नफरत और सांप्रदायिक हिंसा का बदलता चरित्र

क्‍या हम भविष्‍य से कुछ उम्‍मीदें बांध सकते हैं? क्‍या अल्पसंख्‍यक समुदाय के बुजुर्ग और समझदार लोग अपने युवाओं को भड़कावे में न आने के लिए मना सकते हैं? क्‍या विपक्षी पार्टियां शहरों और कस्‍बों में शांति समितियों का गठन कर सकती हैं? क्‍या वे यह सुनिश्‍चित कर सकती हैं कि धार्मिक जुलूस जान-बूझ कर मस्‍जिदों के सामने से न निकाले जाएं? अभी चारों तरफ घना अंधकार है। परंतु इसके बीच भी आशा की कुछ किरणें देखी जा सकती हैं। गुजरात के बनासकांठा के प्राचीन हिन्‍दू मंदिर में मुसलमानों के लिए इफ्तार का आयोजन किया गया।