Friday, March 29, 2024
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जौनपुर के रक्तबीज- पायजामे की डोरी बांधना बाद में सीखे, हिस्ट्रीशीटर पहले ही बन गए धनंजय सिंह

उत्तर प्रदेश के बाहुबली -6 इनकी मनमानी को ना मानना इनके वसूल के खिलाफ था। मनमानी भी ऐसी कि एकदम गर्दा उड़ा दिए थे। तमंचा तानकर जातिवाद के सहारे आगे बढ़े और जाति के खिलाफ तमंचा तानने से भी परहेज नहीं किये। गोरखपुर मठ के पुराने महंत योगी अवैद्य नाथ के शिष्य होने के नाते […]

उत्तर प्रदेश के बाहुबली -6

इनकी मनमानी को ना मानना इनके वसूल के खिलाफ था। मनमानी भी ऐसी कि एकदम गर्दा उड़ा दिए थे। तमंचा तानकर जातिवाद के सहारे आगे बढ़े और जाति के खिलाफ तमंचा तानने से भी परहेज नहीं किये। गोरखपुर मठ के पुराने महंत योगी अवैद्य नाथ के शिष्य होने के नाते मुख्यमंत्री के गुरु भाई होने का सम्मान भी इन्हें हासिल है। इस समय JDU के राष्ट्रीय महासचिव हैं।

बाहुबली में आज धनंजय सिंह की बात। धनंजय सिंह जाति के ठाकुर हैं और अपने ठाकुर होने को वह अपना हथियार भी बनाते हैं और वक्त जरूरत इसे ढाल बनाकर अपने को सुरक्षित भी करते हैं। बाहुबल है तो दरियादिली भी कम नहीं है जो झंडे के नीचे रहने के लिए तैयार हो उसके लिए मिस्टर रॉबिनहुड बनने से भी गुरेज नहीं करते। धनंजय सिंह को मनमानी करने में मजा आता है, उन्हें जो पसंद आ जाए उसे हासिल करने से नहीं चूकते। काबिलयत भी ऐसी की होश-हवास दुरुस्त बाद में हुआ था पर हथियार चलाना पहले सीख गए थे। जौनपुर की जमीन से अपने रुतबे की बैटिंग शुरू की तो लखनऊ पंहुच कर खेल के कप्तान बन गए। पुलिस के साथ कबड्डी में उठा-पटक बढ़ने लगी तो निर्दलीय चुनाव लड़ गए और जीत कर विधायक भी बन गए। धनंजय सिंह ने जब जो चाहा हासिल किया पर अफसोस कि कुछ भी बहुत दिन तक संभाल नहीं पाये। राजनीति, अपराध के साथ निजी जिंदगी में भी जिंदगी ने इस बाहुबली को बार-बार धोखा दिया है पर धनंजय सिंह हर बार किसी रक्तबीज की तरह पहले से ज्यादा ताकत का लबादा ओढ़कर उस धोखे के दर्द से बाहर आ जाते हैं। एक बार तो पुलिस ने भी एनकाउंटर में मार दिया और धनंजय सिंह के मरने की फाइनल रिपोर्ट लगाकर धनंजय सिंह की फ़ाइल भी बंद कर दी पर महज छह महीने बाद इस रक्तबीज ने पुनः जन्म ले लिया। फिलहाल इस समय सांस्कृतिक भाईचारे की भावना को बढ़ाते हुए एक ही जिंदगी में तीसरा विवाह कर भगौड़े अपराधी के टैग के साथ मौज की जिंदगी काट रहे हैं। इनका जादू ऐसा है कि पूरा दिन मुहल्ला क्रिकेट खेलते रहते हैं पर पुलिस को कहीं भी नजर नहीं आते। अगर धनंजय सिंह को अदृश्य होने का जादू नहीं आता तो निःसंदेह इनके सामने पुलिस के धृतराष्ट्र हो जाने के पीछे सत्ता के कुछ निजी सरोकार होंगे। सत्ता की पट्टी ही पुलिस को अंधा बना पाती है वरना तो जो होता ही नहीं वह भी हमारी पुलिस देख लेती है।

