गरीबों-मज़लूमों के लिए जिनका घर कभी बंद नहीं होता (भाग – एक)

हाल ही में देखी एक फिल्म का दृश्य है – एक छोटे से कमरे में दो दोस्त दाखिल होते हैं। घुसते ही एक कह उठता है – ‘यह कैसा कमरा है भाई, शुरु होते ही खतम’ मुंबई में जितनी गगनचुम्बी अट्टालिकाएं हैं उतने ही असंख्य ऐसे कमरे झुग्गी – झोंपड़ियों और चालों में स्थित हैं … Continue reading गरीबों-मज़लूमों के लिए जिनका घर कभी बंद नहीं होता (भाग – एक)