Thursday, March 28, 2024

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 आज का 1984

पहला हिस्सा जार्ज ऑरवेल (Geogre Orwell) का उपन्यास 1984  भविष्य में अधिनायकवाद के स्वरूप का वर्णन करता है। यह पुस्तक 1949 में प्रकाशित हुई और 1950 में ऑरवेल की मृत्यु हो गई। उन्हें स्तालिन के अधिनायकवादी एवं हिटलर के फासीवादी तरीकों से सख्त नफ़रत थी। वे ताउम्र डेमोक्रेटिक सोशलिज्म के पक्षधर रहे। साहित्य के बहुत […]

पहला हिस्सा

जार्ज ऑरवेल (Geogre Orwell) का उपन्यास 1984  भविष्य में अधिनायकवाद के स्वरूप का वर्णन करता है। यह पुस्तक 1949 में प्रकाशित हुई और 1950 में ऑरवेल की मृत्यु हो गई। उन्हें स्तालिन के अधिनायकवादी एवं हिटलर के फासीवादी तरीकों से सख्त नफ़रत थी। वे ताउम्र डेमोक्रेटिक सोशलिज्म के पक्षधर रहे। साहित्य के बहुत सारे आलोचक 1984  को उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति के रूप में याद करते हैं। यह पुस्तक अतीत का अवलोकन करते हुए भविष्य की भयावह तस्वीर प्रस्तुत करती है।

जार्ज ऑरवेल

आज से बहत्तर साल पहले लिखे गए उपन्यास को पढ़ते हुये हम इसलिए सन्न रह जाते हैं कि लेखक ने जिस राजनीतिक प्रणाली का चित्रण किया है वह आज के भारतीय राजनीतिक चरित्र की बहुत गहरी आईनादारी करता है। यही नहीं, इसके भीतर झांकने की कोशिश में हमें कई देशों का वर्तमान भी दिखने लगता है।

मैंने इसी को ध्यान में रखकर पुस्तक के कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं की ओर ध्यान आकृष्ट कराने की कोशिश की है। यहां साहित्यिक समालोचना के शास्त्रीय पक्ष को सामने लाने का कोई भी प्रयास नहीं है। यह लेख एक पाठक की हैसियत से इस पुस्तक को आज के संदर्भ में पढ़कर नागरिकता पर विचार करने का अवसर प्रदान करायेगा।

मेरी कोई भी हैसियत नहीं है कि मैं आलोचना के परंपरागत स्वरूप को यहां प्रस्तुत कर सकूं। यहां रखे गये विचार किसी भी सचेत पाठक के हो सकते हैं पर लिखने का काम हमेशा कठिन होता है और आज के समय को याद करके देखें तो यह जोखिम भरा भी है।

आप जिस समय में जी रहे होते हैं यह उपन्यास उससे ही अपना चरित्र तय करता है। उपन्यास के कुछ विवरण किसी खास भौगोलिक क्षेत्र की राजनीतिक परिस्थितियों के वस्तुगत दस्तावेज़ की तरह सामने आते हैं। तब यह पुस्तक यथार्थ का बोध कराती है और फिर पाठक ऑरवेल के काल्पनिक संसार के रोमांस से भटकता है। फिर घबराता है। या सचेत नागरिक के रूप में जनतंत्र को बचाने की कोशिश में लगता है। जहां जनतांत्रिक मूल्य बचे हैं वहां पर पाठक इस पुस्तक की काल्पनिक दुनिया से रूबरू होंगे।

यह उपन्यास गल्प एवं कल्पनालोक का खूबसूरत मिश्रण है। लेकिन ऑरवेल के काल्पनिक देश ओसिनिया का बिग ब्रदर एक अलग ही चरित्र लगता है। वह सारे पुराने मानवीय मापदण्डों से इतर इन प्रमुख नारों पर सदैव काम करता है। ये नारे हैं युद्ध ही शान्ति है, स्वतंत्र होना गुलामी का प्रतीक है, एवं ‘बुद्धिहीनता आपको मजबूती देती है। ये सभी उपन्यास के व्याकरण में नई भाषा  के प्रयोगों के दार्शनिक प्रतिबिम्ब हैं।

