Saturday, July 27, 2024

दुकानों पर नाम प्रकरण : निशाने पर पसमांदा मुसलमान, सुप्रीम कोर्ट ने लोकतन्त्र की हिमायत की

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की भाजपा सरकारों ने जिस तरह से काँवड़ यात्रा की राह में पड़ने वाली दुकानों, ठेलों और होटलों पर मालिक के नाम की तख्ती अथवा फ़्लेक्स लगाने का फरमान जारी किया वह निश्चित रूप मेहनतकश पसमांदा मुसलमानों को निशाने पर लेने का प्रयास था। यह 2024 के चुनाव में घुटनों के बल आई भाजपा की हताशा को दर्शाता है। लेकिन इससे भी बढ़कर विकराल होती बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों को उलझाने का षड्यंत्र भी है। भाजपा को लगता है कि इस तरह के नैरेटिव बनाकर वह न सिर्फ हिंदू दूकानदारों बल्कि रोजगार की उम्मीद में उम्रदराज़ हो रहे युवाओं को भी खुश कर देगी। यह एक खतरनाक कदम था जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाम लगाया।

बिहार : बेहिसाब परेशानियों को देखकर खेती के प्रति नई पीढ़ी का रुझान घट रहा है

केंद्रीय बजट 2024-25 में भी कृषि और किसानों का विशेष ध्यान रखते हुए कई नई घोषणाएं कर कृषि और इससे जुड़े सेक्टरों के लिए 1.52 लाख करोड़ रुपए प्रावधान किया गया है। लेकिन कृषि समस्याओं और जरूरतों को देखते हुए यह पर्याप्त नहीं है। बीज और खाद की बढ़ी हुई कीमत के साथ सिंचाई की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाने के कारण आने वाली पीढ़ी खेती-किसानी का काम नहीं करना चाह रही है। साथ ही बजट में हुई घोषणाएँ सीमांत किसान तक पहुँच पाएँ, ऐसी व्यवस्था की जानी जरूरी है।

सरकारी नौकरियों में आरक्षण के बावजूद क्यों पूरी नहीं हो पा रही है पिछड़ों, दलितों एवं आदिवासियों की भागीदारी?

भारत में आरक्षण, समाज के सबसे पिछड़े और वंचित समुदाय को मुख्य धारा में शामिल करने की जाति आधारित सकारात्मक कार्रवाई है। भारतीय संविधान के अनुसार केंद्र और राज्य सरकार में सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए शिक्षा, रोजगार और राजनैतिक निकायों में सीटों का प्रतिशत निर्धारित किया गया है। लेकिन  मनुवादी व्यवस्था ने वर्ष 2019 में अपने लिए 10 प्रतिशत सुदामा कोटा हासिल कर लिया, जो उनकी आबादी के हिसाब से है लेकिन पिछड़ों को उनकी आबादी के हिसाब से आधा भी नहीं मिला। इसलिए यह मांग की जाती रही है ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी।'

Mirzapur : पत्थर खदान ने सिलकोसिस का मरीज बनाया इलाज टी.बी. का होता रहा

मिर्जापुर के राजगढ़ ब्लॉक के सरसों गांव में पत्थर की खदानों में काम करने से लगभग हर घर में एक टीबी का मरीज है। इनमें से कई की मौत...

ग्राउंड रिपोर्ट

देश

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आजमगढ़ : दो वर्षों से चल रहे किसान आंदोलन की आवाज़ संसद में पहुंचाएंगे सांसद दरोगा सरोज  

उत्तर प्रदेश का हाइपर विकास हो रहा है। इस विकास के लिए किसानों को उनकी ज़मीनों से विस्थापित किया जा रहा है। किसान जो देश की अर्थव्यस्ठा को मजबूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं को सड़क पर लाने का पूरा इंतजाम सरकार कर रही है। इस वजह से देश के अनेक हिस्सों में किसानों के छोटे-बड़े आंदोलन चल रहे हैं।

देवरिया : सरकार द्वारा तीन नए आपराधिक क़ानूनों को लेकर सामाजिक मंचों ने सौंपा ज्ञापन

देवरिया के नागरिक मंच ने भारत सरकार द्वारा 1 जुलाई से लागू तीन नए आपराधिक कानून को लेकर पुनर्विचार कर संशोधन की मांग के साथ यूएपीए को वापस लेने की मांग की है। उनका कहना है की इस कानून से पुलिस वालों की अधिकार शक्ति बढ़ने से जनता के प्रति दुरुपयोग बढ़ेगा।

गया : कुछ गांवों में सड़क तो बनी है लेकिन वहाँ आने-जाने के साधन नहीं है 

अकसर लोगों की शिकायत होती है कि सड़क सही नहीं है, गाड़ियां आने-जाने में दिक्कत होती है लेकिन गया ज़िले का कैशापी पुरानी डिह गांव में सड़क तो बनकर तैयार हैं लेकिन उस गाँव तक पहुंचने के लिए उचित संसाधन और परिवहन नही पहुँच पा रहे हैं।

