भाषा और समाज से गहराई से जुड़े बुद्धिजीवी ही हिन्दुत्ववादियों के निशाने पर हैं
पुरुषोत्तम अग्रवाल अपने कबीर सम्बंधी अध्ययन में जाति प्रश्न को अंग्रेजी शासन की देन बताते हुए इसे औपनिवेशिक ज्ञानकांड तक सीमित कर देते हैं, वे वर्णाश्रमी ब्राह्मणवादी संरचना के क्रिटिक में असफल हैं। (बातचीत का दूसरा हिस्सा) आपने ‘हंस’ के अगस्त 2017 अंक में अरुंधति राय के नए उपन्यास ‘दि मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैपीनेस’ पर … Continue reading भाषा और समाज से गहराई से जुड़े बुद्धिजीवी ही हिन्दुत्ववादियों के निशाने पर हैं
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