[bs-quote quote=”हम लोगों को आज अपने मुल्क में अचानक ही योग के प्रति सरकारी रुचि देखने को मिलती है। योग इस भौगोलिक क्षेत्र में पहले से ही है। इसका व्यावसायिक उपयोग भी होता आया है पर अब नई भाषा के जमाने में राजनीतिक हलकों में एक खास किस्म के बहुसंख्यक समुदाय का आधिपत्य बढ़ाने वाला है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

नई भाषा एवं पुरानी भाषा पर चर्चा किए बगैर इस उपन्यास की आत्मा को नहीं समझा जा सकता है। इसलिए यह शब्दावली बार बार यहां प्रयोग में है। इस पुनरावृत्ति दोष के लिए अगर किसी को जिम्मेदार ठहराना है तो बिग ब्रदर या उसके तरह के शासकों को ठहराइए। ऑरवेल एवं पाठक इसी यथार्थ में जी रहे हों तो आम लोगों की अनुभूति इससे इतर क्यों हो?

इस उपन्यास की आत्मा को तब तक नहीं समझा जा सकता है जब तक कि इस पुस्तक के किरदारों के बीच होने वाले संवादों में भाषायी बदलाव को ठीक से नहीं समझा जाएगा। ओसिनिया की नई भाषा सीधे प्रयोगों को प्रोत्साहित करती है जिसे व्याकरण की जरूरत नहीं है।

नई भाषा का मुख्य उद्देश्य पुरानी भाषा के लालित्य को समाप्त करना भर नहीं है, बल्कि उन तमाम ऐतिहासिक लेखन को भी समाप्त करना है जो संघर्षों के इतिहास को कहते हैं एवं मानवीय संवदेना को आम लोगों के बीच संप्रेषित करते हैं। यहां पर अगर हम लोग चाहें तो व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी द्वारा फैलाये झूठों की नई भाषा से कुछ तुलना कर सकते हैं।

उदाहरण के तौर पर महिलाओं को स्वतंत्र पत्रकारिता से बाहर करने के लिए उनके लिए ‘प्रेस्टीच्युट’ शब्द को इस्तेमाल करना सिर्फ भाषा को साधारण बनाने की कवायद नहीं है, बल्कि महिलाओं के वजूद को मिटाने की कोशिश भी है। इस उपन्यास में महिलाओं का इस्तेमाल बिग ब्रदर के दर्शन को आम लोगों के बीच फैलाने के लिए भर सीमित है।

ओसिनिया में यूं तो किसी पार्टी कैडर का कोई वजूद नहीं है। आम नागरिक एवं महिलाओं के लिए तो ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। महिलायें इस्तेमाल की जाती हैं बिग ब्रदर की जासूसी के लिए। मूल समस्याओं से आम लोगों का ध्यान भटकाने के लिए।

इस संदर्भ में एक प्रसंग आपको वास्तविकता के करीब लाता है। अचानक ही आम लोगों को शारीरिक रूप से फिट रखने के लिए महिला सभी पार्टी कैडर को व्यायाम कराने लगती है। अपने आपको वह कई बच्चों की मां घोषित करते हुए बताती है कि देखिए मैं कितनी फिट हूं।

हम लोगों को आज अपने मुल्क में अचानक ही योग के प्रति सरकारी रुचि देखने को मिलती है। योग इस भौगोलिक क्षेत्र में पहले से ही है। इसका व्यावसायिक उपयोग भी होता आया है पर अब नई भाषा के जमाने में राजनीतिक हलकों में एक खास किस्म के बहुसंख्यक समुदाय का आधिपत्य बढ़ाने वाला है।

इस उपन्यास को पढ़ते हुये हमेशा भय और संदेह की अनुभूति होती है। भय प्यार का भी है। लेकिन यह इतना खौफनाक है कि लोग एक दूसरे से मानवीय संवेदना के आधार पर मिलना नहीं चाहते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि मानवीय संबधों की वे तमाम वृत्तियां जो संवेदनाओं एवं ज्ञान-इन्द्रियों से सहज रूप में साकार होती हैं बिग ब्रदर की पार्टी उन्हें समाप्त करने की कोशिश करती है।