सेला दर्रा : बर्फ़ और बादलों का आनंदलोक

मगिरि के उत्तुंग शिखर पर स्थित इस मनमोहक स्थान सेला पास पर फरवरी और मार्च महीने में लगभग 7 डिग्री सेल्सियस तापमान रहता है, जहां अनवरत बर्फबारी होती रहती है और ठंड से ठिठुरते हुए श्वेत-श्याम शिखर से शीतल हवाएं अठखेलियां करती रहती हैं।

फिलिस्तीन में मौत से अधिक कठिन है जिंदा रहना – इरफान इंजीनियर

दो देशों के युद्द में सबसे ज्यादा तबाह वहाँ के नागरिक होते हैं। इजरायल और फिलिस्तीन एवं रूस व उक्रेन में यह देखा जा सकता है। इजरायल फिलिस्तिनियों को पूरी तरह ज़मींदोज़ कर उनकी हस्ती मिटाना चाहता है और यह कर भी रहा है। इजरायल के लगातार हमले से फिलिस्तीनी नागरिक मर रहे हैं। अब बच्चों को भी निशाना बनाया जा रहा है। पिछले नौ महीने में 37 हजार बच्चे मारे गए। यह बहुत ही गैर जिम्मेदाराना हरकत है।

Varanasi : वरुणा नदी में कई नालों का पानी गिरने से अब पानी खेती के लायक नहीं रहा

बनारस में वरुणा नदी के बहुत अधिक प्रदूषण के कारण किसान खेत की सिंचाई भी इस पानी नहीं कर पाते. यदि इसी तरह वरुणा प्रदूषित होती रही तो जल्द ही नाले में तब्दील हो जाएगी.

नीट की परीक्षा शुचिता पर उठे सवाल, छात्रों ने लगाया धांधली का गंभीर आरोप

छात्रों का कहना है कि गरीब माँ बाप अपना पेट काटकर अपने बच्चों की कापी किताब के साथ अन्य जरूरतों को पूरा करते रहते हैं इस उम्मीद के साथ कि एक दिन ऐसा आयेगा जब उनका बेटा डॉक्टर बनेगा और उनकी गरीबी दूर होगी, लेकिन उनके सपनों पर तब पानी फिर जाता है जब ये परीक्षाएं धांधली की भेंट चढ़ जाती हैं।

उच्चतम न्यायालय ने मतदान आंकड़े 48 घंटे के भीतर जारी करने की याचिका पर निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा

उच्चतम न्यायालय ने निर्वाचन आयोग से एक हफ्ते के अंदर जवाब मांगा, जिसमें लोकसभा चुनाव के प्रत्येक चरण का मतदान संपन्न होने के 48 घंटे के अंदर मतदान केंद्रवार मत प्रतिशत के आंकड़े आयोग की वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

सर सुंदरलाल अस्पताल : अपने ही विभाग के खिलाफ आमरण अनशन पर क्यों बैठे हैं डॉ ओम शंकर

एक तरफ आज वाराणसी के सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन से एक दिन पहले 6 किलोमीटर का रोड शो करेंगे और जनता को लुभाएंगे, वहीं दूसरी तरफ जनता की स्वास्थ्य सुविधा की मांग के लिए लगातार आवाज उठाने वाले बीएचयू में हृदय रोग विभाग के विभागाध्ययक्ष डॉ ओमशंकर का आमरण अनशन का तीसरा दिन है।

मजदूरों की आवाज के लिए बना ट्रेड यूनियन, आज फासीवाद के दौर में खुद संघर्ष कर रहा है

मार्क्स का नारा था - दुनिया के मजदूरों एक हो। इस नारे की सबसे बड़ी पूंजीवादी आलोचना यही है कि हमारे देश में मजदूर जब किसी एक संगठन के नीचे नहीं हैं, तो दुनिया के मजदूर कैसे एक होंगे? लेकिन मार्क्स के इस नारे का अर्थ मजदूरों के किसी एक संगठन के नीचे एकत्रित होने का नहीं है। इस नारे का वास्तविक अर्थ यही है कि दुनिया के स्तर पर साम्राज्यवाद के खिलाफ और अपने-अपने देशों के भीतर सरकारों की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष में मजदूर एकजुट हों। आज भारत अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी की तानाशाही की जकड़ में है, कॉर्पोरेट और हिंदुत्व के गठबंधन ने देश की अस्मिता को दांव पर लगा दिया है, संवैधानिक संस्थाएं चरमरा रही है और एक फासीवादी तानाशाही का खतरा देश के दरवाजे पर खड़ा है।

ईवीएम भरोसेमंद नहीं, मतपत्रों से ही हो चुनाव में – सोशलिस्ट पार्टी इंडिया

इस प्रदर्शन का उद्देश्य मात्र इतना है कि ई.वी.एम. के बारे में भारत का निर्वाचन आयोग जो दावे कर रहा है कि ई.वी.एम. में कोई गड़बडी नहीं हो सकती, हम उसको गलत साबित कर रहे हैं।