[bs-quote quote=”मुकदमों में अब भी  पुलिस को उनकी वैसे ही तलाश है पर पुलिस को कहीं भी मिल नहीं रहे हैं। सोशल मीडिया में कभी-कभी दिख जाते हैं तो विपक्ष सरकार की मंशा पर प्रश्न चिन्ह भी लगाता है। धनंजय सिंह महंत अवैद्य नाथ के शिष्य हैं जिसकी वजह से उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का करीबी माना जाता है। विपक्ष योगी पर अपने स्वजातीय अपराधियों का आरोप लगाता रहा है। पर मुख्यमंत्री जातीय बातों और आरोपों को बहुत गंभीरता से नहीं लेते। उन्हे पता है कि कि किसके साथ कब क्या करना है?” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

धनंजय सिंह का जन्म कोलकाता में 1975 में हुआ था पर 1990 के पहले ही परिवार जौनपुर आ गया। नया स्कूल मिला, नए दोस्त मिले और नई जमीन की नई ठसक भी मिली। उम्र यही कोई पंद्रह साल की रही होगी, महर्षि विद्यामन्दिर के हाईस्कूल के छात्र थे, एक दिन उसी स्कूल के अध्यापक गोविंद उनियाल की हत्या हो गई। पुलिस में हत्यारोपी के नाम दर्ज हुआ दसवीं के छात्र धनंजय सिंह का। जिस उम्र में बाकी लौंडे कायदे से पायजामा बांधना नहीं सीख पाते उसी उम्र में इन्होंने कांड कर दिया। फिलहाल यह सब अन्यतः केवल बकैती बनकर रह गया क्योंकि पुलिस कोई सबूत ही नहीं जुटा पाई। पुलिस की सिनेमाई थ्योरी कि “अपराधी कितना भी चालाक हो वह कोई न कोई सबूत छोड़ ही देता है” यह गलत साबित हुई थी। अपराध की फील्ड पर जब धनंजय सिंह जैसे लोग खेलते हैं तो वह क्रिकेट को भी गुल्ली-डंडा बना देते हैं जिसमें माहिर खिलाड़ी सिर्फ पुलिस को पदाता है। पहला खेल पूरा हुआ तो दो साल के भीतर ही इन्होंने दूसरा कांड कर दिया, बारहवीं में पड़ रहे धनंजय सिंह को इस कांड की वजह से जेल से ही पेपर देना पड़ा था। पर इन दो कांडों ने जौनपुर को बता दिया था कि उनकी धरती का अगला वीर अब ताल ठोक कर मैदान में आ गया है। खैर पुलिस ने इन्हें पेपर दिलवा दिया था पर इस बार भी उसके मंसूबे मुंह के बल गिरे थे। आरोप ही लगा पाई थी पर सबूत नहीं जुटा सकी। कानून तो सबूत पर चलता है और पुलिस को बा-शर्म इन्हें रिहाई देनी पड़ी थी। स्कूली शिक्षा पूरी कर धनंजय सिंह लखनऊ पढ़ने पँहुच गए और दिल में जौनपुर की बेपनाह मुहब्बत भी साथ ले गए। दरअसल, हम भारतीयों की परंपरा है उगते सूरज को नमस्कार करने की। गिरोह की शक्ल में सिखाया जाता है- सूर्य को नमस्कार करना। धनंजय सिंह जरायम की दुनिया के उगते हुए सूर्य थे फिर जौनपुर इन्हें नमस्कार ना करता यह भला कैसे हो सकता था। खैर कुछ दिनों के लिए खेल जौनपुरी बंद हुआ और लखनउआ नवाबी का दौर शुरू हो गया।

अब जौनपुर का जलवा राज्य की राजधानी आ गया था। मण्डल कमीशन का दौर था, विरोध की राजनीति भी अपने उफान पर थी। राजनीति में जातिवाद का स्वर मुखर हो रहा था। इन सारी परिस्थितियों को समझते हुए धनंजय सिंह ने राजनीति की तरफ अपने को मोड़ना शुरू कर दिया। अलग-अलग क्षेत्र के ठाकुर छात्रों को अपने साथ लामबंद करने लगे। कुछ समर्थक बने तो कुछ हनक के मजबूत हिस्सेदार भी बने। अभय सिंह और बबलू सिंह के साथ मिलकर इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय की राजनीति में अच्छा खासा दबदबा बना लिया। मार-पीट, लड़ाई झगड़ा रोजमर्रा की बात बन चुकी थी। अपराध के सूचकांक में लगातार उछाल जारी था।

