मैं एक ऐसे महान व्यक्ति की चर्चा करना चाहूँगा जिनका मुरलीछपरा ब्लाक बलिया का होना अपने में बहुत ही महत्व रखता है जहाँ मैं सन् 1964 मैं बीडीओ के रूप में तैनात हुआ था। वह जयप्रकाश नारायण (जेपी) थे । उनका घर सिताबदियारा के लालाटोला जयप्रकाश नगर में था। यह वह जगह है जहाँ उत्तर प्रदेश का आखिरी पूर्वी हिस्सा खत्म होता है तथा उसका जुड़ाव बिहार के छपरा जिले से होता है। इसके उत्तर तरफ घाघरा तथा द़क्षिण तरफ गंगा नदियाँ बहती हैं।
ब्लाक में जाने के कुछ दिनों बाद मेरी उत्सुकता जयप्रकाश जी को देखने और उनसे मिलने की हुई। मैंने भारत की आज़ादी के लिए किए गए उनके कार्यकलापों के बारे में सुन रखा था। ब्लाक के ज्येष्ट उपप्रमुख श्यामबिहारी सिंह का उनके यहाँ आना-जाना था । उनके साथ मैं साइकिल से जेपी मिलने उनके घर गया। जयप्रकाश जी यह जानकर कि मैं उनके ब्लाक का बीडीओ हूँ वे बहुत प्रसन्न हुए। जेपी के बारे में मैं जैसा सुन रखा था, उनका निराला व्यक्तित्व मुझे वैसा ही देखने को मिला।

उनका गोरा लम्बा शरीर, चमकता ललाट, मुस्कराता चेहरा, मुख से निकलते नपे-तुले शब्द, मृदुल स्वभाव बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे। जेपी के बारे में मैंने जैसा सुना था वैसा ही उन्हें देखकर-पाकर मन प्रफुल्लित हो उठा।
उन्होंने मुझसे ब्लाक के विकास के कार्यकलाप के बारे में पूछा । मैंने तदनुसार उन्हें बतलाया जिससे वह संतुष्ट हुए। मुझे यह जानकारी हुई कि गाँधी जी के श्राद्ध-दिवस 12 फरवरी को जयप्रकाश जी सिताबदियरा आते हैं और एक मैदान में होने वाली सभा में उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हैं। इसके अलावा वह अन्य तिथियों को अपने घर आते हैं और उनसे मिलने और बातें करने लोग वहाँ जाते हैं । उन सबसे वह मिलते रहते हैं।
उनसे हुई पहली मुलाकात के बाद एक बार और उनके अपने गाँव आने पर मैं उनसे मिलने गया। उन्होंने मुझसे तरह-तरह की बातें की एवं अपना स्नेह प्रदर्शित किया। आने वाली 12 फरवरी के कार्यक्रम के अवसर पर उनसे अनुमति लेकर मैंने वहाँ कृषि प्रदर्शनी का आयोजन किया तथा जनता के बीच कुछ उन्नतशील किसानों को उनके द्वारा पुरस्कार दिलवाया। जयप्रकाश जी इस कार्यक्रम से बहुत प्रभावित हुए और अगले वर्ष भी वैसा ही करने को कहा।
इस कार्यक्रम की खबर जिले पर तत्कालीन जिला नियोजन अधिकारी (डीपीओ) आनंद राजा को हुई तो उन्होंने मुझे बुलवाकर इसके बारे में पूछा और अगले वर्ष होने वाले इस कार्यक्रम में स्वयं शामिल होने की इच्छा जाहिर की एवं उसमें शामिल भी हुए। इस तरह गाँधी जी के श्राद्ध-दिवस ने वहाँ कृषिमेले का रूप ले लिया जहाँ जयप्रकाश जी मुख्य वक्ता के रूप में जन समुदाय को अपना संदेश देते रहे।
मेरे प्रति उनकी सहृदयता
