गाँव का नाम बदल गया है लेकिन हालात उतने ही बुरे हैं

अपने दरवाजे पर झाड़ू लगाती हुई बच्ची दिखी। फोटो लेने पर सकुचा गई लेकिन बुलाने पर पास आई और अपना नाम मुन्नी बताया। पूरे गाँव में अनेक किशोरियाँ मिलीं। सभी आज के फैशन के हिसाब से तैयार मिलीं, लेकिन किसी के पास कोई काम नहीं था। एक मुन्नी ही मिली जिसने बताया कि वह सिलाई कर पैसे अर्जित करती है।  मैंने पूछा कितना मिला जाता है रोज़? तो उसने स्वाभिमान से कहा – ‘रोज़ 50 से 100 रुपया कमा लेती हूं। मैं उसके साथ उसकी एक कमरे के झोपड़ी में पहुंची जहाँ मशीन थी लेकिन अंधेरा था। मैंने लाइट जलाने के लिए कहा तो उसने कहा लाइट नहीं है।