कैसा फागुन, क्या बसंत है…!

कैसा फागुन क्या बसंत है, इनका आना-जाना वे क्या समझे दु:ख की जो नित जाने बोझ उठाना। चीख-चीख कुछ कहे पपीहा, कहाँ गया पी कहाँ कह रहा, कोयल की हर एक कूक पर कहीं बिरह में बदन दह रहा। खिलते फूल, भटकते भँवरे, तन-मन में उमंग का भरना, उनके लिए अर्थ क्या रखे, जो न … Continue reading कैसा फागुन, क्या बसंत है…!