लक्ष्मीकांत शर्मा नहीं रहे। दुनिया उनके बारे में जो भी सोचती हो मेरे उनके संबंध में जो अनुभव हैं उनके आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि वे एक अत्यंत संवेदनशील इंसान थे। वैसे तो उनके बारे में मेरे बहुत से अनुभव हैं परंतु यहां आज उनमें से कुछ का उल्लेख करना चाहता हूं।
सबसे पहले मैं एक अत्यंत मार्मिक घटना का उल्लेख करना चाहूंगा। एक बच्ची थी जिसका नाम था रंजना। वह जन्म से ही दिव्यांग थी। उसकी दिव्यांगता भी असाधारण थी। वह जन्म से लेकर मृत्यु तक सिर्फ पेट के बल लेटी रही। उसके न पैर चलते थे और न हाथ। परंतु उसमें अद्भुत प्रतिभा थी। एक दिन उसकी इस गंभीर स्थिति के बारे में मुझे पता लगा और मुझे यह भी बताया गया कि वह कविता लिखती है, चित्रकारी करती है और सुंदर वस्तुएं बनाती है। मैंने जब उसकी कविताएं पढ़ीं तो पाया कि वे अद्भुत थीं। मैंने जानना चाहा कि वह लिखती कैसे है? मुझे बताया गया कि वह दांतों से कलम पकड़कर लिखती है और दांतों से ही ब्रुश पकड़कर पेटिंग करती है। उसकी माता श्रीमती संध्या मालवीय, पिता श्री एच पी मालवीय व उसके भाई-बहन बहुत लाड़-प्यार से उसका पालन-पोषण करते थे। ज्यों-ज्यों मेरा उससे संपर्क बढ़ा मेरा यह संकल्प दृढ़ होता गया कि उसकी इस अद्भुत प्रतिभा का सम्मान होना चाहिए। और सम्मान भी ऐसा कि उसकी प्रतिभा की ख्याति चारों ओर फैले।
उसकी स्थिति के बारे में मैंने लक्ष्मीकांतजी से चर्चा की। उनका रिस्पांस था कि ऐसी बच्ची के लिए आप जो भी कहेंगे मैं करूंगा। मैंने उनसं कहा सबसे पहले उसका सम्मान किया जाए। इसके लिए आपके निवास पर कार्यक्रम हो। हम लोग बच्ची को आपके निवास पर लाएंगे। इस पर उन्होंने कहा “आप मुझसे यह पाप करवाएंगे। वह यहां नहीं आएगी। मैं उसके घर जाऊंगा।” फिर रंजना के घर के बाहर एक विशाल टेंट लगाया गया, कुर्सियां, तख्त, गद्दे, तकिए सबका इंतजाम हुआ, थोड़ी रोशनी भी की गई। लक्ष्मीकांतजी ने उसके घर पहुंचकर उसका सम्मान किया। यहीं नहीं, उसे 25 या 50 हजार की थैली भी भेंट की गई। उन्होंने उसके कविता संग्रह का प्रकाशन करवाने की भी घोषणा की। उन्होंने कहा कि कविता संग्रह के प्रकाशन का सारा व्यय शासन वहन करेगा और बाद में संग्रह शासन द्वारा खरीदा भी जाएगा। जब ये घोषणाएं की जा रहीं थीं तब अनेक लोगों की आंखों में आंसू आ गए। इसके बाद जब भी मेरी उनसे मुलाकात होती थी वे पूछते थे ‘‘वह बिटिया कैसी है‘‘।