[bs-quote quote=”उदाहरण के तौर पर महिलाओं को स्वतंत्र पत्रकारिता से बाहर करने के लिए उनके लिए ‘प्रेस्टीच्युट’ शब्द को इस्तेमाल करना सिर्फ भाषा को साधारण बनाने की कवायद नहीं है, बल्कि महिलाओं के वजूद को मिटाने की कोशिश भी है। इस उपन्यास में महिलाओं का इस्तेमाल बिग ब्रदर के दर्शन को आम लोगों के बीच फैलाने के लिए भर सीमित है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

ओसिनिया इस लक्ष्य को 2050 तक प्राप्त करना चाहता है। 1949 में प्रकाशित यह पुस्तक 100 साल का समय नई भाषा  के लिए जरूरी समझती है। क्या प्रास्टीच्युट, सेकुलर, अर्बन नक्सल, लव जेहाद आदि शब्द व्हाट्सप्प के द्वारा ईजाद नई ज़बान का आगाज हैं? इन शब्दावलियों की उत्पत्ति के संबंध में किसी स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि भाषा साधारण रूप में बिग ब्रदर की मंशा को सामने लाने के लिए है?

इसके लिए दक्षिणपंथी शक्तियां 100 साल से तैयारी कर रही थीं? ऐसी शब्दावली अभी संवैधानिक रूप से स्थापित नहीं है। पर इसकी पूरी कोशिश अपने या हमारे जैसे देशों में जारी है। ऐसे मुल्कों के पाठक इस पुस्तक की कुरूप कल्पना के उछाल ही नहीं, बल्कि यथार्थ भी देखना शुरू करते हैं। इस संदर्भ में पाठक का द्वन्द्व एवं पात्रों को देखने का नजरिया देशकाल की परिस्थिति के साथ बदलेगा और यह रचना बार-बार नया स्वरूप लिए प्रस्तुत होती है, इसलिए इसका मूल्यांकन आज भी होना चाहिए। कालजयी रचना ऐसे ही बनती है।

बिग ब्रदर के साम्राज्य के तीन विशेष रूप से प्रचारित नारों की चर्चा अनेक बार होती है तथा इस उपन्यास के सभी पात्र इसके चमकने से ही डरते हैं। बिग ब्रदर भाषा के साथ-साथ मंत्रालयों को भी नया नाम देता है। पर पूरी की पूरी कवायद  बिग ब्रदर के नियत्रंण की कोशिश की उपज है। मंत्रालयों के नाम हम सभी को आज का बिम्ब भी प्रस्तुत करता है। चार मुख्य मंत्रालयों द्वारा ओसिनिया की सरकार चलती है।

ये मंत्रालय हैं- 1- सत्य मंत्रालय (यह मंत्रालय समाचार, मनोरंजन, शिक्षा और ललित कलाओं को निर्देशित करता है), 2- शांति मंत्रालय (यह सिर्फ लड़ाई के लिए बनाया गया है), 3- प्रेम मंत्रालय (यह कानून-व्यवस्था के नाम पर कमरा नं 101 में सुचिन्त अपराधियों के दिमाग भी ठीक करता है) और 4- द मिनिस्ट्री ऑफ प्लेण्टी(अर्थव्यवस्था का देख-रेख करता है)।

इनके नाम नई ज़बान में क्रमशः Minitrue, Minipax, Miniluv एवम् Miniplenty हैं। इनमें भाषाई विचार नहीं है, पर लोगों को नयापन दिखाने का प्रयास है। ओसिनिया भाषा की खूबसूरती एवं लालित्य जैसी चीजों को मिटाना चाहता है, क्योंकि साहित्य के अवयव मानवीय संवेदनाओं को जन्म देते हैं तथा ऐतिहासिक संदर्भ में शब्दों के प्रयोग को जानने को प्रेरित करते हैं। ऑरवेल की दुनिया में यह सर्वथा वर्जित है। 2050 तक इसकी प्राप्ति का लक्ष्य है। जब पुरानी भाषा समाप्त हो जायेगी तो शेक्सपीयर, मिल्टन, डिकेन्स आदि की कालजयी रचनायें, जो लोगों के संघर्ष की कहानी कहती हैं, वे स्वतः भुला दी जायेंगी।

