भारतीय शिक्षा प्रणाली पर हिंदू साम्प्रदायिक तत्वों के पहले भी आरएसएस के साम्प्रदायिक संस्करण के माध्यम से प्रतिभाओं, एकल संप्रदायों और शैक्षणिक संस्थानों को बढ़ावा दिया जा रहा था। एनसीईआरटी की इतिहास की किताब से कक्षा सात से मुगलकालीन शासकों का पाठ हटाकर कुम्भ मेला का पाठ शामिल किया गया।
आतंकवाद का खात्मा कैसे हो सकता है? स्थानीय लोगों को राज्य के मामलों से दूर रखने का निरंकुश तरीका आतंकवाद से निपटने में सबसे बड़ी बाधा है। सुरक्षा में बार-बार विफल होना, पुलवामा और अब पहलगाम में सुरक्षा व्यवस्था का विफल होना गहरी चिंता का विषय है।
नेहा राठौर और लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ माद्री ककोटी उर्फ डॉ मेडुसा के ऊपर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर लिया गया। गोदी मीडिया और भाजपा के ट्रोल ने उनके खिलाफ ज़हर उगलना शुरू कर दिया है।न तो नेहा राठौर और न ही माद्री ककोटी ने इस मामले में कोई खेद व्यक्त किया बल्कि नेहा लगातार आलोचना जारी रखे हुये हैं। एक वीडियों में उन्होंने गोदी मीडिया को देश का गद्दार और अपराधी भी कहा।
पहलगाम पर आतंकियों द्वारा किया गया हमला 100% सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का जीता-जागता उदाहरण है। पिछले कुछ वर्षों में, सांप्रदायिक तत्वों ने देश में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा करने में सफलता प्राप्त की है। यह पहली बार नहीं हुआ है बल्कि इसके पहले पुलवामा अटैक भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का एक बड़ा हिस्सा था। इसी तरह अगस्त 2016 में बुरहान वानी की हत्या के बाद हुए बंद के दौरान दो सप्ताह जम्मू-कश्मीर में रहकर वहाँ की स्थितियों पर लिए गए जायजे के अनुभव साझा कर रहे हैं सुरेश खैरनार।
आज हम बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर की 134 वीं जयंती एक ऐसे समय में मना रहे हैं, जब आंबेडकरवादियों को उस हिन्दू राज का भय बुरी तरह सता रहा है, जिसके खतरे से बचने के लिए बाबा साहब वर्षों पहले आगाह कर गए थे। उन्होंने हिन्दू राज के खतरे से आगाह करते हुए कहा था, ’अगर हिन्दू राज हकीकत बनता है, तब वह इस मुल्क के लिए सबसे बड़ा अभिशाप होगा। हिन्दू कुछ भी कहें, हिन्दू धर्म स्वतंत्रता, समता और बंधुता के लिए खतरा है। इस पैमाने पर वह लोकतंत्र के साथ मेल नहीं खाता है। इसलिए हिन्दू राज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए।’
भारतीय शिक्षा प्रणाली पर हिंदू साम्प्रदायिक तत्वों के पहले भी आरएसएस के साम्प्रदायिक संस्करण के माध्यम से प्रतिभाओं, एकल संप्रदायों और शैक्षणिक संस्थानों को बढ़ावा दिया जा रहा था। एनसीईआरटी की इतिहास की किताब से कक्षा सात से मुगलकालीन शासकों का पाठ हटाकर कुम्भ मेला का पाठ शामिल किया गया।
आतंकवाद का खात्मा कैसे हो सकता है? स्थानीय लोगों को राज्य के मामलों से दूर रखने का निरंकुश तरीका आतंकवाद से निपटने में सबसे बड़ी बाधा है। सुरक्षा में बार-बार विफल होना, पुलवामा और अब पहलगाम में सुरक्षा व्यवस्था का विफल होना गहरी चिंता का विषय है।
नेहा राठौर और लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ माद्री ककोटी उर्फ डॉ मेडुसा के ऊपर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर लिया गया। गोदी मीडिया और भाजपा के ट्रोल ने उनके खिलाफ ज़हर उगलना शुरू कर दिया है।न तो नेहा राठौर और न ही माद्री ककोटी ने इस मामले में कोई खेद व्यक्त किया बल्कि नेहा लगातार आलोचना जारी रखे हुये हैं। एक वीडियों में उन्होंने गोदी मीडिया को देश का गद्दार और अपराधी भी कहा।
पहलगाम पर आतंकियों द्वारा किया गया हमला 100% सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का जीता-जागता उदाहरण है। पिछले कुछ वर्षों में, सांप्रदायिक तत्वों ने देश में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा करने में सफलता प्राप्त की है। यह पहली बार नहीं हुआ है बल्कि इसके पहले पुलवामा अटैक भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का एक बड़ा हिस्सा था। इसी तरह अगस्त 2016 में बुरहान वानी की हत्या के बाद हुए बंद के दौरान दो सप्ताह जम्मू-कश्मीर में रहकर वहाँ की स्थितियों पर लिए गए जायजे के अनुभव साझा कर रहे हैं सुरेश खैरनार।
आज हम बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर की 134 वीं जयंती एक ऐसे समय में मना रहे हैं, जब आंबेडकरवादियों को उस हिन्दू राज का भय बुरी तरह सता रहा है, जिसके खतरे से बचने के लिए बाबा साहब वर्षों पहले आगाह कर गए थे। उन्होंने हिन्दू राज के खतरे से आगाह करते हुए कहा था, ’अगर हिन्दू राज हकीकत बनता है, तब वह इस मुल्क के लिए सबसे बड़ा अभिशाप होगा। हिन्दू कुछ भी कहें, हिन्दू धर्म स्वतंत्रता, समता और बंधुता के लिए खतरा है। इस पैमाने पर वह लोकतंत्र के साथ मेल नहीं खाता है। इसलिए हिन्दू राज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए।’
भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 को फांसी की सजा दी गई थी और अपनी शहादत के बाद वे हमारे देश के उन बेहतरीन स्वाधीनता संग्राम सेनानियों में शामिल हो गये, जिन्होंने देश और अवाम को निःस्वार्थ भाव से अपनी सेवाएं दी। उन्होंने अंगेजी साम्राज्यवाद को ललकारा। मात्र 23 साल की उम्र में उन्होंने शहादत पाई, लेकिन शहादत के वक्त भी वे आजादी के आंदोलन की उस धारा का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, जो हमारे देश की राजनैतिक आजादी को आर्थिक आजादी में बदलने के लक्ष्य को लेकर लड़ रहे थे, जो चाहते थे कि आजादी के बाद देश के तमाम नागरिकों को जाति, भाषा, संप्रदाय के परे एक सुंदर जीवन जीने का और इस हेतु रोजी-रोटी का अधिकार मिले। निश्चित ही यह लक्ष्य अमीर और गरीब के बीच असमानता को खत्म किये बिना और समाज का समतामूलक आधार पर पुनर्गठन किये बिना पूरा नही हो सकता था। इसी कारण वे वैज्ञानिक समाजवाद की ओर आकर्षित हुए। उन्होंने मार्क्सवाद का अध्ययन किया, सोवियत संघ की मजदूर क्रांति का स्वागत किया और अपने विशद अध्ययन के क्रम में उनका रूपांतरण एक आतंकवादी से एक क्रांतिकारी में और फिर एक कम्युनिस्ट के रूप में हुआ।