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अभय सिंह के साथ मिलकर रेलवे ठेकेदारी के खेल में हाथ डाला। उस वक्त पूर्वांचल के माफिया अजीत सिंह का रेलवे ठेकेदारी में दबदबा क्या पूरा इक्का चल रहा था। अजीत सिंह इस धंधे में किसी को घुसने नहीं देना चाहते थे। वजह साफ थी कि रेलवे की ठेकेदारी जहां पैसे कमाने का बड़ा जरिया थी वहीं रुतबे और औकात की बात भी थी। रेलवे की ठेकेदारी के लिए जब इन दोनों कबूतरों ने हथियार उठाया तो बाज की पेशानी पर भी खौफ की रेखा उभर आई। अजीत सिंह धीरे-धीरे पीछे होते गए और धनंजय सिंह व अभय सिंह आगे बढ़ते गए। यह ठेकेदारी सीधे ठेकेदारी नहीं थी बल्कि यह सिर्फ ठेकेदारी को मैनेज करने का खेल था और बदले गुंडा टैक्स (जीटी) लेने का मामला था। इस गुंडा टैक्स से धनंजय सिंह की गैंग के पास जमकर पैसा आने लगा था।

1997 में लखनऊ में लॉक निर्माण विभाग के इंजीनियर गोपाल शरण श्रीवास्तव की दिन दहाड़े हत्या हो गई। नाम आया धनंजय सिंह का। इस आरोप में धनंजय सिंह फरार हो गए। पुलिस ने 50,000 का इनाम घोषित कर दिया। इधर धनंजय सिंह फरार हुए उधर जीटी का सारा पैसा अभय सिंह के पास जाने लगा। धनंजय सिंह के फरार होने का फायदा अभय सिंह ने उठाया और बंटवारे में शायद धनंजय सिंह के साथ कुछ धोखा कर दिया। इस बात को लेकर पहले तो तकरार शुरू हुई और बाद लखनऊ कालेज की मशहूर जिगरी यारी जिगरी दुश्मनी में बदल गई।

इधर, पुलिस पर धनंजय सिंह को गिरफ्तार करने प्रेशर पड़ रहा था और धनंजय सिंह का कोई आता पता नहीं था। 17 अक्टूबर, 1998 को पुलिस ने एक एनकाउंटर करते हुए पाँच लोगों को मार दिया और बताया कि भदोही-मीरजापुर रोड पर एक पेट्रोल पंप पर डकैती के इरादे से आए धनंजय सिंह पुलिस मुठभेड़ में अपने चार साथियों के साथ मार दिए गए। पुलिस की पीठ थपथपाई गई और हमेशा के लिए धनंजय सिंह की फ़ाइल बंद कर दी गई। लेकिन फरवरी 1999 में रक्तबीज की तरह धनंजय सिंह सशरीर पुलिस के सामने पेश हो गए। फर्जी मुठभेड़ का पर्दाफाश हो गया। विपक्ष के नेता मुलायम सिंह ने फर्जी मुठभेड़ को लेकर सरकार को रगड़ना शुरू कर दिया तो मुठभेड़ की मानवाधिकार आयोग ने जांच शुरू कर दी और मुठभेड़ में शामिल रहे 34 पुलिसकर्मी सस्पेंड हुए और उनपर मुकदमा दर्ज हुआ।

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2002 में धनंजय सिंह ने पुलिस के साथ चोर सिपाही के खेल को नया आयाम देने के लिए राजनीति का दामन थाम लिया और जौनपुर की रारी विधानसभा से चुनाव लड़ गए। अब तक इतनी लड़ाई लड़ चुके थे कि चुनाव का नामांकन करते ही जीत तय हो गई। धनंजय सिंह अब राजनीति के बाहुबली बन चुके थे दूसरी तरफ अभय सिंह से दुश्मनी का फीका रंग अब ताक काफी गाढ़ा हो चुका था। अक्टूबर 2002 में बनारस जाते समय नदेसर में टकसाल टॉकीज के सामने इनके काफिले पर हमला हो गया। गोलीबारी में धनंजय सिंह के गनर सहित चार लोग घायल हुए थे। इस मामले को लेकर धनंजय सिंह ने कैंट ठाने में अभय सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था।

2007 में धनंजय ने राजनीति में अलग तरह से छलांग लगाई। उन्होंने बिहार की चर्चित पार्टी जदयू के टिकट पर इस बार चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कराई। इस पार्टी का उत्तर प्रदेश में कोई जनाधार नहीं था। धनंजय सिंह ने दूरदर्शिता दिखाते हुए एक ऐसी पार्टी का दामन थाम लिया था जिसमें प्रदेश स्तर पर उनका कोई नेता नहीं था जो उन पर अंकुश लगा सके वहीं खुद पर होने वाले किसी बड़े राजनीतिक हमले की स्थिति में उनके पास खुद को सुरक्षित रखने वाली पार्टी भी गई थी जो प्रदेश में भले ही बेहद कमजोर थी किन्तु राष्ट्रीय स्तर पर उसके होने का अपना एक अर्थ था।