सात बहनों का एक राज्य मेघालय है झीलों और बादलों का घर

वैसे तो पूरी धरती प्राकृतिक सुंदरता से भरी हुई है लेकिन भारत में जब प्राकृतिक सुंदरता की बात आती है तो उत्तर-पूर्वी राज्यों की याद जेहन में जरूर आती है। चाहे अरुणाचल प्रदेश हो या मिज़ोरम या फिर मेघालय। यहाँ की सुंदरता  पहाड़, नदी, झील और जंगलों से है। बाकी जगहों से यहाँ पहुँचना थोड़ा मुश्किल जरूर है लेकिन जाने के बाद वापस आने का मन नहीं होता। विनय कुमार ने मेघालय यात्रा वृतांत भेजा है, पाठक पढ़ते हुए वहाँ पहुँचकर आनंद उठा सकते हैं। 

राजस्थान : आंगनबाड़ी केंद्रों को आधुनिक और डिजिटल बना देने भर से आधारभूत समस्याएँ खत्म नहीं होती

देश के हर राज्य की सरकार अपने कामकाज और विभागों को स्मार्टफोन या टैबलेट उपलब्ध करा कर ऑनलाइन काम करने की सुविधा प्रदान कर रहा है। ताकि उनके विभागों का डिजिटलाइशेन हो चुका है, लेकिन काम करने वाली आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब तक पानी, शौचालय, पोषणाहार की व्यवस्था नहीं होगी तब तक बच्चे और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य बेहतर कैसा होगा?

उदयपुर : प्रोफेसर हिमांशु पंड्या पर संघी गुंडों के हमले की देशभर में निंदा

लोकतान्त्रिक देशों में अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगे या बोलने वाले पर हमला किया जाए, तब इसे फासीवाद की संज्ञा दी जाती है। अभी 4 जून को इस विशाल लोकतान्त्रिक देश में नए चुनाव हुए। मतदातओं के हिंदुत्ववादी राजनीति के व्यापक निषेध के बावजूद फासीवाद दौर खत्म नहीं हुआ बल्कि अब अधिक बर्बर रूप में सामने आने की आशंका है।

वाराणसी : चार दिवसीय ग्रीष्मकालीन शिविर में बच्चों ने खूब किया एंजॉय

दस माह के स्कूल के बाद जब दो महीने की ग्रीष्मकालीन छुट्टियाँ मिलती हैं तो बच्चे और उनके साथ माता-पिता भी थोड़ी राहत महसूस करते हैं। इन्हीं दो महीने की छुट्टियों में बच्चे को यदि कोई मजेदार शिविर में शामिल होने का मौका मिल जाये तो उसे आनंद आ जाता है।

दलित उत्पीड़न : मध्य प्रदेश में दलित युवती की मौत, परिजनों ने लगाया रंजिशन हत्या का आरोप

पिछले साल अपने भाई की हत्या का दावा करते हुए पुलिस में मामला दर्ज कराने वाली दलित समुदाय की अंजना अहिरवार की रविवार को सागर में अपने चाचा के शव को ले जाते समय एम्बुलेंस से गिरने के बाद मृत्यु हो गई। उसकी मौत ने राजनीतिक गलियारे में हलचल तेज कर दी है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी ने दावा किया कि अंजना के भाई की अगस्त में बरोदिया नोनागिर में सरेआम हत्या कर दी गई थी और उनका परिवार अब भी न्याय का इंतजार कर रहा है।

समाज में फैले भ्रष्टाचार के लिए कौन जिम्मेदार है 

किसी भी देश का तंत्र(सिस्टम) कैसा है, जानने के लिए वहाँ की राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति से पता किया जा सकता है। यदि सिस्टम भ्रष्ट है तो वहाँ रहने वाले लोग भी भ्रष्ट होंगे। हमारे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने वाले संगठन, दल, गैर सरकारी संस्थाएं और समाज के लोग खुद ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में लिप्त हैं। पढ़िये तेजपाल सिंह 'तेज' का यह लेख

क्या सेठ अंबानी की दावत में शामिल होने से अखिलेश यादव छोटे और न शामिल होने से राहुल गांधी बड़े नेता बन गए हैं

अनंत अंबानी की शादी में राजनेताओं के शामिल होने को लेकर भारत में भीषण मॉरल पुलिसिंग जारी है। जनवादी सोच का कोई भी व्यक्ति इसे धनबल का नंगा और अश्लील प्रदर्शन ही कहेगा। लेकिन शादी में विपक्ष के अनेक नेताओं के शामिल होने और राहुल गांधी के न शामिल होने को लेकर जिस तरह की बहसें चल रही हैं उससे अंदाज़ा होता है कि देश की जनता अभी भी हर मुद्दा ज़मीन पर नहीं इमोशनल संसार में सुलझाने में अधिक रुचि लेती है। लोकतंत्र के सबसे कठिन दौर में जब सघन राजनीतिक बहसों, आंदोलनों और संघर्षों के जरिये नेताओं को परखने की जरूरत है तब एक शादी के बहाने खड़ी की गई बहसों के जलजले ने बता दिया कि अभी यह दौर कुछ और चलेगा। इन स्थितियों का विश्लेषण कर रहे हैं युवा लेखक मुलायम सिंह।

देश की संस्कृति, सभ्यता, इतिहास पर हमला करने वाले कब नियंत्रित होंगे?

