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गैर कांग्रेसवाद के गर्भ से निकली सांप्रदायिक सरकार के मुखिया की हताशा क्या कहती है?
सन 1950 से 1977 अर्थात 27 सालों में जनसंघ को सिर्फ छह प्रतिशत मतदाताओं ने पसंद किया था लेकिन 1963 के बाद डॉ. राम मनोहर लोहिया के गैर कांग्रेसी राजनीतिक कदम के चलते शिवसेना से लेकर मुस्लिम लीग और जनसंघ जैसे घोर सांप्रदायिक दलों के साथ गठजोड़ की वजह से जनसंघ को बहुत लाभ हुआ। इस लेख में जाने-माने लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ सुरेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक विरासत के बहाने उनकी हताशा पर बात कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी पद की गरिमा के प्रतिकूल बातें क्यों कर रहे हैं?
वर्ष 2014 के बाद देश की स्थिति से सभी वाकिफ हैं। बीजेपी ने सांप्रदायिक घृणा फैला कर ध्रुवीकरण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और इस काम का नेतृत्व किसके हाथ में है, सभी जानते हैं। इन्हीं बातों को उल्लेखित करते हुए डॉ सुरेश खैरनार ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम खुला पत्र लिखा।