जयप्रकाश जी ने जब मेरे बारे में यह जाना कि सन् 1963 के पीसीएस (जे) के इम्तहान में आरक्षित आठ रिक्तियों की जगह नौ सफल अभ्यर्थियों का नाम घोषित हुआ और दुर्भाग्य से मैं नवें स्थान पर था जिससे मैं मुंसिफ/मजिस्ट्रेट बनने में असफल रहा, तथा उसी साल बीडीओ की नौकरी में आ गया। मेरी इस असफलता पर गौर करके उन्होंने उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी को अपने एक व्यक्ति के हाथों पत्र लिखकर इस सम्बन्ध में संदेश भिजवाया कि मुझे उस वकेंसी में समायोजित किया जाए ।
मुख्यमंत्री सचिवालय द्वारा उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन से जानकारी लेकर यह सूचना दी गई कि जिस साल की वकेंसी में मेरा चुनाव हुआ था उसमें समायोजित नहीं किया जा सकता। यद्यपि मैंने स्पष्ट रूप से जयप्रकाश जी से नहीं कहा था किंतु मुझसे हुई वार्ता से वह यह समझने लगे थे कि बीडीओ की यह सर्विस मुझे अच्छी नहीं लग रही है, मैं कोई और सर्विस चाहता हूँ।
उन्होंने मुझसे इस हेतु दिल्ली जाने को कहा । उन्होंने कहा कि एक तिथि निश्चित कर गाँधी शांति प्रतिष्ठान में पहुँच जाऊँ । वहाँ मेरे लिए एक कमरा बुक करा दिया गया था। वहीं वह भी अपनी पत्नी प्रभावती जी के साथ रुके थे। सवेरे उन्होंने मुझे एक पत्र लिखकर तत्कालीन नामी-गिरामी नेता शाहनवाज खाँ के पास भेजा । चिट्ठी में उन्होंने लिखा कि खाँ साहब मुझे बीडीओ के अतिरिक्त कोई अच्छी नौकरी दिलवाएँ। चिट्ठी पढ़कर उन्होंने तत्काल कुछ नहीं किया लेकिन आगे इस मामले को देखने को कहा।
मैं बलिया वापस आया और बाद में जेपी को तदनुसार सूचित किया। इसके कुछ दिनों बाद उन्होंने मुझे दिल्ली में बाबू जगजीवन राम से मिलने हेतु भेजा और उनके नाम से दिया जिसमें लिखा था कि यह मेरे ब्लाक के बीडीओ हैं, इस सर्विस में इनका मन नहीं लगता, आप अपने स्तर से इन्हें इससे अच्छी कोई सर्विस दिलवा सकें तो बेहतर होगा।
मैं दिल्ली जाकर जगजीवन बाबू से उनके आवास पर मिला। उन्होंने जयप्रकाश जी का पत्र देखकर कहा था कि इस समय मैं कुछ उलझन में हूँ, आप जाइए, मैं देखूँगा। जयप्रकाश जी से भेंट होने पर मैंने बताया कि बाबू जगजीवन रामजी मेरी मुलाकात हुई । फिर उनकी उलझन की बात बताई । उसको सुनकर जेपी ने कहा था “वह प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं किन्तु ‘वे सब’ उन्हें बनने नहीं देंगे।”
मैंने उनकी बातें सुनकर यह अनुमान लगाया कि ‘वे सब’ से उनका आशय लोकसभा में कायम तत्कालीन सवर्ण समाज के घेरे के नेताओं से था जो इस दलित नेता को प्रधानमंत्री बनने देने के पक्ष में नहीं थे।
जयप्रकाश जी की मेरे प्रति यह सहृदयता थी कि वे चाहते थे कि मैं बीडीओ की जगह कोई अन्य अच्छी नौकरी पा जाऊँ। लेकिन अभी तक के परिणामों को देखकर लगता था कि राजनीतिक सत्ता पाने के लिए उठापटक तेज हो गई थी और कोई किसी की बात को गंभीरता से नहीं ले रहा था । मैं गहरे संकोच में था और चाह कर भी उनको मना नहीं कर पा रहा था कि आप नाहक परेशान न हों । मैं यहीं ठीक हूँ ।
जयप्रकाश जी के छोटे भाई की पत्नी जो बिहार में कहीं इंस्पेक्टर आफ स्कूल थीं । उनके साथ उनके पति के सम्बन्ध अच्छे नहीं रहे और कहा जाता था कि उन्होंने नेपाल के कोइराला परिवार की किसी महिला से शादी कर ली थी । बे अपनी बेटी की शादी जयप्रकाश जी के गाँव वाले घर से ही उनकी एवं उनकी पत्नी प्रभावती जी की इच्छा पर कर रही थीं। मैं शादी के दिन वहीं था एवं तमाम कार्यकलापों में वहाँ के ग्राम सेवक के साथ सहयोग कर रहा था।