फिर बिग ब्रदर का ही नाम कहानियों और इतिहास में दर्ज रहेगा। नई शिक्षा नीति की आड़ में इसकी तैयारी अपने देश में इतिहास एवं साहित्य के पाठ्यक्रम को समाप्त करने के रूप में हो रही है। पुराण के संदर्भ अब इतिहास को जन्म देंगे। साहित्य एवं इतिहास के बीच का फर्क समाप्त हो जायेगा। फिर आप वास्तविकता से रू-ब-रू होने लगते हैं एवं काल्पनिक कहानी के पात्र आपसे मुख़ातिब होते हैं।

जनतांत्रिक मूल्यों का क्षरण आपको ऑरवेलियन फेन्टेसी से निकालकर वास्तविकता का बोध कराता है। यह द्वन्द्व एवं अंतर्विरोध पाठकों के मन में चलता ही रहता है। ऐसी समालोचना आपको हतोत्साहित करती होगी पर इस पुस्तक में अभी और भी कुछ ऐसे पहलू हैं जो मार्क्सवादी आलोचना को पुख्ता करते हैं। थोड़ा धैर्य से ऑरवेल को पढ़ने की जरूरत है। फिर भीतर ही भीतर इसके मूल्यांकन एवं संदर्भों के साथ पुनर्मूल्यांकन की जरूरत आपको कुरेदने लगती है।

नई ज़बान की शब्दाबली की संरचना को समझने की जरूरत है। इसके लिए 1984 आपको एक परिशिष्ट भी देता है। उपन्यासों में ऐसे प्रयोग बहुत ही कम देखने को मिलते हैं। इसे साहित्य में एक नये प्रयोग के तौर पर भी आप देख सकते हैं जो तर्कसंगत लगता है।

[bs-quote quote=”नई ज़बान की शब्दाबली की संरचना को समझने की जरूरत है। इसके लिए 1984 आपको एक परिशिष्ट भी देता है। उपन्यासों में ऐसे प्रयोग बहुत ही कम देखने को मिलते हैं। इसे साहित्य में एक नये प्रयोग के तौर पर भी आप देख सकते हैं जो तर्कसंगत लगता है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

यह बताता है कि इतिहास को खत्म करने के लिए अधिनायकवादी ताकतें पूरी तैयारी से जुटती हैं। उन्हें सौ साल तो कम से कम चाहिए ही! आम जनता अपने रोजमर्रा की जिन्दगी से जूझे पर बिग ब्रदर अपने एजेण्डे पर कायम रहेगा। ऑरवेल के भीतर एक टीस है कि सचेत लोग भी डर से विरोध नहीं करते है। यह पुस्तक इस आहत चेतना का खूबसूरत दस्तावेज भी है।

बिग ब्रदर भाषा को साधारण एवं हल्का करना चाहता है ताकि शब्दों के वर्ण विचार ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में न देखे जायें। इससे फायदा यह होगा कि ओसिनिया में कोई भाषा विज्ञान एवं इतिहास का जानकार बचेगा ही नहीं। बिग ब्रदर लेखकों एवं इतिहासकारों की टीम बनाता है ताकि नई ज़बान का प्रयोग बढ़े।

आपको याद ही होगा कि आज के संदर्भ में भी नव इतिहास लेखन की परंपरा जारी है जिसके साक्ष्य महाकाव्यों एवं पुराणों (मिथकीय चरित्रों) पर आधारित हैं। तथ्यपरक साक्ष्य इतिहासकारों में वैज्ञानिक सोच पैदा करता है, जिससे वे खुद एवं अपने पढ़ने वालों को प्रश्न उठाने को प्रेरित करते हैं जबकि यह बिग ब्रदर की दुनिया में वर्जित है।

सचेत पाठकों को हाल ही की एक विज्ञप्ति याद होगी जिसमें यह बात थी कि लेखक एवं कवि बनाने की सरकारी ट्रेनिंग दी जायेगी। यह कृत्रिम बुद्धिवादी मशीन (Artificial Intelligent Machine) की तरह काम करेगा जिसके इनपुट एवं आउटपुट पहले से ही तय होंगे। रचना की सृजनशीलता खुद-ब-खुद समाप्त हो जाएगी। इस उपन्यास में इसका प्रारूप परिशिष्ट में मिलता है। आरवेल की सृजनशीलता का उत्कृष्ट स्वरूप शब्दों के वर्गीकरण में दिखता है। आइए, इस पुस्तक के  कुछ साक्ष्यों को देखें और अपने समय में झाँकें।

