Saturday, July 27, 2024
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सामाजिक न्याय

गरीबों, चरवाहों एवं किसानों की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने की सरकारी रणनीति

देश में अमीरों और गरीबों की जनगणना तो नहीं हुई है लेकिन इसके बाद यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि देश की 80 करोड़ जनता गरीबी में जीवनयापन कर रही है, जिन्हें सरकार हर महीने 5 किलो राशन देती है। लेकिन वर्ष 2024 के आम बजट में इन गरीबों के लिए कोई भी प्रावधान नहीं किया गया। सवाल यह है कि कब इनके ऊपर सरकार मेहरबान होगी।

क्या सरकार के पास घुमंतू जनजातियों के मुकम्मल सम्मान और पहचान की कोई योजना है?

घुमंतू समुदायों का जीवन बहुत ही नारकीय है। देश में लगभग 20 करोड़ लोग विमुक्त, घुमन्तू व अर्द्ध-घुमन्तू जनजातियों के अंतर्गत आते हैं। यह लोग सड़क के किनारे, शहर-गाँव से बाहर झोपड़ी बनाकर रहते हैं। सरकार की किसी भी योजना का लाभ इन्हें नहीं मिलता क्योंकि इनका आधार कार्ड नहीं बन पाता है, इस वजह से सुविधा का लाभ ये नहीं उठा पाता। इनके बच्चे स्कूल जाने से वंचित रह जाते हैं और भीख मांगने को मजबूर रहते हैं। यह समुदाय तिरस्कृत जीवन जीने को मजबूर हैं। सरकार के पास इस समुदाय के लिए किसी प्रकार की कोई योजना नहीं है।

आरक्षण : पटना हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध सड़क पर क्यों नहीं आ रहा है विपक्ष

बिहार उच्च न्यायालय द्वारा राज्य में अतिरिक्त आरक्षण को अवैध घोषित कर दिया है। इस फैसले को लेकर विपक्ष में सुगबुगाहट तो है लेकिन इसे लेकर वह सड़क पर उतारने में हिचकिचाता दिख रहा है। यह उसकी भूमिका और नीयत पर कई सवाल खड़े करता है। खासतौर से तब जब 18वीं लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने सामाजिक न्याय और भागीदारी को स्पष्ट रूप से छोड़ दिया और यही विपक्ष का केंद्रीय मुद्दा रहा हो।

शिक्षा के प्रसार के लिए आज से सौ वर्ष पहले ही शाहूजी महाराज ने अनिवार्य और नि:शुल्क प्राथमिक शिक्षा शुरुआत की थी

देश में अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा से सम्बंधित कानून वर्ष 2002 में 86वें  संशोधन के माध्यम से लागू किया गया अर्थात इसे लागू हुए अभी मात्र 20-22 वर्ष ही हुए है लेकिन आज से सौ वर्ष पहले छत्रपति शाहूजी महाराज ने अपने राज्य कोल्हापुर में वंचित और बहुजन समाज के बच्चों को शिक्षित करने का नियम बनाया। महाराष्ट्र की धरती पर स्थित एक छोटे से राज्य कोल्हापुर के छत्रपति शाहूजी महाराज ने अपने राज्य की जनता के कल्याण की भावना से जो कार्य किए और साथ ही वंचितों, उपेक्षितों, शोषितों, निराश्रितों, अछूतों, शापितों, ताड़ितों और नारियों के उत्थान के लिए जो चुनौतीपूर्ण सफल संघर्ष किया वैसा उदाहरण पूरे विश्व के इतिहास में किसी शासक का किसी कालखंड में नहीं मिलता।

आज की स्थिति में आधी आबादी को आर्थिक-सामाजिक समानता मिलना दूर की कौड़ी

किसी भी देश की आर्थिक असमानता उस देश के सामाजिक जीवन को पूरी तरह से प्रभावित करती है। भारत जैसे बड़े लोकतान्त्रिक देश में वर्ल्ड इनइक्वालिटी लैब की ताजी रिपोर्ट से यह बात सामने आई है कि पिछले दस वर्षों में सवर्णों की संपत्ति में हिस्सेदारी उत्तरोत्तर बढ़ती गई है, जबकि ओबीसी और एससी की हिस्सेदारी में हर वर्ष गिरावट आई है। जब तक स्थिति यही रहेगी, कभी भी समानता की कल्पना नहीं की जा सकती।

गरीबों, चरवाहों एवं किसानों की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने की सरकारी रणनीति

देश में अमीरों और गरीबों की जनगणना तो नहीं हुई है लेकिन इसके बाद यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि देश की 80 करोड़ जनता गरीबी में जीवनयापन कर रही है, जिन्हें सरकार हर महीने 5 किलो राशन देती है। लेकिन वर्ष 2024 के आम बजट में इन गरीबों के लिए कोई भी प्रावधान नहीं किया गया। सवाल यह है कि कब इनके ऊपर सरकार मेहरबान होगी।

क्या सरकार के पास घुमंतू जनजातियों के मुकम्मल सम्मान और पहचान की कोई योजना है?

