशहूर था, जो आज बाजार से सिमटता गया। गंगा किनारे होने के बावजूद सिंचाई के अभाव में खेती बर्बाद होती गई। उपेक्षा के चलते विकास की पटरी से उतर चुके छानबे की दुर्दशा पर वह चिंता जताते हैं।’

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