विश्व की सबसे तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के बावजूद, भारत में भुख और कुपोषण एक बड़ी और बुनियादी समस्या बनी हुई है। आज विश्व भूख सूचकांक में भारत बहुत नीचे और कमजोर बच्चों के मामले में सबसे ऊपर के देशों में शामिल है। इधर हमारी सरकार देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य पाले हुये है लेकिन इस देश की किसी भी सरकार ने अभी तक भूख और कुपोषण को जड़ से खत्म करने के लक्ष्य के बारे में सोचा तक नहीं है। हालांकि देश के अनाज भंडारों में भारी मात्रा में अनाज है और इससे निपटने के लिये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून भी लागू है लेकिन समस्या की व्यापकता बनी हुई है। ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2018 की रिपोर्ट बताती है कि भारत कुपोषित बच्चों के मामले में अव्वल देश है जबकि 2019 के विश्व भूख सूचकांक में शामिल कुल 117 देशों की सूची में भारत 102वें पायदान पर था। 2020 में 107 देशों 94वें स्थान पर और 2021 में 116 देशों की सूची में 101वें स्थान पर है। ऐसा नहीं है कि इस देश में भूख और कुपोषण की समस्या से निपटने के लिये संसाधनों या सामर्थ की कमी है दरअसल समस्या मंशा, इरादे और सबसे ज्यादा आर्थिक व राजनीतिक दृष्टिकोण की है।
भूख और कुपोषण का साया
विकास के तमाम दावों और योजनाओं के बावजूद भारत भुखमरी पर लगाम लगाने में फिसड्डी साबित हुआ है। भूख आज भी भारत की सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। देश में भूख की व्यापकता हर साल नये आंकड़ों के साथ हमारे सामने आ जाती है जिससे पता चलता है कि भारत में भूख की समस्या कितनी गंभीर है।
2014 से 2019 के बीच वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की स्थिति
वर्ष |
रैंकिंग में शामिल कुल देश |
भारत की स्थिति |
2014 |
76 |
55 |
2015 |
104 |
80 |
2016 |
118 |
97 |
2017 |
119 |
100 |
2018 |
119 |
103 |
2019 |
117 |
102 |
2020 |
107 |
94 |
2021 |
116 |
101 |
आंकड़ों के हवाले से शानदार लेख.