अमेरिकी भेदभाव और विद्वेष के खिलाफ़ चिकानो सिनेमा और ग्रेगरी नावा की फिल्में

राकेश कबीर

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हॉलीवुड दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित फिल्म उद्योग है लेकिन यह भी सच है कि वह भी कंटेन्ट और फॉर्म में ईमानदार नहीं रहा है। जिस तरह जर्मन सिनेमा में तुर्की लोगों का नकारात्मक और पक्षपातपूर्ण चित्रण होता था, साथ ही फातिह अकीन जैसे निर्देशकों ने अभिनय छोड़कर अपनी कहानियों पर फिल्में बनाना शुरू किया, उसी तरह मेक्सिको के अमेरिकन- मेक्सिकन फ़िल्मकारों ने हॉलिवुड में उपेक्षित होकर अपने लोगों के जीवन और सच्चाइयों पर स्वयं फिल्में बनाकर उनको पहचान दिलाई।

फिल्म द रिंग का एक दृश्य

सन 1950 और 1960 के दशक में अमेरिका के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र एवं कैलीफोर्निया में मेक्सिको के प्रवासियों द्वारा किये गए आन्दोलनों को केन्द्र में रखकर चिकानो सिनेमा का निर्माण आरम्भ हुआ। इसे मेक्सिकन-अमेरिकन सिनेमा के नाम से भी जाना जाता है। अमेरिका में बसे प्रवासी मेक्सिकन समुदाय के दैनिक जीवन के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं को चित्रित करती फिल्म निर्माण की इस धारा की पहली फिल्म द रिंग (1952) थी। अमेरिका में रहने वाले प्रवासी मेक्सिकन समुदाय से जुड़ा चिकानो शब्द ‘सांस्कृतिक दमन’ के विरूद्ध उनके प्रतिरोध का प्रतीक शब्द है। चिकानो सिनेमा में मेक्सिकन-अमेरिकन समुदाय का यही प्रतिरोध प्रस्तुत हुआ है। फिल्मों के माध्यम से इस आन्दोलन की आवाज/ संदेश दूर तक पहुंची और आन्दोलन को भी एक मजबूत प्लेटफार्म मिला। चिकानो फिल्म की धारा में फिल्मों और डाक्यूमेन्ट्री दोनों को शामिल किया गया। इस धारा में प्रमुख रूप से Please, Don’t Bury Me Alive (1976), Alambrista! (1977), Raices de Sangre (1978) और Walk Proud (1979) आदि फ़िल्में बनायी गईं। बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए सन 1980 के दशक से चिकानो फिल्मों को अमेरिकन पापुलर कल्चर की मुख्यधारा में शामिल किया जाने लगा। इन फिल्मों में स्कूलों और संस्कृति के एकीकरण के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया गया।

फिल्म Raices de Sangre का एक दृश्य

माया सभ्यता और गृहयुद्ध

अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता ग्वाटेमाला, मेक्सिको, होण्डुरास एवं यूकाटान प्रायद्वीप में स्थापित थी। माया सभ्यता मेक्सिको की एक महत्वपूर्ण सभ्यता थी, जिसका आरम्भ 1500 ई.पू. में हुआ। यह सभ्यता 300 ई. से 900 ई. के दौरान अपनी उन्नति के शिखर पर पहुंची। माया सभ्यता का अंत 16वीं शताब्दी में हुआ, किन्तु इसका पतन 11वीं शताब्दी से आरम्भ हो गया था। वर्तमान में देखें तो ग्वाटेमाला में रक्तरंजित क्रांति सन 1960 से लेकर 1996 यानि कुल 36 सालों तक चलती रही। यह लैटिन अमेरिका के देशों में, सबसे ज्यादा रक्तपात वाली क्रांति रही, जिसमें तक़रीबन 2 लाख लोग मारे गए और 10 लाख लोग विस्थापित हुए। सन 1999 की संयुक्त राष्ट्र ट्रुथ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि मारे गए लोगों में 83 प्रतिशत लोग मूलनिवासी माया थे, जिन्हें सेना और अर्धसैनिक बलों ने मारा था और 93 प्रतिशत लोगों के मानवाधिकारों का हनन किया था। यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि वियतनाम, अफगानिस्तान, इराक और दुनिया के अन्य देशों में वामपंथी सरकारों को गिराने के लिए युद्ध, हिंसा का सूत्रपात करने का काम अमेरिका करता रहा है। ग्वाटेमाला में भी जनता द्वारा सन 1940 में चुनी हुई सरकार सत्ता में आई। सन 1951 में सेना के अफसर जैकोबो अरबेन्ज़ राष्ट्रपति बने, उनको हटाकर सन 1954 में सेना का शासन स्थापित किया गया। यह सब रक्तपात और मानवाधिकारों का हनन अमेरिका के सहयोग और देख-रेख में हुआ। इस गृहयुद्ध और सत्ता परिवर्तन के लंबे दौर में बड़ी संख्या में लोगों का पलायन अमेरिका की तरफ हुआ।