इसके साथ ही मुझे एक और घटना याद आ रही है। महान कवि एवं शिक्षाविद् श्री चन्द्रकांत देवताले मेरे अच्छे मित्र थे। वे उज्जैन में रहते थे। एक बार अपने उज्जैन प्रवास के दौरान मैं उनसे मिला। उन्होंने मुझे बताया कि “मेरी एक बेटी उज्जैन के एक सरकारी कालेज में पढ़ाती है। मेरी पत्नि नहीं रहीं। मैं अकेला हूं। ट्रांसफर का सीजन आ रहा है। कृप्या यह सुनिश्चित करने में मेरी मदद करें कि उसका ट्रांसफर न हो”। मैंने लक्ष्मीकांतजी से अनुरोध किया कि देवतालेजी की बेटी को उज्जैन में ही रहने दिया जाए। जहां तक मुझे याद है शर्माजी ने हमारे अनुरोध का सम्मान किया।
मुझे एक घटना और याद आ रही है। जब वे जनसंपर्क मंत्री बने तो मैंने उनसे मिलकर कहा कि मैं एक पत्रिका निकालता हूं। कृप्या उसे मिलने वाले विज्ञापन की राशि में बढ़ोत्तरी करवा दें। उन्होंने कहा “एक बात आप कान खोलकर सुन लें। इस मामूली से काम के लिए अब कभी आप स्वयं नहीं आएंगे। आप किसी के हाथ कागज भिजवा दिया करिए और यदि आप चाहेंगे तो मेरा आदमी आपके घर से कागज ले जाएगा”।
वे न सिर्फ एक अच्छे इंसान थे वरन एक सक्षम विधायक भी थे। पहली बार विधायक बनने के बाद उन्हें सर्वोत्तम विधायक का सम्मान भी मिला था। उस समय विधानसभा अध्यक्ष एक उच्चस्तरीय समिति का गठन करते थे। यह समिति श्रेष्ठ मंत्री, श्रेष्ठ विधायक, श्रेष्ठ विधानसभा अधिकारी / कर्मचारी आदि का चयन करती थी। इसका चयन संबधित के परफॉरमेंस के आधार पर होता था। जिस समिति ने लक्ष्मीकांतजी को श्रेष्ठ विधायक चुना था, मैं भी उसका सदस्य था।
कुमुद सिंह की बेटी यशस्वी कुमुद की यादें
“5 अक्टूबर 2011 को एक कार्यक्रम में मैंने बेटियों पर आधारित एक आल्हा की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा जी ने उस गीत कि लिए मुझे 5 हजार रुपये इनाम स्वरूप देने की घोषणा की। बात को लगभग एक साल बीत गया मुझे बार बार लगता कि जब घोषणा की तो दिया क्यों नहीं , ये झूठी घोषणा क्यों? एक साल इंतज़ार के बाद मैंने मंत्री जी को सम्बोधित करते हुए एक चिट्ठी लिखी – अंकल आपने मुझे 5 हजार रुपये देने की घोषणा कर दी और यह बात मैने खुशी में अपने सारे दोस्तों को बता दी अब वे सभी मुझसे आए दिन चाकलेट की मांग करते हैं, आप बताइये मैं कहाँ से खिलाऊं? लगभग एक महीने बाद एक दिन एक सरकारी व्यक्ति मुझे एक लिफाफा देकर गया जिसमें 5 हजार का चेक था। मैंने तुरंत उन्हें धन्यवाद की चिट्ठी लिखी”।
बाद में उन्हें व्यापंम की घटना के चलते मंत्री पद छोड़ना पड़ा और जेल में भी रहना पड़ा। उस दौरान मैं जेल में उनसे मिलने गया। जेलर ने कृपा कर अपने चेम्बर में मेरी उनसे मुलाकात करवाई। मुलाकात खत्म होने के बाद उन्होंने मेरे पैर छुए और कहा कि आपके आने के क्षण को मैं इस जन्म तो क्या अगले जन्म तक भी नहीं भूलूंगा। मैंने पाया कि उनकी आंखों में आंसू थे। मैं भी उन क्षणों को जीवनभर नहीं भुला पाऊंगा।
जाने-माने पत्रकार लज्जाशंकर हरदेनिया भोपाल में रहते हैं ।