Friday, April 19, 2024
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एक तीली आग जो ताउम्र शिक्षा का दिया जलाती रही

श्रद्धांजलि- न्यायमूर्ति राम प्रसाद यादव न्यायमूर्ति राम प्रसाद यादव का देहावसान तमाम वंचित लोगों की उम्मीद का अवसान है। उनके चले जाने से तमाम आँखों की उम्मीद का रंग धूमिल हो गया है। न्यायमूर्ति राम प्रसाद सिर्फ व्यक्ति नहीं, बहुत से लोगों का विश्वास भी थे, जिस विश्वास के सहारे एक सम्मानजनक भविष्य की बुनियाद […]

श्रद्धांजलि- न्यायमूर्ति राम प्रसाद यादव

न्यायमूर्ति राम प्रसाद यादव का देहावसान तमाम वंचित लोगों की उम्मीद का अवसान है। उनके चले जाने से तमाम आँखों की उम्मीद का रंग धूमिल हो गया है। न्यायमूर्ति राम प्रसाद सिर्फ व्यक्ति नहीं, बहुत से लोगों का विश्वास भी थे, जिस विश्वास के सहारे एक सम्मानजनक भविष्य की बुनियाद रखी जा सकती थी। अब यह उम्मीद तिरोहित हो चुकी है। शेष सिर्फ स्मृतियाँ हैं। यह स्मृतियाँ लंबे काल खंड तक उनके शैक्षिक उत्थान के प्रयास और सार्थक सामाजिक सरोकारों की कीर्तिध्वजा फहराती रहेंगी।

न्यायमूर्ति राम प्रसाद यादव का 5 मई, 2023 को 79 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया। वह लगभग साल भर से कैंसर से पीड़ित थे। 15 अप्रैल को गंभीर स्थित में उन्हें लखनऊ पीजीआई में भर्ती करवाया गया, पर उन्हें बचाया नहीं जा सका।

न्यायमूर्ति राम प्रसाद के जाने से उनके तमाम चाहने वालों को गहरा आघात लगा है। राम प्रसाद यादव का जन्म एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता स्व. रामपलट यादव और माँ अचला देवी ने जीवन संघर्ष के बीच अपने पुत्र को वैभव के झूले में भले ही नहीं झुला सके थे पर शिक्षा की डोर पकड़कर जीवन के तमाम अदृश्य से लगने वाले सपनों को हासिल कर लेने का रास्ता बुनने में कोई कोर-कसर नहीं रखना चाहते थे। राम प्रसाद अपने चार भाइयों में सबसे बड़े थे। शिक्षा के प्रति पिता ने जो आकर्षण पैदा किया था, वही उनके जीवन का मंत्र बन गया था। सन 1964 में कानून की डिग्री हासिल करने के बाद वह जौनपुर जिला न्यायालय में ही वकालत करने लगे। वह जिस गहन अभिरुचि के साथ अपनी शिक्षा के प्रति आगे बढ़े थे, वही संस्कार अपने शेष तीन भाइयों को भी देने में लगे हुए थे। प्रथम प्रयास में ही पीसीएस जे में चयनित हुए और 1970 बैच के न्यायिक अधिकारी बन गए। 1982 में एचजेएस के पद पर प्रमोशन हो गया। न्यायिक पद प्राप्त करने के बाद धीरे-धीरे एक संवेदनशील और उदार न्यायमूर्ति की छवि बनी। 1985 में आपको कानपुर नगर एडीजे बनाया गया। वह अपने कर्म के सामाजिक औचित्य को बखूबी समझते थे और उसकी मर्यादा का निर्वाहन एवं निरूपण हमेशा ईमानदारी से करने की प्रतिबद्धता रखते थे। इसी कर्मठता और ईमानदारी की वजह से 1987 में उन्हें उच्च न्यायालय इलाहाबाद में सयुक्त निबंधक बनने का अवसर प्राप्त हुआ। अपनी कार्यकुशलता की वजह से तीन वर्ष के कार्यकाल के इस पद पर वह पाँच वर्ष तक रहे। इसके बाद अलीगढ़ और मेरठ जिले के एडीजे बने। 1996 में प्रमोशन हुआ और सुल्तानपुर के जिला जज बने। बाद में बुलंदशहर, गोरखपुर और गाजियाबाद का जिला जज बनने का भी अवसर मिला। सन 2005 में हाईकोर्ट के जज के रूप में आसीन हुए जहां लखनऊ बेंच के जज के रूप में कार्य करते हुए 14 जून 2006 को न्यायमूर्ति के पद से अवकाश ग्रहण किया। न्यायमूर्ति के पद से अवकाश ग्रहण के उपरांत भी समय-समय पर विशेष आग्रह के साथ समनान्तर न्यायिक क्षेत्रों में उनकी सेवाएं ली जाती रही। उन्हें सर्विस ट्रिब्यूनल का अध्यक्ष भी बनाया गया, जहाँ से 2011 में वह रिटायर हुए।

“न्यायमूर्ति राम प्रसाद यादव हमेशा अपनी मिट्टी और अपने लोगों से जुड़े रहे। न्यायिक क्षेत्र के कार्यों के साथ वह अपने सामाजिक सरोकारों  के लिए हमेशा याद किये जाते रहेंगे। उनका स्मरण करते हुए माचिस की जलती हुई तीली की वह मध्यम सी आग याद आती है जो हजारों बेनूर दीयों को अपने स्पर्श से दुनिया के उजाले का माध्यम बना देती है।”