वर्ष 2014 में बीजेपी के आ जाने के बाद संघ और मजबूती से अपनी रणनीतियों को लागू करने की तेजी दिखा रही है। एक तरफ संविधान बदलकर हिन्दू राष्ट्र बनाने की जल्दी है, वहीं दूसरी तरफ देश की शिक्षा व कानून में बदलाव कर उसे अपने कब्जे में करने की रणनीति तैयार की जा रही है।

क्यों लगता है कि नालंदा महाविहार को बख्तियार खिलजी ने नष्ट किया था?

देश में हिंदुतव को लेकर जो माहौल चल रहा है, उसमें मुसलमानों को कटघरे में खड़े करने में संघ ने कभी कोई परहेज नहीं करेगा। अभी हाल में नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया और अपने भाषण में प्राचीन विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को जलाकर नष्ट करने का आरोप बख्तियार खिलजी पर लगाया क्योंकि वह मुसलमान था। लेकिन इतिहास के प्रमाण कुछ और ही बात साबित करते हैं। पढ़िए यह लेख

विधानसभा उपचुनाव : क्या बूढ़े नेताओं को नकार रही है जनता

7 राज्यों में 13 सीटों पर हुए उपचुनाव में इंडिया गठबंधन ने 10 सीटों पर चुनाव जीत लिया। भाजपा को कुल 2 सीटों पर जीत हासिल हुई। इससे एक बात स्पष्ट हो गई कि जनता भी अब जायज़ मुद्दे पर ही चुनाव में प्रतिनिधि का चुनाव करेगी। जनता हिंदुतव और धर्म के मुद्दे से ऊब चुकी है। लोकसभा चुनाव में भी जनता की मंशा सामने आई थी और विधानसभा उपचुनाव के ये नतीजे भी संकेत कर रहे हैं कि राजनैतिक दल यदि ऐसे ही रहे तो उनका चुनाव जीतना मुश्किल होगा।

संविधान का उल्लंघन करने वाले ही घोषणा कर रहे हैं संविधान हत्या दिवस मनाने का

संविधान की धज्जियां उड़ाने वाली वर्तमान केंद्र सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने की घोषणा की है। इनका कहना है कि 1975 में 25 जून को आपातकाल का लगाया जाना संविधान की हत्या करना ही था। यह आपातकाल एक बार लगा था लेकिन वर्ष 2014 से जब से भाजपा सरकार सत्ता में है, तब से पूरे देश में अघोषित आपातकाल लगा हुआ है और देश के संविधान के विरुद्ध ही सभी निर्णय लिए जा रहे हैं। सवाल यह है कि ऐसे में संविधान हत्या दिवस की घोषणा करना क्या उचित है?

वर्ष 2014 से देश में चल रहा है अघोषित आपातकाल

पिछले दस वर्षों से केंद्र सरकार जिस तरह से देश में उनके खिलाफ बोलने, लिखने या आंदोलनकारियों को पकड़-पकड़ कर जेल में डालते हुए उन्हें राष्ट्रद्रोही घोषित कर रही है, वह किसी आपातकाल से कम नहीं है। बल्कि यह उस आपातकाल से भी ज्यादा खतरनाक और हिंसक है।

राहुल गाँधी को बच्चा कह देने से विपक्ष के मुद्दे कमजोर नहीं पड़ सकते

केंद्र की मोदी सरकार के पिछले दो कार्यकाल संसद में विपक्ष के नेता के बिना ही चला और बीजेपी सरकार ने खूब मनमानी की। लेकिन अठारहवीं लोकसभा के चुनाव के बाद इस बार संसद में विपक्ष के नेता की बागडोर राहुल गांधी के जिम्मे है, और वे इस ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह निभा रहे हैं। इसे उन्होंने संसद के पहले सत्र में ही दिखा दिया। इस बार सत्ता पक्ष को संसद में उन सवालों से दो-चार होना ही पड़ेगा, जिनसे वह बचता आया था।

एनडीए सरकार के हिन्दू राष्ट्रवाद का निशाना बनते मुसलमान

पिछले दस वर्षों के दो कार्यकाल में मोदी ने ध्रुवीकरण को करने के लिए साम-दंड-भेद सभी तरीके अपनाए, वह सामने है। मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक ज़हर से भरे हुए भाषण, उनके पहनावे, खान-पान, बुर्का-हिजाब, गाय की तस्करी को लेकर हुई मॉब लिंचिंग, लव जेहाद, सीएए/एनआरसी जैसे अनेक मामले सामने आए। तीसरे कार्यकाल में मुसलमानों की सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक स्थिति में कितना और कैसा बदलाव होगा? समय के साथ सामने आएगा।