घुमंतू समुदायों का जीवन बहुत ही नारकीय है। देश में लगभग 20 करोड़ लोग विमुक्त, घुमन्तू व अर्द्ध-घुमन्तू जनजातियों के अंतर्गत आते हैं। यह लोग सड़क के किनारे, शहर-गाँव से बाहर झोपड़ी बनाकर रहते हैं। सरकार की किसी भी योजना का लाभ इन्हें नहीं मिलता क्योंकि इनका आधार कार्ड नहीं बन पाता है, इस वजह से सुविधा का लाभ ये नहीं उठा पाता। इनके बच्चे स्कूल जाने से वंचित रह जाते हैं और भीख मांगने को मजबूर रहते हैं। यह समुदाय तिरस्कृत जीवन जीने को मजबूर हैं। सरकार के पास इस समुदाय के लिए किसी प्रकार की कोई योजना नहीं है।

आरक्षण : पटना हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध सड़क पर क्यों नहीं आ रहा है विपक्ष

बिहार उच्च न्यायालय द्वारा राज्य में अतिरिक्त आरक्षण को अवैध घोषित कर दिया है। इस फैसले को लेकर विपक्ष में सुगबुगाहट तो है लेकिन इसे लेकर वह सड़क पर उतारने में हिचकिचाता दिख रहा है। यह उसकी भूमिका और नीयत पर कई सवाल खड़े करता है। खासतौर से तब जब 18वीं लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने सामाजिक न्याय और भागीदारी को स्पष्ट रूप से छोड़ दिया और यही विपक्ष का केंद्रीय मुद्दा रहा हो।

शिक्षा के प्रसार के लिए आज से सौ वर्ष पहले ही शाहूजी महाराज ने अनिवार्य और नि:शुल्क प्राथमिक शिक्षा शुरुआत की थी

देश में अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा से सम्बंधित कानून वर्ष 2002 में 86वें  संशोधन के माध्यम से लागू किया गया अर्थात इसे लागू हुए अभी मात्र 20-22 वर्ष ही हुए है लेकिन आज से सौ वर्ष पहले छत्रपति शाहूजी महाराज ने अपने राज्य कोल्हापुर में वंचित और बहुजन समाज के बच्चों को शिक्षित करने का नियम बनाया। महाराष्ट्र की धरती पर स्थित एक छोटे से राज्य कोल्हापुर के छत्रपति शाहूजी महाराज ने अपने राज्य की जनता के कल्याण की भावना से जो कार्य किए और साथ ही वंचितों, उपेक्षितों, शोषितों, निराश्रितों, अछूतों, शापितों, ताड़ितों और नारियों के उत्थान के लिए जो चुनौतीपूर्ण सफल संघर्ष किया वैसा उदाहरण पूरे विश्व के इतिहास में किसी शासक का किसी कालखंड में नहीं मिलता।

आज की स्थिति में आधी आबादी को आर्थिक-सामाजिक समानता मिलना दूर की कौड़ी

किसी भी देश की आर्थिक असमानता उस देश के सामाजिक जीवन को पूरी तरह से प्रभावित करती है। भारत जैसे बड़े लोकतान्त्रिक देश में वर्ल्ड इनइक्वालिटी लैब की ताजी रिपोर्ट से यह बात सामने आई है कि पिछले दस वर्षों में सवर्णों की संपत्ति में हिस्सेदारी उत्तरोत्तर बढ़ती गई है, जबकि ओबीसी और एससी की हिस्सेदारी में हर वर्ष गिरावट आई है। जब तक स्थिति यही रहेगी, कभी भी समानता की कल्पना नहीं की जा सकती।

विकास के नाम पर आदिवासी अपने मूल स्थान से लगातार विस्थापित किए जा रहे हैं

विस्थापन का एक बड़ा कारण विकास परियोजना के अंतर्गत बड़े-बड़े बांधों का निर्माण है। सरकार द्वारा भले ही बहूद्देशीय बांध बनाए जा रहे हैं लेकिन आदिवासियों का विस्थापन उन्हें  विकास की श्रेणी से अनेक साल पीछे धकेल दे रहा है। केवल बांधों से विस्थापित होने वाले आदिवासियों की जनसंख्या 2 से 5 करोड़ तक है