वाराणसी : ऊ कलाकारी करके का करें, जिसके सहारे परिवार का पेट ही ना पले
बुनकरों का कहना है कि सरकार मंहगाई रोक ही नहीं पा रही है। इतनी मंहगाई है कि आदमी शौक को दबाकर चूल्हा-चक्की के फेर में उलझा हुआ है। बनारसी हैंडलूम की साड़ियाँ महँगी होती हैं। अब बनाने वालों की मजदूरी ही जब आठ-दस हजार चली जाएगी, तब खुद ही सोचिए कि साड़ियाँ बनकर जब बाजार में जाएगी तब कितने की पड़ेगी। बुनकरों का यह सवाल वाजिब है।
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