न्यायिक क्षेत्र में अपने सही फैसलों के कारण वह चर्चित रहे। उनके कुछ लैंडमार्क फैसले हाईकोर्ट से भी कन्फर्म हुए थे। बतौर न्यायमूर्ति बहुत से उल्लेखनीय कार्य करने के साथ उन्होंने सामाजिक उत्थान के पक्ष में भी अपना स्मरणीय योगदान देने का काम किया। पिता से मिले संस्कार और आदर्श के सहारे जीवन राग सहेजने वाले राम प्रसाद यादव अपने तीन छोटे भाइयों को भी शिक्षा के माध्यम से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहे, जिसकी वजह से उनके भाई हरीश कुमार यादव इस समय अपर जिला जज लखनऊ, अशोक कुमार यादव प्रधानाचार्य श्री द्वारिका प्रसाद इंटर कालेज और सबसे छोटे भाई जनार्दन प्रसाद यादव अपर  जिला जज इटावा के रूप में कार्यरत हैं। तीन बेटे निखिल कुमार यादव और प्रद्युम्न कुमार यादव इलाहाबाद हाईकोर्ट में तथा अजय कृष्ण यादव हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में बतौर एडवोकेट कार्यरत हैं।

राम प्रसाद यादव ने आम आदमी के जीवन के कठिन संघर्ष को बहुत करीब से देखा और महसूस किया था और इस संघर्ष से बाहर निकलने का रास्ता उन्हें शिक्षा में दिखता था। इस वजह से उन्होंने अपने समाज के ज्यादा से ज्यादा बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का हमेशा प्रयास किया और अपने पैत्रिक गाँव में श्री द्वारिका प्रसाद इंटर कालेज की स्थापना की। वह हमेशा ही अपने गाँव से जुड़े रहे, अपनों के हर सुख-दुख में वह संबल की तरह थे। जब जिसके लिए जितना भी उनसे बन पड़ता था, वह करने से उन्होंने कभी गुरेज नहीं किया। पत्नी कौशल्या के लिए उन्होंने अच्छे पति की भूमिका निभाई तो बच्चों के लिए शानदार पिता साबित हुए। भाइयों और बहनों के साथ जिस आत्मीयता की डोर उन्होंने बांध रखी थी वह किसी भी परिवार के लिए अनुकरणीय है।

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उनके जाने से उनका परिवार ही नहीं बल्कि न्यायिक क्षेत्र के उनके तमाम सहकर्मियों और सफीपुर के जनमानस में गहरी शोक की लहर है। उनकी इच्छा के अनुरूप उनका अंतिम संस्कार किसी सामान्य आदमी की तरह पैत्रिक गाँव के ही यमुना घाट पर किया गया। जहां लोगों ने श्रद्धा के साथ अपनी श्रद्धांजलि देकर उन्हें अंतिम विदाई दी। लोगों का कहना है कि उन्होंने अपने एक ऐसे नायक को खो दिया है, जिसकी भरपाई सहज नहीं हो पायेगी। बहुत से लोग उन्हें इस रूप में याद कर रहे हैं कि आज वह जहां पहुंचे हैं उसके पीछे न्यायमूर्ति राम प्रसाद यादव का सहयोग और प्रेरणा है। भाई और श्री द्वारिका प्रसाद के इंटर कालेज के प्रधानाचार्य अशोक कुमार यादव उन्हें शैक्षिक उत्थान के प्रणेता के रूप में याद करते हैं और कहते हैं उनका जाना जहाँ हमारी निजी क्षति है वहीं उनके बहुत से चाहने वालों को भी उनके चले जाने से गहरा दुख हुआ है।

सबसे छोटे भाई जनार्दन प्रसाद यादव (अपर जिला जज, इटावा) बहुत ही भावुकता के साथ उन्हें याद करते हुए बचपन की उस गली तक पहुँच जाते हैं जहां एक गरीब और कठिन जीवन था। वह बताते हैं कि, ‘बड़े भाई साहब, हम भाइयों के लिए भगवान की तरह थे। जीवन के हर संघर्ष में स्वयं को आगे रखते और सम्मान के प्रति हमेशा हम सबको आगे कर देते। उनके चले जाने से हमने अपने जीवन का स्वर्ण युग खो दिया।’ स्मृतियों का एक समुद्र उनके अंदर विक्षोभित होता-सा महसूस होता है। वह उनको याद करते हुए उस पूरी जीवन यात्रा को जी लेना चाहते हैं, जिसके हर हिस्से में बड़े भाई का अपरिमित स्नेह हिलकोरे मार रहा है।

न्यायमूर्ति राम प्रसाद यादव हमेशा अपनी मिट्टी और अपने लोगों से जुड़े रहे। न्यायिक क्षेत्र के कार्यों के साथ वह अपने सामाजिक सरोकारों  के लिए हमेशा याद किये जाते रहेंगे। उनका स्मरण करते हुए माचिस की जलती हुई तीली की वह मध्यम आग याद आती है जो हजारों बेनूर दीयों को अपने स्पर्श से दुनिया के उजाले का माध्यम बना देती है।

गाँव के लोग
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1 COMMENT

  1. आपका श्रद्धांजलि देने को तरीका मुझे बहुत पसंद गया.

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