इधर के वर्षों में पूर्वांचल में ग्राम समाज यानी आबादी की जमीन को लेकर लगातार झगड़े होने की ख़बरें सामने आ रही हैं। मामला यहाँ तक बढ़ा है कि कई लोगों की हत्याएं तक हो गई हैं लेकिन सरकार ने इससे सबक लेने की बजाय कान में तेल डाल लिया है।
पंद्रह दिन से भी कम समय हुआ जब भदोही जिले के अभौली ब्लॉक के सराय होला गाँव में आबादी की ज़मीन के झगड़े में एक व्यक्ति की जान चली गई लेकिन पुलिस ने एक हफ्ते तक इस हत्या की एफआईआर तक नहीं दर्ज़ की। बाद में जब पीड़ित परिवार ने पुलिस अधीक्षक के यहाँ गुहार लगाई तब कहीं जाकर एफआईआर दर्ज की गई। इसके बावजूद अभी तक कोई भी आरोपी पकड़ा नहीं जा सका है।
बीते माह 31 अक्टूबर के दिन स्थानीय निवासी 60 वर्षीय सीतासरन यादव आबादी में बने अपने झोपड़े में बैठे थे जब पड़ोस में रहनेवाले सोनार, जो वर्मा टाइटिल लगाते हैं, परिवार के चार लोग वहाँ आए और उन पर आरोप लगाने लगे कि तुमने हमारे सोख्ते में कूड़ा फेंका है। गौरतलब है कि आबादी की जमीन पर दोनों का कब्ज़ा है। पहले भी कई बार झगड़े हो चुके थे। लेकिन पूर्व ग्राम प्रधान राजबहादुर कहते हैं कि मैंने दोनों के बीच फैसला कराया था और मामला सुलट चुका था।
लेकिन वर्मा परिवार ने बाद में उस फैसले को मानने से इन्कार कर दिया और मौके पर मौजूद बंसवार काटकर बाउंड्री बनाने के निर्णय को मानने से भी मना कर दिया। इस बात को लेकर भी दोनों पक्षों में कहा सुनी और गाली गलौज हो चुकी है। महिलाएं बताती हैं कि वे लोग हमारे उधर से आने-जाने के समय गालियाँ देते रहे हैं लेकिन हमने झगड़ा टालने के लिए उन्हें पलटकर जवाब नहीं दिया।
यह भी ध्यान देने की बात है कि सीतासरन के दो बेटे मुंबई में रहकर मेहनत-मजदूरी का काम करते हैं। गाँव में एक लड़का श्यामनारायन रहता है जो आंशिक रूप से विकलांग है। परिवार में पुरुष सदस्यों के कम रहने से सीतासरन ने झगड़े को हमेशा टालने की कोशिश की जिससे विरोधी पक्ष लगातार मनबढ़ होता रहा।
विरोधी पक्ष की सोने-चांदी के आभूषणों की कई दुकानें हैं जिससे उसको पैसे की ताकत पर भरोसा है। गाँव के कुछ लोगों ने बताया कि पिछले दो चुनावों में भाजपा की जीत ने गाँव में एक यादवविरोधी लहर पैदा कर दी है जिसका एक परिणाम यह हुआ है कि साधनसंपन्न गैर यादव यादवों को जातिसूचक गालियां देते रहते हैं।
उपरोक्त मामले में वर्मा परिवार भी पीछे नहीं रहा है। वह पैसे और भाजपा नेताओं तक अपनी पहुँच के बल पर स्थानीय प्रशासन को मिला कर काम करता है। लोगों ने बताया कि दसरथ वर्मा नामक व्यक्ति इस गाँव का सम्पन्न आदमी है जिसकी शह पर वर्मा बहुत मनबढ़ हो गए हैं।
अपनी इसी ताकत के बल पर वर्मा परिवार ने सीतासरन के कब्ज़ेवाली ज़मीन पर शौचालय का सोख्ता बनवाया जिसके लिए अनेक बार उसे मना भी किया गया लेकिन हर बार गाली-गलौज और झगड़ा होता रहा और कोई हल नहीं निकला।
इकतीस अक्तूबर को सुबह 10 बजे सीतासरन अपनी जमीन पर बने झोपड़े के पास बैठे हुए थे। अचानक वर्मा परिवार के लोग आकर गालियाँ देने लेगे। मना करने पर उन्होंने सीतासरन को जमीन पर गिराकर लात घूंसों से मारना शुरू किया और मरणासन्न स्थिति होने तक मारते रहे। पता चलने पर सीतासरन के परिवार के लोग बचाने पहुंचे तो उन लोगों ने उनकी पत्नी को भी धक्का दिया।
सीतासरन बेहोश होकर गिर गए और उन्हें बहुत उल्टियाँ हुईं। उनके बेटे ने 100 नम्बर पर फ़ोन कर पुलिस बुलाया। घायल बुज़ुर्ग की स्थिति देख अस्पताल ले जाने को कहा गया।
परिवार के लोग सीतासरन को पहले सुरियावां के सरकारी अस्पताल ले गए लेकिन वहाँ कोई इलाज नहीं मिला। स्थिति नाजुक देखकर परिवार के लोग उन्हें भदोही के जीवनदीप अस्पताल ले गए। वहाँ पर उनका एक्सरे और सी टी स्केन कराया गया लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। बल्कि थोड़ी ही देर में उनकी मृत्यु हो गई।
