जो भी कन्ना-खुद्दी है उसे दे दो और नाक ऊंची रखो। लइकी हर न जोती !  

पहला हिस्सा  गाँव में स्त्री की स्थिति किसी गूँगे परिचारक जैसी रही है l गूँगे के पास ज़बान नहीं होती है, मगर स्त्री के पास ज़बान होकर भी नहीं होती थी l स्त्री की ज़बान तालू से चिपकी रहती थी l उसके होंठ सिले हुए होते थे, इसलिए चाहकर भी वह कुछ बोल नहीं पाती … Continue reading जो भी कन्ना-खुद्दी है उसे दे दो और नाक ऊंची रखो। लइकी हर न जोती !