शिक्षा के दरवाजे तक जाति हमारा पीछा करती रही (कथाकार,इतिहासकार सुभाषचन्द्र कुशवाहा से अपर्णा की बातचीत )

माई की सहनशीलता ने हमें अभावों में जीने, पढ़ने और संवेदनशील बनने का मूल मंत्र दे दिया था। माई का भोर में जगना, गाय-बैलों के लिए छांटी-पानी करना, गोबर उठाना, खेती-किसानी में खटना और पिताजी की डांट-मार सहना, कठोर जीवन की कुछ कड़वी यादें हैं। हर हाल में बच्चों को खुश रखना, माई की सूनी आंखों का स्वप्न होता। स्वयं भूखे रह, हम भाई-बहनों को खिलाना, माई के रग-रग में जीवन का असीम दुर्द्धर्ष संघर्ष छिपा हुआ था।