संविधान निर्माताओं ने सोचा था कि कुछ दशकों में स्थिति बदल जाएगी, चुनाव इसका माध्यम होगा, लेकिन परिणाम हम सबके सामने है। आज भी यह निर्विवाद सत्य है कि लोग डॉ. अंबेडकर के विचारों का पालन करें या न करें लेकिन आज अंबेडकर के नाम पर राजनीति सबसे ऊपर है। ऊपरी तौर पर ही सही सभी राजनेता आज मानने को बाध्य है कि डॉ. भीम राव अंबेडकर ने हमें दुनिया का सबसे अच्छा संविधान दिया है। लेकिन इसके बाद भी ब्राह्मणवादी सोच ने पूरे देश में दलित,पिछड़े और अल्पसंख्यकों पर हावी हैं। सवाल यह भी होगा कि क्या संविधान बनने के 75 साल बाद भी बाबा साहब डॉ. भीम राव अंबेडकर असफल रहे? क्या उनका सपना बस सपना ही रह गया और अगर ऐसा है तो क्या इसके लिए हम सब जिम्मेदार नहीं हैं?
अपराधियों को सीधे गोली मारकर जहन्नुम भेजने का दावा करने वाले पुलिसस्टेट में तब्दील हो चुके राज्य में डबल इंजन की नाक के नीचे सेक्स और नशे का धंधा करने का आरोप है इन बदमाशों पर। ये इम्पॉसिबल है कि बिज़नेस मॉडल के ऐसे संगठित अपराध बिना पुलिस के जानकारी के फल फूल पाएं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दस सालों में संसद में मिले विपुल बहुमत का उपयोग सबसे अधिक सवर्ण वर्चस्व कायम करने में किया है। इस क्रम में वर्ग संघर्ष का ऐसा इकतरफा खेल खेला है जिसकी नई सदी में कोई मिसाल ही नहीं है। दुनिया में कहीं भी सुविधाभोगी वर्ग के हित में ऐसी नीतियां ही नहीं बनीं। सवर्ण हितों में इकतरफा नीतियां बनाते देख सवर्णों का हर तबका मोदी का आँख मूँदकर समर्थन कर रहा है। पढ़िये जाने-माने लेखक एच एल दुसाध का विचारोत्तेजक विश्लेषण ।
संविधान भले ही सभी को बराबरी का अधिकार देता है लेकिन समाज में मनुस्मृति के समर्थकों के गले यह बात नहीं उतरती। यही लोग हैं जो समाज की जातिवादी व्यवस्था को मजबूत किए हुए हैं। इसके साथ नेता मंत्री अपने भाषणों में सभी के बराबर होने की बात करते हैं लेकिन कहीं न कहीं उनके लोग इसे नकारते दिख जाते हैं। दलितों को समाज में उपेक्षित नज़रों से देखते हैं। दलित दुल्हों को घोड़ी पर देखकर सवर्ण बिदक जाते हैं। समाज के वंचित समुदाय के लोगों का आगे बढ़ना उन्हें नागवार गुजरता है और विरोधस्वरूप मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। वैसे तो दलितों से भेदभाव हर प्रदेश में हो रहा है लेकिन इन पर हमले और हिंसा के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है।
बरगढ़ में संयुक्त कृषक संगठन ने 17 मार्च को आयोजित महापंचायत में हजारों किसान और कृषि मजदूर शामिल हुए। वे उच्च बिजली शुल्क और टाटा पावर द्वारा लगाए गए स्मार्ट मीटर के खिलाफ अपने विरोध की सफलता के लिए एकत्रित हुए।
संविधान निर्माताओं ने सोचा था कि कुछ दशकों में स्थिति बदल जाएगी, चुनाव इसका माध्यम होगा, लेकिन परिणाम हम सबके सामने है। आज भी यह निर्विवाद सत्य है कि लोग डॉ. अंबेडकर के विचारों का पालन करें या न करें लेकिन आज अंबेडकर के नाम पर राजनीति सबसे ऊपर है। ऊपरी तौर पर ही सही सभी राजनेता आज मानने को बाध्य है कि डॉ. भीम राव अंबेडकर ने हमें दुनिया का सबसे अच्छा संविधान दिया है। लेकिन इसके बाद भी ब्राह्मणवादी सोच ने पूरे देश में दलित,पिछड़े और अल्पसंख्यकों पर हावी हैं। सवाल यह भी होगा कि क्या संविधान बनने के 75 साल बाद भी बाबा साहब डॉ. भीम राव अंबेडकर असफल रहे? क्या उनका सपना बस सपना ही रह गया और अगर ऐसा है तो क्या इसके लिए हम सब जिम्मेदार नहीं हैं?
अपराधियों को सीधे गोली मारकर जहन्नुम भेजने का दावा करने वाले पुलिसस्टेट में तब्दील हो चुके राज्य में डबल इंजन की नाक के नीचे सेक्स और नशे का धंधा करने का आरोप है इन बदमाशों पर। ये इम्पॉसिबल है कि बिज़नेस मॉडल के ऐसे संगठित अपराध बिना पुलिस के जानकारी के फल फूल पाएं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दस सालों में संसद में मिले विपुल बहुमत का उपयोग सबसे अधिक सवर्ण वर्चस्व कायम करने में किया है। इस क्रम में वर्ग संघर्ष का ऐसा इकतरफा खेल खेला है जिसकी नई सदी में कोई मिसाल ही नहीं है। दुनिया में कहीं भी सुविधाभोगी वर्ग के हित में ऐसी नीतियां ही नहीं बनीं। सवर्ण हितों में इकतरफा नीतियां बनाते देख सवर्णों का हर तबका मोदी का आँख मूँदकर समर्थन कर रहा है। पढ़िये जाने-माने लेखक एच एल दुसाध का विचारोत्तेजक विश्लेषण ।
संविधान भले ही सभी को बराबरी का अधिकार देता है लेकिन समाज में मनुस्मृति के समर्थकों के गले यह बात नहीं उतरती। यही लोग हैं जो समाज की जातिवादी व्यवस्था को मजबूत किए हुए हैं। इसके साथ नेता मंत्री अपने भाषणों में सभी के बराबर होने की बात करते हैं लेकिन कहीं न कहीं उनके लोग इसे नकारते दिख जाते हैं। दलितों को समाज में उपेक्षित नज़रों से देखते हैं। दलित दुल्हों को घोड़ी पर देखकर सवर्ण बिदक जाते हैं। समाज के वंचित समुदाय के लोगों का आगे बढ़ना उन्हें नागवार गुजरता है और विरोधस्वरूप मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। वैसे तो दलितों से भेदभाव हर प्रदेश में हो रहा है लेकिन इन पर हमले और हिंसा के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है।
बरगढ़ में संयुक्त कृषक संगठन ने 17 मार्च को आयोजित महापंचायत में हजारों किसान और कृषि मजदूर शामिल हुए। वे उच्च बिजली शुल्क और टाटा पावर द्वारा लगाए गए स्मार्ट मीटर के खिलाफ अपने विरोध की सफलता के लिए एकत्रित हुए।
ज्योतिबा फुले की व्यक्तिगत जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी जिस कारण उन्हें तत्कालीन सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ काम करने की प्रेरणा और सामान्य से अधिक अध्ययन का मौका मिला। सगुणाबाई ने जोतीबा को अच्छी शिक्षा-दीक्षा देने के लिए मिस्टर जॉन की भी मदद ली। सगुणाबाई ने ज्योति-सावित्रीबाई फुले के जीवन को आकार देने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी।