गाँव के लोग को सबसे पहले अक्तूबर 2016 से उत्तर प्रदेश के बनारस जिले के एक गाँव से एक द्वैमासिक पत्रिका के रूप में शुरू किया गया जो पिछले छः वर्ष से लगातार निकल रही है । अब तक इसके कुल 30 अंक निकल चुके हैं। कुछ व्यतिक्रमों और लगातार आर्थिक तंगी के बावजूद यह निकल रही है।
नाम से ही स्पष्ट है कि यह हाशिये के समाजों की अभिव्यक्ति है, जो जाति-पाँति, धर्म, क्षेत्र और किसी तरह की संकीर्णता से अलग जनसरोकारों को समर्पित है।
गाँव के लोग पत्रिका में इस बात को केंद्रीय जगह दी गई तथा दश में चल रहे जनांदोलनों और जनता के सवालों को अत्यंत महत्व के साथ उन लोगों तक पहुँचाने की कोशिश की गई जो स्वयं सामाजिक अन्याय के खिलाफ लगातार लड़ रहे हैं।
इस पत्रिका का उद्देश्य गावों-जंगलों-पहाड़ों के बीच हो रहे संघर्षों को व्यापक मानवीय समाज के संघर्षों से जोड़ना रहा है। प्रकृति और पर्यावरण के विनाश और कॉर्पोरेट द्वारा सम्पूर्ण मनुष्यता को शोषण और पतन के गर्त में धकेलने की साजिश के साथ ही ब्राह्मणवादी सोच और व्यवहार के माध्यम से मनुष्यों के बीच ऊंच-नीच की खाई बनानेवाले मनुवादी वायरसों के खिलाफ गाँव के लोग ने लगातार लिखा है।
कहना जरूरी है कि यह हमारी भाषा का ऐसा मंच है जिसने धार्मिक फासीवाद और कॉर्पोरेटपरस्त एवं जनविरोधी नीतियों की मुखर आलोचना की है। बिना डरे पूरे साहस के साथ गाँव के लोग ने किसानों, मजदूरों , स्त्रियों, बच्चों, आदिवासियों, पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की वकालत तो की ही है।
कॉर्पोरेट लूट, अपराधीकरण, जबरन भू-अर्जन, जंगलों की कटाई, नदियों की चोरी और पहाड़ों के अवैध खनन तथा पर्यावरण विनाश के खिलाफ इस गाँव के लोग ने जनता की हर आवाज को तरजीह और ऊंचाई भी दी है। हम दूर-दराज से ग्राउंड-रिपोर्टिंग करते हुये मुद्दों और सवालों की तह में गए हैं। इसके अलावा हमने अपसंस्कृति के विरुद्ध जनसंस्कृति की तलाश , शोध और परिमार्जन को भी अपना महत्वपूर्ण लक्ष्य बनाते हुये विभिन्न संस्कृति रूपों, लोककलाओं और उनसे जुड़े लोगों का दस्तावेजीकरण-प्रकाशन, ग्रामीण शालाओं में बेहतरीन काम करने वाले अध्यापकों के कामों का मूल्यांकन तथा समाजों के बूढ़-पुरनियाँ लोगों की स्मृतियों से मौखिक इतिहास का संयोजन भी जारी रखा है।
इन्हीं कामों और स्वाभाविक निर्भीकता एवं साहस के कारण गाँव के लोग को बहुत से लोगों ने अपने दिल के करीब रखा और हरसंभव सहयोग दिया है।
वेबसाइट गाँव के लोग डॉट कॉम की शुरुआत कबीर जयंती 26 जून 2021 को की गई। तब से यह लगातार चल रही है और प्रतिदिन इस पर ग्राउंड रिपोर्टिंग और विभिन्न विषयों पर सम-सामयिक लेख प्रकाशित किए जाते हैं जिनका एक बड़ा पाठकवर्ग है।
गाँव के लोग डॉट कॉम सामाजिक न्याय, समता, बंधुत्व और समानता के मुद्दों को आगे बढ़ाने और समाज के अंतिम पायदान पर खड़े मनुष्यों की आवाज को लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है। यह लगातार अपनी रिपोर्टों और लेखों के माध्यम से अपने पाठकों को संवेदनशील और जागरूक बना रही है। किसानों, मजदूरों, जल, जंगल, ज़मीन, पर्यावरण, समाज, संस्कृति, राजनीति, अर्थव्यवस्था, दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों से जुड़े सभी जरूरी मुद्दों पर इस वेबसाइट ने प्रतिदिन मूल्यवान, सारगर्भित और विचारोत्तेजक सामग्री प्रकाशित की है।
यह वेबसाइट पूंजीवादी-साम्राज्यवादी शोषण, ब्राह्मणवादी-मनुवादी षड्यंत्रों के खिलाफ एक निडर मंच है। यह किसी किस्म की सेंसेशनल पत्रकारिता से अलग लोकतान्त्रिक समझ और विवेक को महत्व देती है। इसकी सामग्री के अवलोकन से आप अच्छी तरह समझ सकेंगे कि यह बहुजन समाजों का अपना मंच है।
गाँव के लोग का एक यू ट्यूब चैनल भी है जिसे @gaonkelogbsb टाइप करके आसानी से खोजा जा सकता है।
यह सब गाँव के लोग सोशल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट द्वारा संचालित है जो ग्रामीण विकास, शिक्षा, वैज्ञानिक चेतना के विकास, पर्यावरण, लोकसंस्कृति, मीडिया के क्षेत्र में विगत छः वर्षों से सक्रिय एक रजिस्टर्ड ट्रस्ट है। इसकी जानकारी के लिए आप www.gaonkelog.org पर विजिट कर सकते हैं। फिलहाल इस संस्था के पास किसी तरह का विदेशी फंड, सीएसआर अथवा अनुदान नहीं है। यह पूर्णतया मित्रों द्वारा स्वेच्छया भेज दिये गए सहयोग और अगोरा प्रकाशन की किताबों की बिक्री के मामूली अंश से संचालित है।
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टीम
रामजी यादव गाँव के लोग के संस्थापक और संपादक हैं।
अपर्णा गाँव के लोग की संस्थापक और कार्यकारी संपादक हैं।
अमन विश्वकर्मा डिजाइनर और संपादकीय विभाग से जुड़े हैं।
लक्ष्मी नारायण यादव मुख्य संवाददाता हैं।
संपादकीय समिति : अलकबीर, विद्या भूषण रावत, सुरेन्द्र यादव।
मैं गाँव के लोग पत्रिका का नियमित पाठक हूँ और यह बहुत गंभीर और स्तरीय पत्रिका है
जी धन्यवाद्…
गांव के लोगों की वास्तविक स्थिति को प्रचारित कर लोगों को जागृत करने की जरुरत इस पत्रिका के माध्यम से पूरी हो सकती है।
जी धन्यवाद्…
आज मैंने यह पत्रिका पहली बार देखी। बहुत महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं आपलोग। देर से जुड़ने का अफसोस हुआ।
I want to sent some articles of mine how can I send any contact no or email
gaonkelogweb@gmail.com
मैं भी इस पत्रिका से जुड़ना चाहता हूँ,, जिस से समाज और गाँव के लोगो अनुभूतियों को जग जाहिर कर sku,, krpiya add krne ki kripa kre
सराहनीय