फिल्म The Three Burials of melquiades Estrada का एक दृश्य

अमेरिका में रहने वाले कुल आप्रवासियों में 24 प्रतिशत के लगभग मेक्सिकन लोग रहते हैं जो कि सबसे बड़ा अप्रवासी समूह है। सन 2019 में लगभग 11 मिलियन मेक्सिको में पैदा हुए व्यक्ति अमेरिका में रहते थे। मेक्सिको के अप्रवासियों की संख्या लगातार घटने के बावजूद अभी भी इनकी संख्या बहुत बड़ी है। कुछ मेक्सिकन लोग अमेरिका छोड़कर वापस जा रहे हैं फिर भी अमेरिका मेक्सिको प्रवासियों के लिए पहली पसंद है (एमा इजराइल एवं जीन बटालोव)। मेक्सिको और अमेरिका के बीच 2000 किमी लंबा बॉर्डर है जो अवैध प्रवास की समस्या का मुख्य कारण है। अमेरिका ने इस सीमा पर अवैध घुसपैठ रोकने के लिए पैटरोलिंग गार्ड्स लगा रखे हैं। अवैध प्रवासी अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ बढ़ते हैं। कुछ लोग सस्ते श्रम की उपलब्धता के कारण इसे बेहतर भी मानते हैं।

मेक्सिको के गांवों में भारत की तरह वृद्ध और बड़ी उम्र की महिलायें बची हैं जिसके कारण कार्य करने लायक श्रमिकों की कमी है और महिलाओं को शादी के लिए लड़के नहीं मिल पाते। वैध और अवैध प्रवासी लगभग 6 बिलियन डालर विदेशी मुद्रा अपने देश मेक्सिको भेजते हैं। अमेरिका मे ज्यादा मजदूरी मिलने के कारण पुरुषों का प्रवास बहुत ज्यादा है। छोटी जोत और ज्यादा श्रम के कारण मेक्सिको में खेती का कार्य मुश्किल है। मेक्सिकन लोग प्रतिदिन अमेरिका की सीमा में अवैध तरीके से घुसने का प्रयास करते हैं और पकड़े भी जाते हैं और कई तरह के शोषण व भेदभाव के शिकार होते हैं।

फिल्म जूट सूट का एक दृश्य

चिकानोंफिल्में और उनकी लोकप्रियता

जैसे-जैसे चिकानो फिल्में प्रसिद्ध होती गईं इनकी कमाई बढ़ती गई, जिसके कारण हॉलीवुड के बड़े स्टूडियोज ने इस धारा की फिल्मों का निर्माण आरम्भ किया। मेक्सिकन-अमेरिकी समुदाय में बढ़ती सामाजिक सक्रियता एवं जागरुकता के साथ चिकानो सिनेमा में विविधतापूर्ण विषयों जैसे-उत्पीड़न, स्टिगता, एकीकरण और इथनिसिटी पर केन्द्रित फिल्में बनने लगीं। अपने विरुद्ध बनाए गए पक्षपातपूर्ण स्टीरियोटाइप एवं नकारात्मक को हटाने एवं अमेरिकन समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहुंच एवं स्वीकार्यता सुनिश्चित करने के लिए चिकानों आंदोलन चलाया गया और फिल्मों में इन विषयों को सिनमा के पर्दे पर प्रस्तुत करने का काम किया।