उन्होंने मुझे प्रोत्साहन देने के लिए यह भी कहा था कि “आप इस नौकरी में रहते हुए आइएएस, पीसीएस का इम्तहान देते रहें। लेकिन मेरी रुचि आईएएस, पीसीएस तो नहीं बल्कि पीसीएस (जे) में जाने में बनी रही जहां मैं पहले जाते-जाते न जा सका था। मैंने आगे इसका इम्तहान देने की अभिरूचि बनाए रखा और दिया भी, किंतु सेवा काल में इम्तहान की विशेष रूप से तैयारी न होने पर भीउसमें पास हो जाता था किंतु साक्षात्कार के बाद छँट जाता रहा।
जेपी ने अपनी आधी ज़मीन भूमिहीनों को दे दी
जयप्रकाश जी के महान व्यक्तित्व के बारे में यहाँ बहुत कुछ नहीं कहा जा सकता, फिर भी उनके साथ मेरा जुड़ाव एवं उनसे मुझे मिला सहज स्नेह ऐसा था कि यदि उनसे जुड़ी सारी बातें लिखी जाएँ तो अलग से किताब बन जायेगी। उनकी महानता यह थी, जैसी मुझे जानकारी हुई, कि उन्होंने अपने चालीस बीघे खेत में से बीस बीघे अपने गाँव के गरीबों को दे दिया था।
उनके घर के पूरब विविध प्रकार के फलदार पेड़ों का उनका बगीचा, छोटा मुर्गी फार्म एवं एक मछली फार्म देखने लायक थे। उनकी खेती-बारी बिहार के एक सरजू भाई, जो मटमैले रंग की खादी की जंघिया एवं हाफ कमीज पहनते थे, तथा प्रबन्ध बिहार के ही जगदीश बाबू करते थे।
इन्हीं जगदीश सिंह के बारे में कहा जाता था कि जब जेपी हजारीबाग जेल से फरार हुए थे तो उनकी चारपाई पर उनकी उपस्थिति बनाए रखने के लिए चादर ओढ़कर सोये थे। लेकिन यह एक मिथक है और इसके सही है या गलत होने के बारे में ठोस सबूत नहीं है।
उस समय सिचाई के साधन के रूप में डीजल इंजन ही चलता था। वह भी ब्लाक के अंदर कुछ ही लोगों के पास होता था। यद्यपि उस समय वहाँ पहले से चली आ रही परिपाटी के अनुसार सिचाई का विशेष महत्व नहीं था क्योंकि खरीफ में मकई तथा रबी में चने की खेती मुख्य रूप से होती थी जिनके लिए सिचाई की विशेष जरूरत नहीं होती थी।
जेपी के बारे में एक उल्लेखनीय बात मुझे सुनने को आया कि उन्हे बाल-बच्चे क्यों नहीं हुए? इस सम्बन्ध में दो बातें कही जाती रहीं। एक यह कि प्रभावती जी से शादी होने के बाद वह बिदेश पढ़ने चले गए। लौट कर आए तो गाँधी जी के संपर्क में होने पर ब्रह्मचर्य जीवन यापन का संकल्प लिए। उनकी पत्नी प्रभावती जी ने भी वैसा ही जीवन जीना स्वीकारा।
वहाँ की काली लसदार चिकनी मिट्टी वाली भूमि में ये फसलें बिना सिचाई के ही अच्छी तरह पैदा होती थीं। समय के प्रवाह से कृषि-क्रांति के आह्वान पर जब मैक्सिकन वेरायटी के गेहूँ तथा धान के नये-नये बीजों का प्रयोग होना शुरू हुआ तो यहाँ के लोग डीजल पंपिंगसेट लगवाने लगे क्योंकि अभी इस क्षेत्र में बिजली का आगमन नहीं हुआ था। इसके लिए ब्लाक से किसानों को छूट पर ऋण दिया जाने लगा था। जगदीश बाबू के कहने पर जयप्रकाश जी के यहाँ भी ऐसा ही एक इंजन लगवाने का मुझे अवसर मिला था।