वाराणसी की जुलाहा स्त्रियाँ : मेहनत का इतना दयनीय मूल्य और कहीं नहीं

बनारसी सदी उद्योग में आई गिरावट ने बुनकर परिवारों के सामने कई तरह के संकट खड़े कर दिये हैं। पहले जहां बुनकरों के पास लगातार काम होता था और बुनकर परिवार की महिलाओं को किनारा, दुपट्टा, शीशा लगाने आदि कामों से प्रतिदिन साठ-सत्तर रुपये मजदूरी मिलती थी वहीं अब यह बीते जमाने की बात हो चुकी है। अब वे जो काम करती हैं वह पीस के हिसाब से बहुत सस्ती दर पर करना पड़ता है और उन्हें प्रतिदिन बमुश्किल पाँच-दस रुपए ही मजदूरी मिल पाती है। गरीबी, मंदी और अर्द्धबेरोजगारी झेलते परिवार चलाने के लिए जद्दोजहद करती महिलाओं पर अपर्णा की ग्राउंड रिपोर्ट।

खेती पर बाज़ार की मार और सरकार की नीतियों से आक्रोश में हैं धानापुर (चंदौली) के किसान

चंदौली पूर्वांचल के सर्वाधिक पिछड़े जिलों में एक है लेकिन यहाँ धान की पैदावार समेत अनेक कृषि उत्पाद इतनी प्रचुरता में होते हैं कि वे देश के अन्य इलाकों तक भी जाते हैं। यहाँ धान की कई किस्में पैदा होती हैं जिनका एक बड़ा बाज़ार है। इसके बावजूद यहाँ के किसान बाज़ार की मनमानी और सरकारी नीतियों तथा स्थानीय विभागों से परेशान हैं। उनकी शिकायत है कि उन्हें अपनी फसल का उचित दाम नहीं मिल पाता। चंदौली के प्रमुख क्षेत्र धानापुर में सैकड़ों किसान गंगा कटान से पीड़ित हैं लेकिन जनप्रतिनिधियों ने उन्हें इस समस्या से उबारने में कोई सहयोग नहीं किया। अपनी व्यथा-कथा कहते किसान इन स्थितियों से बहुत आक्रोश में हैं।

मजदूरों को काम देने में नाकाम होती जा रही हैं बनारस की श्रम मंडियाँ

एक समय था जब असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को मंडियों में आसानी से काम मिल जाया करता था लेकिन आज स्थिति यह हो गई है कि पूरे महीने भर में केवल 10-15 दिन ही लोगों को रोजगार मिल पा रहा है। यह स्थिति मजदूरों के अनुसार पिछले 8-10 वर्षों में जयादा तेजी के साथ आई है।

बिहार : महंगे सिलेंडर के कारण गाँव में फिर से लौट रहा है मिट्टी के चूल्हे का दौर, फ्लॉप हुई उज्ज्वला योजना

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरुआत 1 मई 2016 को की गई थी जिसका मकसद जीवाश्म ईंधन की जगह एलपीजी गैस को बढ़ावा देना, महिला सशक्तीकरण के साथ ही उनके स्वास्थ्य की सुरक्षा करना आदि भी रहा है, लेकिन आज यह योजना महंगी गैस के चलते फ्लॉप होती जा रही है। बिहार के मुज़फ्फ़रपुर जिले के साहेबगंज प्रखंड के कई गाँवों में महिलाओं ने कहा कि महंगी गैस के चलते वे चूल्हे पर खाना बनाने लगी हैं।

राजस्थान : स्वरोजगार से बदल रही है महिलाओं की आर्थिक स्थिति

गैर सरकारी संस्था उरमूल द्वारा उपलब्ध कराये गये काम की बदौलत राजस्थान के लूणकरणसर इलाके की ग्रामीण महिलाएं न सिर्फ आत्मनिर्भर बन रही हैं बल्कि परिवार की आर्थिक तंगी को भी दूर कर रही हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय में मनुवादियों की NFS लीला रुकेगी कब?

प्राचीन समय से मनुवादियों ने समाज के दलित-वंचित समुदाय को शिक्षा लेने से वंचित रखने के लिए मनुस्मृति का सहारा ले उन्हें भरमाया। जब-जब वे पढ़ना चाहे, तब-तब पढ़ने से रोकने के लिए उन्हें अपमानित कर अपना पुश्तैनी काम करने के लिए कहा। देश में संविधान -लागू होने के बाद सभी को समान अधिकार प्राप्त हुआ, उसके बाद, जब ओबीसी,एससी और एसटी वर्ग के लोग शिक्षित हो बेहतर योग्यता से सामने आने लगे तब उनकी बेचैनी सामने आने लगी। इस वजह से उन्हें दिये गए आरक्षण को किसी भी तरह से रोकने के लिए शातिर तरीके अपना रहे हैं। अभी लगातार अनेक विश्वविद्यालयों से आरक्षित पदों के उम्मीदवारों को NFS करने की सूचना आ रही है। सवाल यह उठता है कि क्या सभी योग्यता सवर्णों में और सारी अयोग्यता ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग में है।

वाराणसी : बेसिक शिक्षा विभाग के अध्यापकों ने डिजिटल उपस्थिति के साथ अन्य मांगों के लिए किया विरोध प्रदर्शन

