एकांत और अकेलेपन के बीच – मन्नू भंडारी – कुछ स्मृतियों के नोट्स

 पहला हिस्सा  4 सितम्बर 2008 – क्षमा पर्व मन्नू जी का फोन – सुन सुधा, एक बात तुझसे कहना चाहती हूं। यह तो वे रोज ही कहती हैं। उन्हें कुछ शेयर करना होता है या बताना होता है। मैंने हंसकर कहा – कहिए मन्नू दी ! बोलीं – आज तक मैंने तुझसे अगर कोई कटु … Continue reading एकांत और अकेलेपन के बीच – मन्नू भंडारी – कुछ स्मृतियों के नोट्स