आत्ममोह और आत्मप्रचार में डूबे लेखक आलोचना को निंदा समझते हैं!

बंगला साहित्य जिस तरह से नक्सल चेतना से भरा पूरा था वैसा हिंदी साहित्य में नहीं हुआ (बातचीत  का तीसरा हिस्सा) आलोचना का काम होता है- रचना को लोकप्रिय बनाना। उसके आशयों की मीमांसा करना और उसके सौन्दर्य को अनावृत और रूपायित करना, लेकिन कुछ आलोचक ऐसी आलोचना करते हैं  जो रचना को अपनी व्याख्या … Continue reading आत्ममोह और आत्मप्रचार में डूबे लेखक आलोचना को निंदा समझते हैं!