अध्यापकों की नियुक्ति पढ़ाने के लिए की जाती है लेकिन सरकार द्वारा सौंपे गए अनेक कामों के बाद बच्चों पर पर्याप्त ध्यान ही नहीं दे पाते। यह बात शिक्षक ने बताई। इधर सरकार द्वारा बेसिक शिक्षा विभाग के अध्यापक पर डिजिटल उपस्थिति दर्ज करने का नियम लागू किया गया है। लेकिन अध्यापक लगातार विरोध कर रहे हैं। अध्यापक इसके अलावा भी अपनी मांगों को लेकर ज्ञापन सौंप चुके हैं। उनका कहना है जब तक सरकार हमसे बात नहीं करती यह विरोध-प्रदर्शन बंद नहीं होगा.

ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की कमी के चलते बच्चों की शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है

सरकार शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए गाँव-गाँव में प्राथमिक विद्यालय खोलने पर ज़ोर दे रही है। लेकिन केवल स्कूल खोल लेने से शिक्षा का स्तर नहीं बढ़ सकता बल्कि शिक्षकों की पर्याप्त नियुक्ति भी जरूरी है। राजस्थान में कक्षा एक से आठ तक के 25 हजार 369 पद खाली पड़े हैं। इनके खाली रहने से पढ़ाई का सबसे ज्यादा असर ग्रामीण बच्चों पर पड़ता है। न उनकी नींव मजबूत हो पाती है न सही से अक्षर ज्ञान ही हो पाता है। इस वजह से स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी होती है।

उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग : डिजिटल हाजिरी के विरोध में काली पट्टी बांधकर शिक्षकों ने काम किया

डिजिटल उपस्थिति के पहले ही दिन आजमगढ़ के एक गाँव में भारी बारिश में स्कूल जाते हुए अध्यापिकाओं का रिक्शा पलट गया। डिजिटल उपस्थिति का फरमान जारी हो गया और 8 जुलाई से लागू कर दिया गया है। लेकिन अध्यापक इस बात से खासे परेशान है कि जिस गाँव में डिजिटल उपस्थिति की सुविधा नहीं है वहाँ क्या किया जाएगा?

नीट पेपरलीक व्यावसायिक शिक्षा का सबसे बड़ा घोटाला है

4 जून को जब से नीट परीक्षा के नतीजे आए हैं, तब से नीट परीक्षा को लेकर चल रहे विवाद और आंदोलन खत्म होने का नाम नहीं ले रहे। स्वाभाविक है क्योंकि यह मेहनती और गरीब छात्रों के भविष्य का सवाल है। सुप्रीम कोर्ट ने दुबारा परीक्षा लेने से इंकार कर दिया, यह एक तरह से उन लोगों के पक्ष में खड़े होने की बात है, जिन्होंने पेपर खरीदने के लिए लाखों रुपए खर्च किए और उन अभ्यथियों का चयन हो गया है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट, सरकार और परीक्षा लेने वाली एजेंसी एनटीए पर सवाल उठना ही चाहिए।

मिर्ज़ापुर : कहने को मंडल पर स्वास्थ्य का चरमराता ढाँचा ढोने को विवश

किसी मंडलीय अस्पताल उर्फ मेडिकल कॉलेज के पर्ची काउंटर पर साँड़ आराम फरमा रहा हो और अस्पताल के ठीक पीछे मेडिकल वेस्ट का डम्पिंग ग्राउंड हो तो आप आसानी से समझ सकते हैं कि यह अस्पताल शहर और जिले का स्वास्थ्य कितने बेहतरीन ढंग से दुरुस्त रखता होगा। इसके लिए कहीं दूर जाने की आवश्यकता भी नहीं है। बस विंध्याचल मंडल के मुख्यालय मिर्ज़ापुर आइये और यह नज़ारा देख लीजिये।

पूर्वांचल का स्वास्थ्य : पाँच करोड़ की आबादी का स्वास्थ्य रामभरोसे

सरकार जनता के स्वास्थ्य से खेल करने में तनिक भी पीछे नहीं रहती है। आबादी और क्षेत्रफल के हिसाब से उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है लेकिन स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के मामले में अभी भी अन्य राज्यों की तुलना में पीछे है। उस पर पूर्वाञ्चल और भी पिछड़ा है, जहां एम्स के नाम पर गोरखपुर है और बनारस का सर सुंदरलाल हॉस्पिटल कहने को तो बहुत बड़ा हॉस्पिटल है लेकिन इसका स्टेटस एक रेफरल अस्पताल से अधिक नहीं। ऐसे में लोगों को प्राइवेट हॉस्पिटल की तरफ रुख करना मजबूरी हो जाती है। उत्तर प्रदेश में 19962 मरीजों पर एक डॉक्टर है।