उनके बेटे बताते हैं कि इस पर वहाँ मौजूद डॉक्टर को जब पिताजी की मृत्यु होने की बात कही गई तब डॉक्टर ने कहा कि अभी ये जीवित हैं। इन्हें घर ले जाओ। डॉक्टर ने यह भी कहा कि हम लोग किसी के मरने का पर्चा नहीं बनाते।
अंततः घर के लोग मृत शरीर को लेकर घर आए और फिर से 100 नंबर पर फोन किया। इस पर पुलिस वाले आए और सीतासरन के मृत शरीर का पोस्टमार्टम कराने के लिए चीरघर ले गए। अगले दिन परिवार वालों को डेडबॉडी सौंपी गई। परिवार के लोग एफआईआर दर्ज़ करने के लिए कहते रहे लेकिन पुलिस ने उनकी एक नहीं सुनी।
गाँव में जैसे ही सीतासरन की मौत की खबर पहुँची वैसे ही लोग उनके घर पर जुटने लगे। लोगों में आक्रोश था। मृतक के पुत्र श्याम नारायण ने बताया कि वर्तमान प्रधान-पुत्र के साथ दशरथ वर्मा आये और अंतिम संस्कार और क्रियाकर्म हेतु 50 हजार रुपये लेने के लिए दबाव बनाने लगे लेकिन मृतक के परिवार वालों ने रुपये लेने से मना कर दिया। परिवार वाले एफआईआर दर्ज़ कराना चाहते थे जिस पर पुलिस निष्क्रिय बनी रही।
लेकिन जब सीतासरन का शव अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा था तब वहाँ एक दर्जन पुलिस वाले आए और आधी लाश जल जाने के बाद ही वहाँ से वापस गए। पुलिस द्वारा घर वालों को बहला-फुसलाकर मामले को खत्म करने की बात भी की गई।
घटना के पाँच दिन बाद मृतक के परिवार के लोगों ने भदोही के एसपी के पास जाकर गुहार लगाईं तब जाकर पाँच आरोपियों के नाम से एफआईआर लिखी गई लेकिन अभी भी वे पुलिस की पकड़ से बाहर हैं और खुले में घूम रहे हैं। गाँव के कई लोगों ने बताया कि दसरथ वर्मा के साथ स्थानीय पुलिसवालों का उठना-बैठना है। इसलिए वे लोग पकड़ से बाहर बने हुये हैं।
दूसरी तरफ मृतक सीतासरन के परिवार वालों को विरोधियों द्वारा औकात में ला देने और पुलिस द्वारा मुंह बंद रखने की खुलेआम धमकियाँ मिल रही हैं। मृतक के परिवार वाले भयभीत हैं क्योंकि ज़्यादातर पुरुष सदस्य मुंबई कमाने चले जाएंगे। इसलिए परिवार अनहोनी की आशंका से भरा है।
इस मामले में कुछ ऐसे बिन्दु हैं जिनको नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता
इस पूरे मामले में पुलिस की हीलाहवाली साफ दिखती है। झगड़े के समय जब पीड़ित पक्ष ने 100 नंबर पर फोन किया तब पुलिस घटनास्थल पर पहुँची। सीतासरन की हालत उस समय नाज़ुक थी और वह लगातार उल्टियाँ कर रहे थे।
मौके पर आए पुलिसकर्मियों ने उन्हें पानी पिलाने को कहा लेकिन पानी पिलाये जाने के बाद घायल सीतासरन को फिर उल्टी हुई। ऐसे में पुलिस को स्थिति की गंभीरता को देखते हुये कार्रवाई करनी चाहिए थी लेकिन पुलिस वहाँ से चुपचाप चली गई।
सुरियावाँ स्वास्थ्य केंद्र पर इलाज न मिलने पर जब परिजन सीतासरन को लेकर जीवनदीप अस्पताल भदोही पहुंचे तब वहाँ मौजूद डॉक्टरों ने इलाज की प्रक्रिया में मरीज का पर्चा बनाया और एक्स रे तथा सीटी स्केन करवाया लेकिन मरीज के मर जाने के बाद भी उसे मृत घोषित नहीं किया और न ही इस बारे में कुछ लिखकर दिया बल्कि सीधे घर ले जाने का दबाव बनाया। परिजनों के पूछने पर कहा कि हम लोग किसी के मरने का कागज़ नहीं बनाते।
सीतासरन के मृत शरीर को घर लाने के बाद उनके बेटे ने एक बार फिर 100 नंबर पर फोन किया। पुलिस ने आने के बाद लाश को अपने कब्जे में लिया और पोस्टमार्टम कराने के लिए चीरघर ले गई। लेकिन इसके बाद वहाँ से फिर चली गई।
जब परिजन सीतासरन की अन्त्येष्टि के लिए जा रहे थे तो शादी वर्दी में निजी वाहन से स्थानीय चौकी के दारोगा श्मशान तक गए। साथ ही श्मशान तक एक दर्जन पुलिस वाले भी पहुंचे और शव के आधा जल चुकाने तक वहीं मौजूद रहे।
गौरतलब है कि सीतासरन की मृत्यु के बारह दिन बाद तक उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट परिजनों को नहीं मिली थी। श्याम नारायण ने बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट अभी थाने पर है और कई बार माँगने पर भी नहीं दी गई है।