फिल्म बॉर्डर टाउन

चिकानो फिल्मकारों में लुईस वाल्डेज सिवेरो परैज, रिकतेजेदा फ्लोरेस, जोस लुईस रूईज और माकटेसुमा इस्पारजा, सुसान रान्चो, सिल्विया मोरेल्स और लुरडेस पोर्टिलो जैसे प्रमुख नाम हैं। सन 1980 तक चिकानों सिनेमा राजनीतिक एक्टिविज्म और इथनिक राष्ट्रवाद से विविधता और बहुसांस्कृतिकवाद की तरफ बढ़ गया, जिसका प्रमाण बहुत सारी फिल्में हैं जिनमें : जूट सूट (1981) द बैलेड आफ ग्रेगोरिओ कोर्टेज (1983) ब्रेक आफ डॉन (1988) डिसटेन्ट वाटर (1990)।

फिल्म अलम्ब्रिस्ता का एक दृश्य

कई चिकानो फिल्में वास्तविक कहानियों पर आधारित थीं। इनको सोशल प्राब्लम फिल्म और हिस्ट्री फिल्म की श्रेणी में रखा गया। मूक फिल्मों के दौर में जो नकारात्मक और स्टीरियो टाइप के साथ चिकानो फिल्में बनीं जिनमें मेक्सिको और अमेरिका के बीच संघर्षमय संबंधों को प्रमुखता दी गई वह बाद के दिनों में थोड़ा कम हुआ। हॉलीवुड की फिल्मों में मेक्सिकन समुदाय के व्यक्तियों कोयलाझोंकुए डकैत और उनकी महिलाओं को कमजोर चरित्र का बताकर चित्रित किया जाता रहा। कुछ एंग्लो-अमेरिकन निर्देशकों ने लचीले रूख के साथ चिकानो फिल्में बनाई, जिनमें Salt of the Earth (1954 हरबर्ट जे. बिबरमैन), Alambrista (राबर्ट एम. यंग-1977) और The Three Burials of melquiades Estrada (टा मी ली जोन्स 2005) मुख्य नाम हैं।

फिल्म अल नोर्टे

ग्रेगरी नावा और उनकी फिल्म ‘अल नोर्टे’ (1983)

ग्रेगरी नावा एक मेक्सिकन अमेरिकन फिल्म निर्माता हैं। उन्होंने अल नोर्टे (1983), सेलेना (1997), ह्वाइ डू फूल्स इन लव (1998), माइ फेमिली (1995), अमेरिकन फेमिली (2002) और बॉर्डर टाउन (2007) जैसी फिल्में बनाई। उनकी फिल्म अल नोर्टे (El Norte-1983) मायन-इंडियन समुदाय के दो भाई-बहन इनरिक और रोजा की कहानी है जो ग्वाटेमाला सरकार के आतंक से डरकर शरण लेने अमेरिका पहुंचे हैं। यह कहानी ग्वाटेमाला गृहयुद्ध के दौरान आरम्भ होकर सन 1996 में उसके समाप्त होने तक चलती है जो कि 36 सालों तक चलता रहा था। अमेरिकन सशस्त्र सेना और वामपंथी गुरिल्लाओं के मध्य हुए इस युद्ध में लगभग एक लाख लोग मारे गए और 10 लाख लोग जबरन पलायन के शिकार हुए (Rohtar 1997:6)। इस फिल्म के तीन हिस्से हैं। पहला हिस्सा है अर्तुरो जूनाक्स (Arturo Xuncax) जिसमें  ग्वालेमाटा के प्राकृतिक वातावरण, कृषि, पहाड़, घाटियों के बीच माया सभ्यता के इंडियन (सन पेड़ों के कॉफ़ी बागानों में काम करने वाले) हैं। इन्हीं कॉफ़ी बागानों के क्षेत्र से अमेरिका तक पहुँचने वाले इनरिक औरा रोजा खुद को सांत्वना देते हैं। अमेरिका में रहते हुए वे दोनों अपने देश की प्रकृति, माया संस्कृति ग्रामीण जीवन पद्धति, परिवारों की सामूहिकता, काफी के बगानों के श्रम और सरकार के विरुद्ध आन्दोलन सब कुछ याद करते हैं ग्रेगरी नावा का प्रवासियों के नॉस्टेल्जिया को इस तरह पर्दे पर प्रस्तुत  करना बताता है कि मायन इंडियन ‘किसी अन्य समय और स्थान के रहने वाले अजनबी प्राणी हैं।’