वाराणसी : डॉ ओमशंकर के आमरण अनशन के कारण विभागाध्यक्ष पद से हटाया गया

सर सुंदरलाल अस्पताल के हृदय रोग विभाग के विभागाध्यक्ष को प्रशासन ने उनके पद से हटा दिया। जबकि उनके कार्यकाल का 2 माह शेष रह गया था। डॉ ओमशंकर अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी डॉ के के गुप्ता द्वारा किए गए भ्रष्टाचार के कारण उन्हें पद से हटाने और हृदय रोग विभाग में बिस्तरों के संख्या (जो उपलब्ध है) मरीजों के लिए खोलने के लिए आमरण अनशन कर रहे हैं।

बिहार : गया जिले का उचला गाँव स्वच्छ और खुले में शौच मुक्त की ओर अग्रसर

स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत हुई थी तो किसी ने भी नहीं सोचा था कि इसका इतना व्यापक प्रभाव देखने को मिलेगा। उचला गाँव के हर घर में लगभग शौचालय बन गया है। गाँव की सफाई के लिए सुपरवाइज़र और एक सफाई कर्मचारी की नियुक्ति भी की गई है। स्वच्छ भारत मुहिम के चलते ही उचला गाँव आज स्वच्छ और खुले में शौच मुक्त की ओर अग्रसर है।

कुपोषण से निज़ात पाये बिना विकसित भारत का दावा कैसे किया जा सकता है

प्रश्न उठता है कि क्या वास्तव में भारत के बच्चे, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे, कुपोषण मुक्त और स्वस्थ हैं? हालांकि सरकारों की ओर जारी आंकड़ों में कुपोषण के विरुद्ध जबरदस्त जंग दर्शाई जातीहै, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि अभी भी हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में गर्भवती महिलाएं और 5 पांच तक की उम्र के अधिकतर बच्चे कुपोषण मुक्त नहीं हुए हैं।

रस्सी कूद : दुनिया में जिसकी गाथाएँ हैं वह भारत में टूर्नामेंट में भी नहीं शामिल है

रस्सी कूद एक लोकप्रिय और सबसे किफ़ायती खेल है जिसके लिए बहुत तामझाम की आवश्यकता नहीं पड़ती। खेल के इतिहास में रस्सी कूद में कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन प्राचीनकाल से ही अनेक देशों में मौजूद यह खेल आज वैश्विक रिकॉर्ड वाला खेल बन चुका है। खेल के रूप में इसे बचाने के लिए रस्सी कूद विश्व संगठन FISAC-IRSF की स्थापना की गई जिसका उद्देश्य दुनिया भर में रस्सी कूदने के खेल को विकसित करना और लोकप्रिय बनाना था। लेकिन हमारे देश में यह खेल मर-मर कर जी रहा है। हाल के दिनों में हमने गौर किया कि मानव जीवन की दैनिक खेल गतिविधियों से कई खेल फिसड्डी होते गए हैं। इनमें रस्सी कूद भी शामिल है। अब इसे स्कूली टूर्नामेंट में भी शामिल नहीं किया जा रहा। हालांकि रोप जंप फेडरेशन ऑफ इंडिया इसके विकास के लिए लगा है। बेशक आज देश के पास इसके संस्थागत विकास के सारे संसाधन मौजूद हैं लेकिन मजबूत इच्छाशक्ति के अभाव में सारी चीजें महज़ औपचारिकता बनकर रह जा रही है।

निर्देशक प्रसन्ना की तीन-दिवसीय नाट्य कार्यशाला : श्रम के साथ अभिनय सीखा प्रतिभागियों ने

नाटककार प्रसन्ना एक सहज निर्देशक हैं। उन्होंने नाटक के कथ्यों की जटिलता को बहुत ही आसानी से प्रस्तुत करने के गुर कार्यशाला में उपस्थित अभिनेताओं को बताये। कोई भी व्यक्ति एक्शन-रिएक्शन कर लेने या संवाद बोल लेने से अभिनेता नहीं बन जाता बल्कि को चरित्र को जीते हुए उसमें घुसना जरूरी होता है इसका कोई फार्मूला नहीं होता बल्कि उस तक पहुँचने के लिए अभिनय के साथ मंच पर प्रस्तुति के दौरान ध्यान रखी जानी वाली बारीक बातों को प्रसन्ना ने साझा किया।

इंदौर में याद-ए-हबीब : ‘जिन लाहौर नईं वेख्या’ ने मनुष्यता की ऊँचाई दिखायी

हबीब तनवीर को उनके ही द्वारा मंचित और निर्देशित नाटक के अंश और नाटकों में गाये गीतों के माध्यम से 10 जून 2024 को इंदौर के अभिनव कला समाज सभागृह में "याद-ए-हबीब" कार्यक्रम में याद किया। श्रोताओं और दर्शकों की संख्या सभागार की क्षमता पार कर गई थी और नीचे बैठे और खड़े हुए लोगों ने भी अपनी जगह छोड़ना गवारा नहीं किया जब तक कार्यक्रम चलता रहा।

सिनेमा ने युद्ध को मनोरंजन का माध्यम बनाया तो महिलाओं की दुर्दशा और जीवटता को भी दिखाया