सवाल उठता है …
इस मामले में कुछ और बातें गौर करनेवाली हैं। आबादी की उक्त ज़मीन के लिए दो पक्षों के बीच लंबे समय से विवाद होता रहा है। गाँव के पूर्व प्रधान राजबहादुर बताते हैं कि यह विवाद काफी बढ़ गया था लेकिन मैंने बीच-बचाव करके समझौता करा दिया था। दोनों की ज़मीन के बीच मेड़ बना दी गई और मेड़ के बीचों-बीच मौजूद बंसवार को काटने की बात हुई। दोनों पक्षों ने इसे मान भी लिया था।
लेकिन कुछ समय बाद जब बंसवार काटकर मेड़ पर बाउंड्री बनाने के लिए सीतासरन ने काम शुरू कराना चाहा तो दूसरे पक्ष ने इससे इन्कार कर दिया। उसने पहले का फैसला नहीं माना और अपनी हनक में सीतासरन के हिस्से की पाँच फुट ज़मीन पर सोख्ता बनवा लिया।
इन बातों को देखते हुये यह माना जाना चाहिए कि दोनों पक्षों के बीच लगातार विवाद बना रहा। सीतासरन के घर की महिलाओं ने बताया कि हम जब भी उधर से गुजरते तो वर्मा लोग हमारे ऊपर छींटाकशी करते थे। कई और लोगों ने भी बताया कि अक्सर वे लोग यह भी कहते थे कि अहीरों को उनकी औकात में ला देंगे। यह जाति विद्वेष का खुला खेल था जिसका परिणाम गंभीर हो सकता था।
इसलिए जब सीतासरन पर विरोधी पक्ष ने जानलेवा हमला किया तब उपरोक्त स्थितियों को ध्यान में रखते हुये इस बात से कैसे इनकार किया जा सकता है कि उनकी मौत सामान्य घटना है?
जिस परिवार से दुश्मनी और अदावत चली आ रही थी उसके एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद दसरथ वर्मा द्वारा अन्त्येष्टि के लिए पचास हज़ार रुपये की पेशकश करना और मामले को रफा-दफ़ा करने का दबाव बनाना यह दर्शाता है दोषी पक्ष जानलेवा हमले से अपने को बचाने की जुगत में लगा था।
पुलिस की गतिविधियाँ शुरू से आखिर तक संदिग्ध रही हैं। झगड़े के बाद घटनास्थल पर पहुँचना और बिना कोई कार्रवाई किए वापस चले जाना और मृत्यु होने पर फिर मृतक के घर आना और लाश को चीरघर ले जाना सही संकेत नहीं है।
अगर पुलिस हमले से सीतासरन की मौत को नहीं स्वीकारना चाहती थी तो सवाल यह उठता है कि फिर अन्त्येष्टि के समय एक दर्जन पुलिसकर्मी और सिविल ड्रेस में दारोगा श्मशान घाट पर क्या करने गए थे? और आधी लाश जलने तक सब के सब वहीं बने रहे। सामान्य स्थितियों में ऐसा कहाँ होता है?
एफआईआर दर्ज़ कराना एक युद्ध लड़ने जैसा बन गया
मृतक सीतासरन के परिजनों ने घटना की एफआईआर और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की और उन्हें थाने से भगा दिया गया। हार कर वे लोग भदोही पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुँचे तब कहीं घटना की एफआईआर दर्ज़ हो पाई।
परिजनों का आरोप है कि संगीन अपराध के बावजूद दोषियों के विरुद्ध हल्की धाराएँ लगाई गईं जबकि पिटाई से ही सीतासरन की मौत हुई थी। अपराधी फिलहाल लापता बताए जा रहे हैं इसलिए अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हो पाई है। गाँव के लोगों का कहना है कि पुलिस नहीं चाहती कि दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करनी पड़े क्योंकि मामले को दबाने के लिए भारी रकम दी गई है।
घटना के बारह दिन बाद भी मृतक के परिजनों को पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं दी गई जबकि इसके लिए वे लोग कई बार थाने जा चुके हैं।
कुल मिलाकर यह वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार और उसके प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़ा करता है कि अपराध के प्रति ज़ीरो टालरेंस का दावा करनेवाली सरकार का पुलिस प्रशासन क्या इसी तरह प्रदेश को अपराधमुक्त बना रहा है कि सरेआम किसी की हत्या हो और उसके दोषियों के खिलाफ एफआईआर भी न दर्ज़ बल्कि अपराधी खुलेआम घूमते रहें।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि मृतक सीतासरन को क्या कभी न्याय मिल पाएगा? अगर नहीं तो क्यों? और अगर हाँ तो कैसे?