ऑरवेल बिग ब्रदर की नई भाषा को 2050 तक स्थापित करने के लिए तीन तरह की शब्दावली का कोश प्रस्तुत करते हैं। शब्दकोश के व्याकरण एवं प्रयोगों को नये रूप में प्रस्तुत करता है। प्रत्येक शब्द बिग ब्रदर की नई भाषा में संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, क्रिया-विशेषण आदि के बदले रूप में ही इस्तेमाल किए जा सकते हैं। व्याकरण एवं अलंकार के विभाग अपने आप समाप्त हो जायेंगे!

ये तमाम विशेषज्ञ सिर्फ ‘मिनिलव’ (जिसके तहत सिर्फ मनुष्य के प्रति नफरत फैलाने का काम होता है) के साथ जासूसी करेंगे तथा तर्क करने वालों को सोचने वाला अपराधी या आज के संदर्भ में अर्बन नक्सल और राष्ट्रद्रोही घोषित कर अपना भरण-पोषण करेंगे। यह भय सबसे अधिक साहित्य के विद्यार्थियों का होगा। शब्दावली के साथ-साथ शब्दों के प्रयोग को भी यह शब्दकोश रेखांकित करता है। जिसे Minitrue (सत्य मंत्रालय,  जो समाचार, मनोरंजन, कला आदि को नियंत्रित करता है) एवं Miniluv विभाग स्वीकृति प्रदान करता है।

जैसे ‘स्वतंत्र’ शब्द तो शब्दकोश में रहेगा पर वे तमाम संबंधित प्रयोग अर्थात ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’, ‘मानवीय स्वतंत्रता’ जैसे भाव वर्जित रहेंगे। हिन्दी के पाठक निश्चित रूप से मुक्तिबोध को याद कर सकते हैं। ‘शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं तब ….।’ सौ साल के बाद शायद ऐसे प्रयोग को समझने वाली पीढ़ी नहीं बचेगी।  फिर बिग ब्रदर की ही भाषा रहेगी और इतिहास भी। मार्क्सवादी  आलोचक इसे कोरी-कल्पना मानते हैं। वे मानव संघर्ष के इतिहास को समझकर ऐसा सोचते हैं। पर हिटलर तो आतंक फैला ही सकता है! इसलिए सचेत रहने की जरूरत है।

अब हमलोग इस पुस्तक में नई भाषा के बी शब्दकोश की बात करते हैं।  यह बिग ब्रदर के इनर सर्किल के लोगों के लिए हैं। आपको याद है कि आजकल आई टी सेल के कुछ लोगों को सरकारी नेतृत्व एक पैटर्न (टूलकिट) देता है जिसके मायने सिर्फ अंदरूनी दायरे के लोग समझते हैं तथा कुछ शब्दों के प्रयोग करने वाले लोगों की उसी से पहचान करते हैं।

ये शब्द मानव-मुक्ति एवं स्वतंत्रता से जुड़े होते हैं। उन्हें पहचान कर वैसे व्यक्ति को ‘आपराधिक सोच’ का भाग मानते हैं। फिर कमरा नं. 101 में वैसे लोगों का इलाज किया जाता है। आज के संदर्भ में इसका अर्थ मॉबलिंचिंग है तथा कानूनी स्वरूप यूएपीए एवं देशद्रोह के अधीन कैदी हैं? इन सभी को आप इस पुस्तक में चर्चित सोचनेवाले अपराधी की तरह देख सकते हैं।

[bs-quote quote=”अब हमलोग इस पुस्तक में नई भाषा के बी शब्दकोश की बात करते हैं।  यह बिग ब्रदर के इनर सर्किल के लोगों के लिए हैं। आपको याद है कि आजकल आई टी सेल के कुछ लोगों को सरकारी नेतृत्व एक पैटर्न (टूलकिट) देता है जिसके मायने सिर्फ अंदरूनी दायरे के लोग समझते हैं तथा कुछ शब्दों के प्रयोग करने वाले लोगों की उसी से पहचान करते हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

