सामाजिक आक्रोश और प्रतिकार का बिगुल हैं कविताएं

आदमखोर   केवल जानवर हो सकता है इंसान नहीं, तू भी इंसान नहीं हमारी हड्डियों को चाभने वाला दोपाया जानवर है आदमखोर जानवरl (अब मैं साँस ले रहा हूँ – से ) यह कविता पढ़ते हुए मेरे रोंगटे खड़े हो गए l यह मात्र शब्दों का जादू नहीं बल्कि कविता में मानवीय संवेदनाओं, की संप्रेषणीयता, भावप्रवणता … Continue reading सामाजिक आक्रोश और प्रतिकार का बिगुल हैं कविताएं