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21 august bharat band
भारत बंद से पुराने फॉर्म में लौटीं मायावती क्या अपनी बिखरी राजनीति को समेट पाएँगी
भारत बंद की सफलता के बाद जहां अधिकांश राजनीतिक विश्लेषकों ने दलित आंदोलनकारियों के व्यवहार में आए बड़े बदलाव को देखते हुए भविष्य में धरना- प्रदर्शनों के सैलाब आने की संभावना जाहिर किया, वहीं दलित आंदोलनकारी अपनी बहन जी को पुराने रूप में लौटते देख खुशी से झूम उठे। सबसे बड़ी बात तो यह है कि जिस कांशीराम का नाम लेकर मायावती राजनीति करती रही हैं, लोग राहुल गांधी में अब कांशीराम की छवि देखने लगे हैं। यदि कांशीराम के रूप में राहुल गांधी की छवि स्थापित हो जाती है, तब पहले से ही काफी हद तक अपना वोटबैंक गवां चुकी मायावती का राजनीतिक भविष्य का क्या होगा?
वंचितों के लिए न्याय के एजेंडे पर हो भारत बंद
एक अगस्त को आए कोर्ट के फैसले बाद उपवर्गीकरण में लाभ देख रहे समूहों में आरक्षण के कथित हकमारों के प्रति जो शत्रुता का भाव पनपा है, वह प्रायः स्थाई हो गया है। इसलिए कोर्ट का फैसला पलटने से भी एकता के मोर्चे पर बहुत लाभ नहीं होगा, क्योंकि अनग्रसर समूहों मे अग्रसर समूहों को हकमार वर्ग के रूप में देखने की मानसिकता विकसित हो चुकी है, जिसमें निकट भविष्य में बदलाव आता कठिन लग रहा है।