फिल्म वाल्क प्राउड का एक दृश्य

फिल्म के अगले हिस्से में जूनाक्स परिवार डिनर टेबल पर बैठकर अमेरिका में अच्छे जीवन के बारे में चर्चा कर रहे हैं। लेकिन जल्दी ही उनका सुखमय जीवन बिखर जाता है जब सेना भू-अधिकार पर किसानों की एक गुप्त मीटिंग पर अटैक करती है। इस कार्यवाही में कुछ किसान मारे जाते हैं जिससे अर्तुरो भी मारा जाता है। उसकी पत्नी गायब हो जाती है। इनरिक और रोजा को विदेश भागना पड़ता है। इस फिल्म में रोजा कल्पना और यादों के सहारे खुद को स्थापित करने का प्रयास करती रहती है। वह ग्वाटेमाला की प्रकृति और माया सभ्यता एवं संस्कृति को याद करती है जिसके खेतों में उसके पिता और तितलियों के साथ खेलती मां दिखते हैं। प्रवास में रहने वाले लोग ऐसी ही कल्पनाओं और नॉस्टेल्जिया में खोए रहते हैं।

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फिल्म का दूसरा भाग अल कायोटे (El Coyote) है जिसमें दिखाया गया है कि किस तरह रोजा और इनरिक एक निष्प्रयोज्य सीवर टनेल के माध्यम से मेक्सिको सीमा पार करके अमेरिका में प्रवेश करते हैं। फिल्म के तीसरे भाग में इनरिक और रोजा अवैध प्रवासी के रूप में अमेरिका के लाॅस एंजेल्स के एक रेस्टोरेन्ट एवं गारमेन्ट फैक्ट्री में काम कर रहे हैं। उनके जीवन में अब मुश्किलों का दौर है। रोज़ा बीमार होकर अस्पताल में भर्ती है। मृत्युशैया पर पड़ी रोज़ा के ख्याल कुछ इस तरह प्रकट होते हैं: ‘हमारे अपने देश में, हमारा कोई घर नही है। वे हमें मार देना चाहते हैं। वहां हमारे लिए कोई घर पर नहीं है। मेक्सिको में केवल गरीबी है, वहां हम घर नहीं बना सकते। और यहाँ उत्तर (अमेरिका) में हम स्वीकार्य नहीं हैं। हमें एक अदद घर कब मिल सकेगा इनरिक? शायद मरने के बाद हम दोनों को घर मिल पाए।’

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यह फिल्म जो ग्वाटेमाला के एक बड़े संयुक्त परिवार से आरम्भ होती है। अन्तिम दृश्य में उस परिवार का केवल एक आदमी इनरिक जीवित बचता है, वह भी बेघर जिसका न अपना घर है न कोई देश। इस फिल्म में मायन-इंडियन लोगों को पीड़ित समुदाय के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह फिल्म संघर्ष और परिवर्तन के स्थान पर सहनशीलता को चित्रित करती है।

संदर्भ :-

Emma Israel and Jeanne Batalova (2020) Mexican Immigrants in the United states, in https//lawprofessors.typepad.com, on 2 December 2020.
Garza, Armida de la (2009) chicano identity and discourses of supplementarity on Mexican cinema: from the man without a fatherland (Contreras Torres, 1922) to “under the same moon’ (Riggen 2008), in Dialogos Latinoamericanos, Arhus Universitet, Dinamarca.
Johansen, Jason C. (1980) Notes on Chicano Cinema, in Jump Cut: A Review of Contemporary Media, number 23, pp9-10.
Melendez, A. Gabriel () Hidden Chicano Cinema : Film Dramas in the Borderlands, Rutgers University Press, USA.
Rings, Guido (2012) identity and otherness in contemporary Chicano Cinema: An Introduction, in Interdisciplinary Mexico, vol 1, summer 2012.

 

राकेश कबीर जाने-माने कवि-कथाकार और सिनेमा के गंभीर अध्येता हैं।

3 Comments
  1. Ghanshyam kushwaha says

    लिखते रहिये सर। नये नये पटकथाओं से परिचित कराते रहिये। बहुत सुंदर??

  2. मनोज कुमार यादव says

    “शायद मरने के बाद हमें घर मिल जाये!” बेहद मार्मिक चित्रण।

  3. Tarkeshwar Patel says

    बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ।यह लेख विशेषता, लचारता एवं सुख कल्पना से प्रेरित है ।आपने वैश्विक स्तर पर हो रहे लोगों के साथ दुर्व्यवहार एवं उसका प्रभाव इस लेख के माध्यम से रूबरू कराया और हर बार की तरह इस बार भी कुछ नया सीखने को मिला ।?बहुत-बहुत धन्यवाद एवं शुभकामनाएं सर।?????????

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