सी शब्दकोष विज्ञान एवं तकनीकी से संबंधित है। जो पुरानी ज़बान की तरह ही है। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संबंधो के लिए है। मार्क्सवादी आलोचकों की बातें कि बिग ब्रदर दुनिया पर राज नही कर सकता है, क्योंकि वह नई ज़बान को सभी अर्थों में लागू नहीं करता है।

मोबाइल, फेसबुक, ट्वीटर उपग्रह के प्रक्षेपण, सुसज्जित हवाई जहाज आदि अंतरराष्ट्रीय स्तर के होने ही चाहिए? लड़ाई के लिए राज्य की सीमा भी चाहिए एवं अंतरराष्ट्रीय सहायता भी? यह अंतर्विरोध ही ओसिनिया के लिए मुश्किल पैदा करेगा? विज्ञान एवं तकनीकी विशेषज्ञों का आदान प्रदान इस विचार को और भी मजबूती प्रदान करेगा। विशेषज्ञ  तो मनुष्य ही होंगे। दूसरे संप्रभुत्व देश के नागरकि होंगे। वे जनतंत्र एवं स्वतंत्र चेतना के वाहक भी हो सकते हैं।

इसके इलाज के लिए दोहरी ज़बान की आवश्यकता है। आज का बिग ब्रदर इस अर्थ में ओरवेल की काल्पनिक दुनिया से सीखता है एवं अन्तर्राष्ट्रीय सम्मलेन में मानव-मुक्ति की बात करता है। पर देश के भीतर A एवं B के तहत शब्दावली का प्रयोग करता है। ये दुनिया के बहुत सारे मुल्कों के राष्ट्राध्यक्ष करते हैं।

राजनीतिज्ञों को इसलिए बहुत सारे विशेषणों से साहित्यकार नवाजते हैं इनमें से एक विशष दर्जा क्मउवहवहल का भी है। आप हिटलर के ओजस्वी भाषण को याद करें तथा उसके राष्ट्रीय समाजवाद की अवधारणा के तहत किये जाने वाले यातना शिविर को भी संज्ञान में रखें। इसलिए कुछ आलोचक आरवेल की 1984 को अतीत का दस्तावेज भी मानते हैं। पर अपने देश का वर्तमान कुछ नया है।

ये 1949 में ओसिनिया के भविष्य के भयावह स्वरूप के कुछ अंशों का प्रतिबिम्ब भी है। हमारे लिए 1984 उपन्यास फंतासी के साथ यथार्थवाद का भी बोध कराता है। यह अंतर्विरोध एवं समझने के द्वन्द्व विभिन्न राजनैतिक परिस्थितियों में पाठकों को अलग-अलग एहसास कराता है। इस मायने में यह उपन्यास आज भी पढ़े जाने योग्य हैं। रचनाएं ऐसे ही कालजयी नहीं होती हैं?

क्रमशः

साहित्यिक-सांस्कृतिक विषयों के गंभीर अध्येता डॉ राजीव कुमार मंडल जाने-माने वैज्ञानिक और चिंतक हैं। वे समसामयिक विषयों पर लगातार लिखते-बोलते रहते हैं। फिलहाल वे आईआईटी बीएचयू के खनन विभाग में प्रोफेसर हैं।

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2 COMMENTS

  1. बहुत सटीक विश्लेषण।
    थोड़ा भी सजग आदमी आज के शासन व्यवस्था से उपन्यास को-रिलेट कर सकता हैं।यह अद्भुत संयोग है कि 1925 में स्थापित एक विचारधारा 2025 में में सौंवी वर्षगाँठ मनाएगा।उपन्यास में वर्णित देश की कार्यप्रणाली और इंडिया की कार्यप्रणाली में अद्भुत साम्य है।
    डॉ राजीव मंडल को इस उपन्यास के पुनर्पाठ के लिए बधाई।उपन्यास के पूर्व पाठक और नए पाठक के लिए अधिनायकवाद को ठीक से देख,समझ व मूल्यांकित करने का यही समय और मौका है।

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