जाति के सवाल पर जेपी के विचार
जयप्रकाश जी मुझे जवाहर लाल जी कहकर सम्बोधित करते थे और यह कहते थे कि एक जवाहर लाल (नेहरू जी) को खो दिया, दूसरा पा गया हूँ। मैं उनको बाबूजी कहकर सम्बोधित करता था। उनके घर जाने पर दरवाजे के बाहर के कमरे में उनके अंग्रेजी के स्टेनों अब्राहम से अक्सर भेंट हो जाती थी जो दक्षिण भारत के थे एवं टूटी-फूटी हिन्दी में मुझसे बातें किया करते थे।
जेपी जब घर में होते थे तो मेरे आने की सूचना पर मुझे अपने आँगन में बुलाकर बातें किया करते थे तथा उनसे मिलने वाले लोग बाहर बैठकर उनसे मिलने का इंतजार करते रहते थे। कुछ लोग कहते थे कि यह बीडीओ जेपी पर क्या जादू कर दिया है कि वह उससे मिलकर घंटों बातें करते रहते हैं। उनकी पत्नी प्रभावती जी भी मुझे बहुत मानती थीं। उन्होंने आसाम से लाई हुई एक सिल्क की चादर मुझे दिया था जो धरोहर के रूप में मेरे पास बहुत दिनों तक रही।
जेपी मेरे बारे में जान गए थे कि मैं दलित हूँ यद्यपि इस सम्बन्ध में उन्होंने मुझसे कुछ नहीं पूछा था । एक बार उन्होंने मुझसे प्रश्न किया था, ‘‘जवाहरलाल जी बतलाइए, इस देश से ऊँच-नीच और जाति-व्यवस्था कैसे खत्म होगी?’’
मैंने उनसे कहा था, ‘‘बाबूजी आपके इस प्रश्न का मैं आप के समक्ष क्या जवाब दूँ, समझ में नहीं आता।
हाँ यह जरूर कहूँगा कि बाबा साहब डॉ अम्बेडकर ने संविधान में भारत में छुआछूत खत्म करने का प्रावधान तो कर दिया लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और है । यदि उन्होंने संविधान में जाति व्यवस्था खत्म करने की घोषणा की होती तो इस देश से जाति-पाँति, ऊँच-नीच की भावना खत्म हो जाती।’’
मेरा यह कथन सुनकर जयप्रकाश जी मुस्करा दिए एवं बोले, ‘‘देखिए, उस समय वैसा करना सम्भव नहीं था। हाँ यदि दलित जातियों की आर्थिक स्थिति ऊँची कही जाने वाली जातियों के बराबर ही नहीं हो जाती बल्कि बढ़ जाती है तो अपने आप जाति-व्यवस्था की यह स्थिति खत्म हो जाएगी।’’
मैंने इस प्रसंग को आगे और नहीं बढ़ाया । यह सोच कर कि ऐसा होना बहुत मुश्किल है। न चाहते हुए भी कहा था, ‘‘आप ठीक कहते हैं।’’ यद्यपि मैंने मन में विचार किया कि जेपी की यह सोच कभी भी सम्भव नहीं हो सकती। उनका भूदान-ग्रामदान आंदोलन भी इस हेतु कुछ नहीं कर सकता।
जेपी के बारे में एक उल्लेखनीय बात मुझे सुनने को आया कि उन्हे बाल-बच्चे क्यों नहीं हुए? इस सम्बन्ध में दो बातें कही जाती रहीं। एक यह कि प्रभावती जी से शादी होने के बाद वह बिदेश पढ़ने चले गए। लौट कर आए तो गाँधी जी के संपर्क में होने पर ब्रह्मचर्य जीवन यापन का संकल्प लिए। उनकी पत्नी प्रभावती जी ने भी वैसा ही जीवन जीना स्वीकारा।
इस तरह उन्हें संतान नहीं हुई। दूसरी बात यह थी कि जयप्रकाश जी ने परतंत्र भारत में बाल-बच्चे पैदा न करने का संकल्प लिया था। इन दोनो बातों में कौन सही थी कौन नहीं या किसी और कारण से उन्हे संतान पैदा न हुई इसके विषय में सुनिश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।
शायद जेपी जान गए या ….