2009 में धनंजय सिंह की नजदीकी बसपा सुप्रीमो से बढ़ी तो बसपा के टिकट पर जौनपुर के सांसद बन गए। 2011 में मायावती ने इन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में पार्टी से निकाल दिया। जब से हाथी से उतारे गए हैं तब अब तक राजनीतिक रूप से पैदल ही हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में पहले निर्दलीय प्रत्याशी के रूप मे पत्नी की हार हुई। 2014 में जौनपुर से संसदीय सीट पर भी हार का सामना करना पड़ा। 2017 में निषाद पार्टी मलहानी सीट से विधानसभा का चुनाव भी हार गए। फिलहाल एक बार पुनः नीतीश कुमार की पार्टी के महासचिव बन चुके हैं। कम बैक करना धनंजय सिंह कीकहासियात रही है पर 10 साल से ज्यादा का अरसा बीत चुका है उन्हे कोई चुनावी जीत हासिल किये।

मुकदमों में अब भी  पुलिस को उनकी वैसे ही तलाश है पर पुलिस को कहीं भी मिल नहीं रहे हैं। सोशल मीडिया में कभी-कभी दिख जाते हैं तो विपक्ष सरकार की मंशा पर प्रश्न चिन्ह भी लगाता है। धनंजय सिंह महंत अवैद्य नाथ के शिष्य हैं जिसकी वजह से उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का करीबी माना जाता है। विपक्ष योगी पर अपने स्वजातीय अपराधियों का आरोप लगाता रहा है। पर मुख्यमंत्री जातीय बातों और आरोपों को बहुत गंभीरता से नहीं लेते। उन्हे पता है कि कि किसके साथ कब क्या करना है?

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गोंडा का पहलवान – संकट में है सियासत, क्या बेदाग रह पाएंगे बाहुबली बृजभूषण शरण सिंह

धनंजय सिंह का पारिवारिक जीवन भी उनके जीवन के बाकी हिस्सों की तरह कभी सीधा-सपाट नहीं रहा। पहली पत्नी ने शादी के 9 महीने बाद ही आत्महत्या कर ली थी। दूसरी पत्नी डाक्टर जागृति सिंह पर नौकरानी की हत्या का आरोप लगा और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इस मामले में सबूत मिटाने के आरोप धनंजय सिंह पर भी लगे। 2017 में जागृति सिंह से उनका तलाक हो गया। 2017 में उन्होंने तीसरी शादी पेरिस में की। एक बड़े कारोबारी परिवार श्रीकला रेड्डी उनकी तीसरी पत्नी हैं।

2018 में हाईकोर्ट ने एक जनहित ममले को संज्ञान में लेकर सरकार को तलब किया था कि 24 अपराधों में निरुद्ध व्यक्ति को वाई कैटेगरी की सुरक्षा क्यों दी गई है? इसके बाद यह सुरक्षा हटा ली गई। 2020 के उपचुनाव में भी पूर्व मंत्री पारस नाथ यादव  के बेटे लकी यादव से चुनाव हार गए। बाद में उनकी पत्नी श्रीकला जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जरूर जीत गईं पर धनंजय सिंह को किसी भी तरह से एक सियासी जीत की दरकार अब भी है। बिना किसी सियासी पद के उत्तर प्रदेश में माफिया बने रहना हमेशा मुख्यमंत्री की दया पर निर्भर करता रहता है। वैसे ज्ञात रहे कि धनंजय सिंह आजकल फरार हैं। कभी सामने से दिख जाएँ तो वह सिर्फ आपकी आँखों की गलती होगी, हमारी पुलिस ने आँखों पर पट्टी नहीं बांधी है।

