Sunday, October 13, 2024
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सामाजिक न्याय

आखिर क्यों नहीं बन पा रही है दलित-पिछड़ों में राजनीतिक एकता

भारतीय समाज का ताना-बाना ही ऐसा बना हुआ है कि जातिवाद से मुक्ति दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती। हाँ, राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में वोट की राजनीति के लिए राजनैतिक दल और नेता भले ही इसे हटाने की बात करें लेकिन जमीनी स्तर पर इसमें कोई भी बदलाव नहीं हुआ है। दो पक्षीय व्यवहार खुलकर किया जाता रहा है और यही वजह है कि ओबीसी, एससी और एसटी का  शोषित हो लगातार प्रताड़ित हो रहे हैं। 

बिहार : महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकार चला रही कई योजनाएं

वर्तमान में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार और शोषण के मामलों में लगातार इजाफा हुआ है, जिसके लिए सरकार की ओर से महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं और कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त 24 घंटे महिला सुरक्षा हेल्पलाइन भी संचालित की जा रही है। इसके लिए स्कूल और कॉलेज में विशेष अभियान चला कर लड़कियों को जागरूक किया जा रहा है। किशोरियों को इसकी उपयोगिता और महत्ता के बारे में बताना चाहिए ताकि लड़कियां इसका उपयोग कर स्वयं को अनहोनी से बचा सकें।

भारतीय गणतंत्र के केंद्रीय तनावों का समाधान है जाति जनगणना

अठाहरवीं लोकसभा चुनाव में जनता के बड़े हिस्से ने जिस तरह से सामाजिक न्याय के मुद्दे को प्रमुख प्रश्न में तब्दील किया है, उससे अब यह साफ हो गया है कि आने वाले समय में जाति जनगणना को ज्यादा देर तक रोका नहीं जा सकता। जाति जनगणना भारतीय समाज के कई तालों को खोलने वाली चाभी साबित हो सकती है।  

दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रावासों में ओबीसी आरक्षण कब लागू किया जाएगा?

दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकांश छात्रावासों में ओबीसी आरक्षण लागू नहीं है। डीयू में राजनीति करने वाले छात्र संगठन एवं शिक्षक संगठन ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर मौन व्रत धारण किये हुए हैं। अपनी वेतन एवं सुविधाओं को लेकर आंदोलन करने वाले शिक्षक संगठन एवं प्रोफेसर ‘छात्रावासों में ओबीसी आरक्षण’ के मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं। यही चुप्पी दिल्ली विश्वविद्यालय में मनुवादियों के वर्चस्व को बनाये रखती है।

आखिर क्यों नहीं रुक रही है महिलाओं के प्रति हिंसा?

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार साल दर साल महिलाओं पर होनेवाली घरेलू हिंसा में लगातार बढ़ोत्तरी नजर आती है ,महिलाओं के साथ भेदभाव और हिंसा समाज के लिए एक अभिशाप है। इस हिंसा को रोकने के महिलाओं को जागरूक एवं शिक्षित करना होगा ताकि वे अपने खिलाफ होनेवाली हिंसा का प्रतिकार कर सकें। इसमें सामाजिक संस्थाओं को भी आगे आकर महिलाओं की मदद करनी होगी। लेकिन केवल जागरूकता की बात करके समाज अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो सकता ।

आखिर क्यों नहीं बन पा रही है दलित-पिछड़ों में राजनीतिक एकता

भारतीय समाज का ताना-बाना ही ऐसा बना हुआ है कि जातिवाद से मुक्ति दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती। हाँ, राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में वोट की राजनीति के लिए राजनैतिक दल और नेता भले ही इसे हटाने की बात करें लेकिन जमीनी स्तर पर इसमें कोई भी बदलाव नहीं हुआ है। दो पक्षीय व्यवहार खुलकर किया जाता रहा है और यही वजह है कि ओबीसी, एससी और एसटी का  शोषित हो लगातार प्रताड़ित हो रहे हैं। 

बिहार : महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकार चला रही कई योजनाएं

वर्तमान में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार और शोषण के मामलों में लगातार इजाफा हुआ है, जिसके लिए सरकार की ओर से महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं और कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त 24 घंटे महिला सुरक्षा हेल्पलाइन भी संचालित की जा रही है। इसके लिए स्कूल और कॉलेज में विशेष अभियान चला कर लड़कियों को जागरूक किया जा रहा है। किशोरियों को इसकी उपयोगिता और महत्ता के बारे में बताना चाहिए ताकि लड़कियां इसका उपयोग कर स्वयं को अनहोनी से बचा सकें।

भारतीय गणतंत्र के केंद्रीय तनावों का समाधान है जाति जनगणना

अठाहरवीं लोकसभा चुनाव में जनता के बड़े हिस्से ने जिस तरह से सामाजिक न्याय के मुद्दे को प्रमुख प्रश्न में तब्दील किया है, उससे अब यह साफ हो गया है कि आने वाले समय में जाति जनगणना को ज्यादा देर तक रोका नहीं जा सकता। जाति जनगणना भारतीय समाज के कई तालों को खोलने वाली चाभी साबित हो सकती है।  

दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रावासों में ओबीसी आरक्षण कब लागू किया जाएगा?

दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकांश छात्रावासों में ओबीसी आरक्षण लागू नहीं है। डीयू में राजनीति करने वाले छात्र संगठन एवं शिक्षक संगठन ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर मौन व्रत धारण किये हुए हैं। अपनी वेतन एवं सुविधाओं को लेकर आंदोलन करने वाले शिक्षक संगठन एवं प्रोफेसर ‘छात्रावासों में ओबीसी आरक्षण’ के मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं। यही चुप्पी दिल्ली विश्वविद्यालय में मनुवादियों के वर्चस्व को बनाये रखती है।

आखिर क्यों नहीं रुक रही है महिलाओं के प्रति हिंसा?

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार साल दर साल महिलाओं पर होनेवाली घरेलू हिंसा में लगातार बढ़ोत्तरी नजर आती है ,महिलाओं के साथ भेदभाव और हिंसा समाज के लिए एक अभिशाप है। इस हिंसा को रोकने के महिलाओं को जागरूक एवं शिक्षित करना होगा ताकि वे अपने खिलाफ होनेवाली हिंसा का प्रतिकार कर सकें। इसमें सामाजिक संस्थाओं को भी आगे आकर महिलाओं की मदद करनी होगी। लेकिन केवल जागरूकता की बात करके समाज अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो सकता ।

कब खत्म होगी महिलाओं की दोयम नागरिकता

बलात्कार जिस तरह पुरुषप्रधान व्यवस्था के वर्चस्व-संबंधों की पाशविक अभिव्यक्ति होती है, उसी तरह (महज़) बलात्कार का किया जाने वाला; बलात्कार की घटनाओं को नाटकीय बनाने वाला विरोध भी ‘उनकी’ महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के कारण ‘उनकी’ इज़्ज़त के ख़तरे में आने का कारण बन जाती है और फिर पुरुषप्रधान चर्चाओं की प्याली में तूफ़ान आ जाता है। इसके अंतर्गत महिलाओं पर होने वाले लैंगिक अत्याचारों की घटनाओं का ख़तरनाक तरीक़े से विरोध किया जाता है। ‘बलात्कारियों को तत्काल सरेआम फाँसी की सज़ा’ के केंद्रीय वक्तव्य के आसपास आज जो महिला सक्षमीकरण का चर्चा-विश्व निर्मित किया जा रहा है, वह महिलाओं के आत्मनिर्भर सामाजिक व्यवहार के लिए अनेक स्तरों पर ख़तरनाक साबित होता है।