मैं जयप्रकाशजी से कभी-कभार पटना जाकर उनके कदमकुआँ के मकान पर मिलता रहा। एक बार वहाँ जाकर उनसे जिस दिन मिला उसी दिन कश्मीर के प्रख्यात नेता शेख अब्दुल्ला का गाँधी मैदान में भाषण होने वाला था जिसमें जयप्रकाश जी को जाना था। मैं दोपहर को उनसे मिलकर पटना शहर में अपने एक परिचित आईएएस अधिकारी विश्राम प्रसाद से भेंट करने जाने वाला था। जयप्रकाश जी से जब मैंने इस सम्बन्ध में बतलाया तो उन्होंने पूछा, ‘‘आप भाषण नहीं सुनेंगें?’’
मैंने कहा था, ‘‘सुनना तो चाहता हूँ।’’
इस पर उन्होंने कहा था, ‘‘आप जाइए और तीन बजे तक आजाइएगा।’’
मैं ‘‘जी अच्छा’’ कह कर वहाँ से उस मित्र अधिकारी से मिलने चला गया।
मुझे अपने आवास पर पाकर विश्राम प्रसाद जी बहुत खुश हुए। वह उस समय पटना में किसी बड़े प्रशासनिक पद पर तैनात थे। इन्होंने मुझे लंच कराया और मना करने पर भी ह्विस्की पीने को मजबूर कर दिया। मैंने उनसे कहा कि मुझे जयप्रकाश जी के साथ उनके घर से गाँधी मैदान की सभा में जाना है तो उन्होंने मुझे स्वयं वहाँ पहुँचाने के लिए कहा।
हुआ वही, उन्होंने अपनी कार से मुझे जेपी के दरवाजे के पास लाकर उतार दिया और वापस चले गए। यद्यपि मुझे अलकोहल का नशा था किन्तु ज्यादा नहीं था और जेपी मुझे उस दशा में देखकर भाँप न जाएँ, मैं उनके सामने थोड़ी दूरी पर खड़ा हो गया। उन्होंने मुझे देखते ही कहा, “आप आने में थोड़ी देर कर दी, मैं आप का इंतजार कर रहा था, सभा में जाने में देर हो रही थी, कोई बात नहीं चलिए सभा में चला जाए।’’
वह तैयार बैठे थे। उनके कहने पर जिस गाड़ी से वह जा रहे थे, मैं पीछे बैठ गया और रास्ते में उनसे कहा, ’’बाबू जी कुछ देर सभा में रह कर मैं अपने ब्लाक वापस चला जाऊँगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ठीक है, आप जब तक वहाँ रहना चाहो रहना, फिर चले जाना।’’
गाँधी मैदान पहुँचकर मैं गाड़ी से उतर कर एक तरफ खड़ा हो गया। जेपी कार्यक्रम के डायस की तरफ बढ़ गए। वहाँ अपार भीड़ थी। सभा शुरू हुई। मैं कुछ देर वहाँ रहकर अपने ब्लाक के लिए रवाना हो गया। इस तरह जेपी की निगाह से अपने द्वारा की गई बेढंगई से बच गया और सोचने लगा था कि काश इसे वह जान जाते तो….।
भतीजी की शादी में जयप्रकाश जी
जयप्रकाश जी के छोटे भाई की पत्नी जो बिहार में कहीं इंस्पेक्टर आफ स्कूल थीं । उनके साथ उनके पति के सम्बन्ध अच्छे नहीं रहे और कहा जाता था कि उन्होंने नेपाल के कोइराला परिवार की किसी महिला से शादी कर ली थी । बे अपनी बेटी की शादी जयप्रकाश जी के गाँव वाले घर से ही उनकी एवं उनकी पत्नी प्रभावती जी की इच्छा पर कर रही थीं। मैं शादी के दिन वहीं था एवं तमाम कार्यकलापों में वहाँ के ग्राम सेवक के साथ सहयोग कर रहा था।
मैंने लड़की को देने के लिए बनारस से एक सिल्क की साड़ी ले जाकर प्रभावती जी को दिया तो उन्होंने कहा था, ‘‘आप यह साड़ी क्यों लाए?’’