कुमार विजय गाँव के लोग डॉट कॉम के मुख्य संवाददाता हैं।

गाँव के लोग
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5 COMMENTS

  1. मुख्तार की पुरानी अदावत मुख्यमंत्री योगी से रही है। जब पहली बार दोनों आमने-सामने आए थे तो मुख्तार की ताकत बड़ी थी। योगी को पीछे हटना पड़ा था। यह कहना गलत नहीं होगा कि उस समय योगी अपमान का घूंट पीकर रह गए थे। वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता। वक्त बदला और योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। कभी मुख्तार की पावर के आगे पराजित होने वाले होने वाले योगी, मुख्यमंत्री बनकर ‘सेंटर ऑफ पावर’ बन गए तो मुख्तार जैसे “साइड पावर बाक्स’ का फ्यूज तो उड़ना ही था। अब जिंदगी जेल के हवाले है और एनकाउंटर का डर धड़कनों में गूंज रहा है।
    उत्तर प्रदेश के बाहुबली में आज पढिए मुख्तार अंसारी पर *कुमार विजय की रिपोर्ट मऊ का मुख्तार*
    http://gaonkelog.com/maus-mukhtar-mafia-standing-against-parvanchals-thakur-and-bhumihar-mafia/

  2. विजय मिश्रा की कभी सबसे बड़ी ताकत उनका ब्राह्मण होना था, पर यह ब्राह्मण होना ही आज उनका सबसे बड़ा डर बन चुका है। जिस भाजपा सरकार में कभी ब्राह्मण समाज अपने को सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस करता था, उसी सरकार में आज ब्राह्मण समाज सबसे ज्यादा डरा हुआ है। इस डर की वजह गोरखपुर का मठ है जिसकी तलवार हमेशा ब्राह्मण समाज के खिलाफ ही तनी रही है। गोरखपुर के माफिया वीरेंद्र प्रताप शाही की श्रीप्रकाश शुक्ला द्वारा की गई हत्या के बाद तो यह जातीय दुश्मनी कुछ ज्यादा ही चटख हो गई। आज जब उसी मठ के महंत योगी आदित्यनाथ सूबे के मुख्यमंत्री हैं तब इस डर का होना लाजिमी है। यही डर है जिसकी वजह से जब विजय मिश्रा को पुलिस गिरफ्तार करके ले जा रही थी तब उनकी बेटी ने कहा था कि, विकास दुबे की तरह गाड़ी नहीं पलटनी चाहिए।
    उत्तर प्रदेश के बाहुबली सिरीज में आज पढिये भदोही के विजय मिश्रा पर *कुमार विजय की रिपोर्ट*
    http://gaonkelog.com/bhaiyaji-of-bhadohi-is-a-brahmin-so-he-is-afraid-that-the-car-might-overturn/

  3. राजा की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाकर अखिलेश ने राजा भैया से दूरी बना ली। यह दूरी अब तक भले ही राजा भइया के सियासी सफर को न रोक पाई हो, पर उनके खिलाफ छविनाथ यादव और गुलशन यादव को मजबूत सिपाही के रूप में खड़ा कर तलुओं में जलन तो पैदा कर ही दिया है। 2022 में गुलशन यादव ने जिस तरह से टक्कर दी उससे यह तो साफ हो गया है कि अब राजा के लिए सब कुछ पहले जैसा आसान नहीं रह गया है। 2022 में राजा को चुनाव जीतने के लिए जिस तरह से एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा उसने साफ कर दिया की आने वाला सफर आसान नहीं होने वाला है।
    उत्तर प्रदेश के बाहुबली में आज प्रतापगढ़ के रघुराज प्रताप सिंह पर *कुमार विजय* की रिपोर्ट *कुंडा का गुण्डा*
    http://gaonkelog.com/kundas-goon-is-not-a-loser-of-the-political-journey-but-nowadays-there-is-a-lot-of-jealousy-in-the-soles/

  4. अखाड़े में किसी मर्द पहलवान के वजूद में उसके लंगोट की बड़ी भूमिका होती है पर इस समय उत्तर प्रदेश के बाहुबली सांसद जो पहलवान होने के साvथ रेसलिंग फेडरेशन के अध्यक्ष भी हैं के लंगोट पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। देश के लिए मैडल जीतने वाली पहलवानों ने बड़े गंभीर तौर पर उनपर यौन शोषण के आरोप लगाकर उनकी बादशाहत और पहलवानी दोनों को कटघरे में खड़ा कर दिया है। बाहुबली सिरीज में आज *कुमार विजय* मिलवा रहे हैं बृजभूषण शरण सिंह से पढिये गोण्डा का पहलवान
    http://gaonkelog.com/wrestler-of-gonda-politics-is-in-trouble-will-bahubali-brijbhushan-sharan-singh-be-able-to-remain-unblemished/

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