चींटी के पहाड़ पर चढ़ने के हौसले की कहानी

आत्मकथा लिखने के लिए जिस साहस और ज़ज्बे की आवश्यकता होती हैं वह दोनों ही तसनीम जी के भीतर मौजूद हैं I आत्मकथा का कोई भी ऐसा अंश पकड़ में नहीं आता जहाँ सच्चाई महसूस न होती हो I ईमानदारी से जुटाएं गए तजुर्बों और हौसलों की सच्ची दास्तान पाठक के मन को गहरे तक द्रवित करने का पूरा दमख़म रखती है I पितृसत्तात्मक मानसिकता स्त्री की आजादी को बहुत कम महत्त्व देती है या यूँ कहिए की स्त्रियों की ‘आज़ादी’ जैसा कोई टर्म उनके शब्दकोश में है ही नहीं I