इस पर मैंने कहा, ‘‘बहन की शादी के लिए भाई का यह छोटा उपहार ग्रहण करने की कृपा करें’’ तो उन्होंने मुस्कराते हुए कहा था, ‘‘अच्छा, ठीक है।’’
दोपहर को आँगन में एक पंडित जयप्रकाश जी एवं प्रभावती जी को जमीन पर चादर बिछाकर एक साथ बैठा कर सत्यनारायण कथा कह रहा था। जयप्रकाश जी उस समय कथा पर बिना ध्यान दिए अखबार पढ़ रहे थे और पंडित कथा कहता जा रहा था। उस समय मैं भी वहीं बैठा था। जयप्रकाश जी ने मुझसे पूछा, ’’जवाहरलाल जी, बतलाइए यह कथा सुनना जरूरी है कि अखबार पढ़ना?’’ मैंने जवाब दिया, ’’कथा की औपचारिकता भी पूरी होनी जरूरी है, अखबार पढ़ना तो जरूरी है ही।’’ इस पर वह हँस पड़े और अखबार देखने लगे एवं कथा होती रही।
उसी शादी का एक और प्रसंग भी वर्णनीय है। जब बारात दरवाजे पर आई तो दूल्हे को देख कर प्रभावती जी दुखी हो गईं क्योंकि वह साँवले रंग का था तथा उम्रदराज लग रहा था जबकि दुल्हन उससे कम उम्र की गोरी तथा अतीव सुन्दर थी। उन्होंने ‘यह शादी नहीं होगी’ की घोषणा कर दी। उस खुशहाली के माहौल में जैसे तूफान आ गया।
लोग हतभ्रम होकर प्रभावती जी के चेहरे को देखने लगे। ऐसे निस्तब्ध वातावरण में जयप्रकाश जी की आवाज प्रभावती जी को समझाते हुए सुनाई दी, ‘‘आप दूल्हे के रूप-रंग पर क्यों जाती हैं। जब माँ-बेटी को एतराज नहीं है तो आप शादी में क्यों बाधा बनती हैं।’’ प्रभावती जी उनकी बातों को सुनकर चुप हो गईं और शादी संपन्न हुई। दूल्हा बेटी की माँ के आफिस में कार्यरत था और बेटी और माँ की चाहत पर ही वह शादी हो रही थी।
तबादले में जौनपुर और इमरजेंसी में जेपी
चार साल तक मुरलीछपरा ब्लाक का बीडीओे रहने के बाद मेरा स्थानांतरण जौनपुर जिले के सिकरारा ब्लाक में हुआ । यहाँ से एक दिन मैं जौनपुर नियोजन कार्यालय में गया तो वहाँ ज्ञात हुआ कि वहाँ नेशनल सीड कारपोरेशन से एक पत्र इस आशय का आया हुआ था कि मैंने उस विभाग में किसी अधिकारी के पद हेतु सीधे एक प्रार्थनापत्र भेज दिया था । पत्र में कहा गया था कि उस आशय का दूसरा प्रार्थनापत्र जिला विकास अधिकारी के द्वारा अग्रसारित करा कर भेजा जाए।
जिला विकास अधिकारी ने इस सम्बन्ध में मुझसे पूछा कि मैंने ऐसा कोई प्रार्थनापत्र भेजा है तो मैंने ना में जवाब दिया । फिर भी उन्होंने कहा कि इसमें जिस पद का जिक्र है, यदि उसे चाहते हो तो प्रार्थनापत्र अग्रसारित कराकर भेज दो। मैंने उस पद को देखा जो उस विभाग के एक सहायक अधिकारी हेतु था। इसलिए मैंने जिला विकास अधिकारी उस पर न जाने एवं बीडीओ ही बने रहने के बारे में कहा।
मैंने देर तक सोचा कि आखिर यह पत्र कैसे और किसने भेजा ? हठात मुझे याद आया कि जेपी के कहने पर मैं बाबू जगजीवन राम से मिलने गया था। जाहिर हो गया कि बाबू जगजीवन राम के निर्देश पर ही यह पत्र आया है जो उस समय भारत सरकार में कृषि मंत्री थे और उन्होंने जेपी के पत्र के संदर्भ में मुझसे बाद में देखने के लिए कहा था । उन्होंने ही यह निर्देश दिया था।