सिनेमा बनाने वाले सिनेमा के विषय समाज से उठाते हैं भले ही उसका ट्रीटमेंट वे कैसे भी करें। बॉलीवुड हो या हॉलीवुड इधर युद्ध आधारित सिनेमा का चलन बढ़ा है। यह जरूर है कि विदेशी फिल्मों में भारत जैसे देशभक्ति का बखान नहीं दिखाया जाता। इधर महिला सैनिकों के जुनून पर भी अनेक फिल्में बनी। पढ़िये डॉ राकेश कबीर का यह आलेख

सिनेमा में लड़ती हुई औरत केवल देह नहीं रही है

दुनिया के हर हिस्से में पुरुषों द्वारा स्त्रियॉं का शोषण किया जाता है, उनका उत्पीड़न किया जाता है। वे केवल स्त्री को उपभोग की एक देह के अलावा कुछ नहीं समझते। पितृसत्ता समाज में अधिकतर पुरुष दंभ का शिकार होते हुए संवेदनहीन होते हैं। समाज की यही सच्चाई दुनिया भर के सिनेमा में सामने आई है, जिसमें स्त्रियॉं उनसे मुक़ाबला करते हुए जीत हासिल की हैं।

पिता, पुत्र और हिंदुत्व के एजेंडे की ओर ठेलमठेल

आरएसएस के एक शीर्ष पदाधिकारी इंद्रेश कुमार ने भी कहा कि अहंकार के कारण भाजपा की सीटों में गिरावट आई है। आरएसएस ने तुरंत इस बयान से पल्ला झाड़ लिया और इंद्रेश कुमार ने इसे वापस लेते हुए प्रमाणित किया कि केवल मोदी के नेतृत्व में ही भारत प्रगति कर सकता है। कई टिप्पणीकारों ने डॉ. भागवत के बयान को आरएसएस और भाजपा के बीच दरार के संकेत के रूप में लिया है।

मोदी जी का ऐसा सोचना गलत है कि संसद भवन से गांधी, बिरसा मुंडा और अंबेडकर की मूर्तियां हटाकर उन्हें मिटाया जा सकता है 

पूरी दुनिया में अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी और संविधान निर्माता बाबा साहब अंबेडकर के विचारों को स्थान दिया जा रहा है। उनके सिद्धांतों को पढ़ाया जा रहा है, उनकी मूर्तियाँ स्थापित की जा रही हैं। ऐसे में देश के सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान संसद भवन से बिना किसी को सूचना दिये या सहमति लिए, इन महापुरुषों की प्रतिमा को हटाकर पुराने संसद भवन के पीछे उपेक्षित स्थान पर स्थानांतरित कर देना उनका अपमान है। ऐसे में मोदी का राजघाट पर फूल चढ़ाना और अंबेडकर जयंती पर बाबा साहब की प्रतिमा को माला पहनाना एक ढोंग के अलावा कुछ नहीं है। 

दिल्ली के उप राज्यपाल वी के सक्सेना की संस्था एनसीसीएल ने गुजरात में मानवाधिकार के लिए क्या किया?

दिल्ली के वर्तमान राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना का गुजरात में नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज (एनसीसीएल) नाम से एक एनजीओ था। नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में इस एनजीओ ने मानवाधिकार के खिलाफ जाकर सरकार के पक्ष में काम किया और शायद इसी का इनाम है कि उन्हें दिल्ली का उप राज्यपाल बना दिया गया। अरुंधति रॉय और मेधा पाटकर के खिलाफ पुराने मामले निकालकर केस करने को लेकर सामाजिक चिंतक डॉ सुरेश खैरनार ने कुछ सवाल उठाते हुए एक खुला पत्र लिखा

एक वर्ष बाद मणिपुर पर दिए बयान से संघ और संघ प्रमुख मोहन भागवत का पाखंड सामने आया

18वीं लोकसभा में 400 पार का दावा करने वाली भाजपा 240 सीट पर ही सिमट गई। मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने लेकिन 32 सीटें गठबंधन से उधार लेकर। ऐसे में भाजपा के मातृ दल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को एक वर्ष बाद मणिपुर हिंसा की याद आई और एक कार्यक्रम में बयान दिया 'मणिपुर में पिछले एक वर्ष से अधिक समय से  शांति की राह देख रहा है। इस पर प्राथमिकता से विचार करना चाहिए।' इस बयान से संघ, संघ प्रमुख और संघ से जुड़े सभी संगठनों की मानसिकता एक बार फिर सामने आई।

सामाजिक न्याय की केंद्रीयता ही कांग्रेस की ताकत बढ़ा सकती है

लोकसभा चुनाव 2024 में 400 के पार का नारा देने वाली भाजपा बहुमत भी नहीं ला सकी। इसके विपरीत कांग्रेस ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा कर जनता से सीधे जुड़ते हुए सामाजिक न्याय व समान भागीदारी पर सवाल खड़ा किया। कांग्रेस के घोषणा पत्र में वे सभी बिन्दु शामिल किए गए, जो पिछ्ले दस वर्षों में जनता की जरूरत थे। सवाल यह उठता है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस किस तरह अपना वर्चस्व हासिल कर पाएगी।