रामचरितमानस में स्त्रियों की कलंकगाथा (भाग –2)

  छन सुख लागि जनम सत कोटी। दुख न समुझ तेहि सम को खोटी।।  बिनु श्रम नारि परम गति लहई। पतिब्रत  धर्म  छाड़ि  छल  गहई।। अर्थात, क्षण भर के सुख के लिये जो सौ करोड़ (असंख्य) जन्मों के दुखों को नहीं समझती, उसके समान दुष्टा कौन होगी। जो स्त्री छल छोड़कर पातिव्रत धर्म को ग्रहण … Continue reading रामचरितमानस में स्त्रियों की कलंकगाथा (भाग –2)