सिकरारा ब्लाक में आने के कुछ दिनों बाद मैंने जेपी के जीवन पर एक खंडकाव्य की रचना शुरू की एवं एक डायरी में बहुत कुछ लिख चुका था किंतु एक शाम राजदूत मोटर साइकिल द्वारा वाराणसी से जौनपुर जाते समय उसके कैरियर पर बँधा हुआ बैग रास्ते में कहीं गिर गया जिसमें वह डायरी भी थी। इस तरह उनके लिए मेरे द्वारा लिखा जाने वाला जीवन-काव्य न लिखा जा सका।
मैं सिकरारा ब्लाक में पाँच साल कार्यरत रहकर सन् 1973 में उसी जिले के मड़ियाहू तहसील के रामनगर ब्लाक के बीडीओ के रूप में स्थानांतरित हुआ। जेपी अपने समग्रक्रांति के आंदोलन के सिलसिले में जौनपुर आए हुए थे। वह वहाँ सायं डाकबंगले में रुके थे। उनकी इच्छा पर वहाँ एक कवि गोष्ठी होने जा रही थी।
मैं जौनपुर शहर आया हुआ था। प्रो श्रीपाल सिंह ‘क्षेम’ इस गोष्ठी का आयोजन कर रहे थे जो मेरे काव्य गुरू थे । उनसे मुलाकात होने पर मैंने भी उस गोष्ठी में शामिल होने की इच्छा जाहिर की। क्षेम जी ने कहा, “आप सरकारी कर्मचारी हो, इमरजेंसी लगी हुई है । इस कार्यक्रम में आपके शामिल होने पर कहीं आप के विरुद्ध कार्यवाही न हो जाये।’’
क्षेम जी की बातों को सुन कर मैंने कहा, “आप घबड़ाएँ नहीं, जयप्रकाश जी मेरे लिए नये नहीं हैं। मैं उनके निजी ब्लाक में चार साल रह चुका हूँ, जहाँ उनसे मेरा निकट का संपर्क रहा है। यदि इनके कार्यक्रम में शामिल होने से मेरे विरुद्ध कोई कार्यवाही होती है तो मैं उसे हँसते हुए स्वीकार करूँगा और जेपी के आन्दोलन से जुड़ जाऊँगा।’’
ऐसा सुनकर क्षेम जी ने कहा था, ‘‘ठीक है आप गोष्ठी में शरीक होवें।’’ कवि गोष्ठी में मैं जेपी से मिला तो उन्होंने स्नेहिल वाणी में पूछा, “आप यहाँ कैसे?’’
मैंने कहा, “आजकल मैं यहीं बीडीओ के रूप में कार्यरत हूँ।’’
यह सुनकर उन्होंने कहा था, ’’अच्छा, बहुत अच्छा।’’
कवि गोष्ठी शुरू हुई। वहाँ मैंने अपना एक गीत सुनाया । उसकी आधार लाइनें निम्न हैं,
तुमने देखे नयन ज्योति में जगमगे, ज्योति सूना नयन तुमने देखा नहीं,
जिंदगी जी उठी तुमने देखा किया, जिंदगी का मरण तुमने देखा नहीं।
गीत सुनकर जेपी बहुत प्रभावित हुए । क्षेम जी ने सन् 1977 में छपे मेरे गीत संग्रह ’दिवा-स्वप्न’ की भूमिका में इसका मार्मिक वर्णन किया है । यह गीत इसी किताब में संकलित है। उस गीत संग्रह को जेपी0को समर्पित कर मुझे आत्मतुष्टि हुई कि मैं उनके जीवन-काव्य को न लिख सका लेकिन उनके प्रति यह मेरे श्रद्धा-भाव का समर्पण था।
जब उस गीत संग्रह को मैंने जेपी को उनके घर सिताबदियरा में जाकर दिया तो वह बहुत खुश हुए थे। इसके बाद दूसरी मुलाकात में उन्होंने उस गीत संग्रह के दूसरे संस्करण को निकालने के लिए अपने हाथ से लिखा था।
वह अंतिम दुखद मुलाक़ात
इमरजेंसी के बाद जेपी बहुत बीमार हुए। उनकी किडनी क्षतिग्रस्त हो गई थी। पटना में अपने मकान में वह डायलसिस कराते थे। सन 1978 में मुंसिफ/मजिस्ट्रेट होने के बाद मैं बलिया में कार्यरत हुआ। मैं उनसे मिलने पटना में उनके आवास पर गया।
वहाँ बैठने पर उन्होंने मुझे न पहचानते हुए जगदीश बाबू से पूछा, “यह कौन हैं?’’ जगदीश बाबू ने कहा, ‘‘अपने मुरलीछपरा ब्लाक के बीडीओ रहे कौल साहब हैं जो अब मुंसिफ/मजिस्ट्रेट हो गए हैं।’’ इस पर उन्होंने कहा, ’’ठीक है, यह मेरे गाँव जाकर मेरे मत्स्यपालन के तालाब को पटवा दें।’’
मैं इस सम्बन्ध में कुछ बोलूँ उसके पहले जगदीश बाबू ने मेरी ओर इशारा करके उनकी बातों को मानने के लिए कहा। इस पर मैंने कहा, ’’ठीक है बाबू जी, मैं वहाँ जाकर उसे पटवा दूँगा।’’

जेपी जिनके निकट संपर्क में मैं करीब चार साल तक रहा, वह मुझे कितना मानते थे, इसका वर्णन नहीं किया जा सकता। लेकिन आज वे मुझे पहचान भि नहीं पा रहे थे यह सोचकर मैं हतप्रभ रह गया । मैं इस भावना के साथ वहाँ गया था कि जेपी की इच्छा थी कि मैं आईएएस, पीसीएस अफसर बनूँ । मैं पहले मुंसिफ बनते-बनते नहीं बन पाया था, जब वह बन गया तो सोचा कि जेपी को सूचित करूँ । पर वह इस रूप में मुझे पहचान नहीं रहे थे। इसे मैंने अपना दुर्भाग्य तथा जेपी की जानलेवा बीमारी को दोषी माना और उन्हें प्रणाम कर बलिया वापस चला आया।
कुछ ही दिनों बाद उनके देहांत की जानकारी होने पर पत्नी के साथ पटना जाकर उनके शव पर पुष्प अर्पित किया।
समता और भाईचारे के पक्षधर जेपी
बलिया में रहते हुए मैंने जेपी की सार्वजनिक सभा में होने वाले उनके भाषणों को सुना था जिसमें उन्होंने समाज में चल रही वर्ण व्यवस्था एवं जाति-पाँत पर प्रहार किया था तथा लोगों में समता एवं बंधुत्व का संदेश दिया था। उनके द्वारा द्विजों का जनेऊ धारण करना गलत कहा गया और सभा में उसे तोड़ने का आह्वान किया गया । इस इस पर वहाँ उपस्थित अनेक जनेऊधारी लोगों ने अपने जनेऊ तोड़कर एक जगह रख दिया, वहाँ उसका ढेर लग गया। यह थे जयप्रकाश जी जिन्होंने समाज के नव निर्माण एवं उसको नई दिशा देने में अपना अप्रतिम योगदान किया। अब भी स्मृति पटल से वे यादें विस्मृत नहीं होतीं जिनमें जयप्रकाश जी अपने दरवाजे पर बैठे लोगों के समक्ष इंदिरा गांधी जी को ‘इंदू’ सम्बोधन करते थे। डाकुओं के आत्मसमर्पण का उल्लेख करते थे। किसी के द्वारा यह पूछने पर कि आप को राष्ट्रपति बनाए जाने की चर्चा है तो मुस्कराते हुए कहते थे कि मेरी राष्ट्रपति बनने की इच्छा नहीं है और बन भी कैसे सकता हूँ क्योंकि मैं चुनाव नहीं लड़ सकता और सभी पर्टियाँ मिलकर मुझे राष्ट्रपति बनाएँगी नहीं। ऐसे तमाम संस्मरण हैं जिनका उल्लेख करना सम्भव नहीं है। लेकिन जयप्रकाश जी के साथ मेरे जीवन से जुड़ी कुछ अविस्मरणीय बातें मेरे जीवन की अनमोल निधि बन गई हैं।
जवाहर लाल कौल ‘व्यग्र’ उत्तर प्रदेश में अपर जिला जज रहें हैं । वे हिन्दी के सुप्रसिद्ध दलित कवि और कथाकार हैं। सेवानिवृत्ति के बाद लेखन में संलग्न।