Saturday, January 25, 2025
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राजनीति

नेताजी सुभाष चंद्र बोस से तत्कालीन आरएसएस प्रमुख बीमारी का बहाना बनाकर क्यों नहीं मिले

आरएसएस आज़ादी की लड़ाई में हिस्से लेने के चाहे जितने दावे प्रस्तुत करे लेकिन उसका सच व झूठ सबके सामने है। देश के महान नेताओं की कमियों को सामने रख उनकी छवि बिगाड़ने का काम आरएसएस लगातार कर रहा है जबकि नेताजी सुभाषचंद्र बोस से आरएसएस के संस्थापक और प्रथम संघ प्रमुख डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने स्वस्थ्य रहते हुए बीमारी का बहाना बना उनसे मिलने से इनकार किया। मतलब आरएसएस की सत्ता और कार्यशैली हमेशा से ही झूठ पर चल रही है। आज नेताजी की 128वीं जयंती पर आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार और नेताजी की मुलाक़ात को लेकर हुई घटना का ज़िक्र इस लेख में किया गया है।

भारत के धार्मिक विभाजन के खिलाफ थे खान अब्दुल गफ्फार खान

ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान सीमाप्रांत और बलूचिस्तान के एक महान राजनेता थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और अपने कार्य और निष्ठा के कारण बादशाह खान के नाम से पुकारे जाने लगे। वे भारतीय उपमहाद्वीप में अंग्रेज शासन के विरुद्ध अहिंसा के प्रयोग के लिए जाने जाते हैं। वह 1940 के लाहौर प्रस्ताव में पाकिस्तान के निर्माण का कड़ा विरोध करने वाले पहले लोगों में से एक थे, और उन्हें इस विरोध के परिणाम 15 अगस्त 1947 के बाद भी अपनी मृत्यु तक भुगतने पड़े। भारत में रहते हुए पाकिस्तान के खिलाफ बोलना और लिखना और पाकिस्तान में रहते हुए पाकिस्तान के खिलाफ बोलना और लिखना, दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। उनकी 36वीं पुण्यतिथि पर डॉ सुरेश खैरनार की टिप्पणी।

ईवीएम : भारत का चुनाव आयोग संदेह पैदा कर अपनी विश्वसनीयता खो रहा है

वर्तमान केंद्र सरकार ने शनिवार, 21 दिसंबर को, जबकि हरियाणा विधानसभा चुनाव की याचिका की सुनवाई हरियाणा और पंजाब उच्च न्यायालय, चंडीगढ़ में चल रही है। उसे देखते हुए चुनाव आचार संहिता के नियमों को आनन-फानन में बदलने की कार्रवाई को देखने के बाद, जिससे आम लोग चुनाव के ई-दस्तावेजों को सीधे नहीं देख पाएंगे, इलेक्ट्रॉनिक चुनाव प्रक्रिया के बारे में मेरा संदेह और भी बढ़ गया है

डॉ आंबेडकर के प्रति हिकारत के पीछे संघ-भाजपा की राजनीति क्या है

एक तरफ डॉ अंबेडकर ने जहां संविधान में समानता, बंधुत्व, स्वतंत्रता को शामिल किया, वहीं आरएसएस ने देश में हिंदुत्व को बढ़ावा देते हुए फासीवाद और ब्रह्मणवाद मार्का पर काम कर रहा है, जिसके बाद अम्बेडकरवादी विचारधारा पर लगातार हमला हो रहा है। 

आर एस एस ने संविधान और डॉ अंबेडकर को कभी महत्व नहीं दिया

आरएसएस का संविधान 'मनुस्मृति' है। जब देश में संविधान लागू हुआ था, तभी आरएसएस के प्रमुख ने संविधान का विरोध किया था। ऐसे में कैसे उम्मीद की जा सकती है कि सत्ता में बैठे लोग, जो वास्तव में आरएसएस के धुर एजेंट हैं, वे संविधान और संविधान निर्माता डॉ अंबेडकर को वैसा सम्मान देंगे, जिसके वे हकदार हैं। स्थिति तो यहाँ तक है कि संविधान और डॉ अंबेडकर को मानने वालों का भी घोर विरोध करते हैं और आपत्तिजनक बयान देने मे भी पीछे नहीं रहते हैं। यही कारण है कि समाज के दलित, पिछड़े और आदिवासी जिन्हें संविधान के अनुसार बराबरी का दर्जा व अधिकार मिला हुआ है, उन्हें भी राजनैतिक, सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक मजबूती पाते देख परेशान हो, उनका शोषण करने में पीछे नहीं रहते। देश की संसद में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा दिया गया आपत्तिजनक बयान इस बात का सबूत है।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस से तत्कालीन आरएसएस प्रमुख बीमारी का बहाना बनाकर क्यों नहीं मिले

आरएसएस आज़ादी की लड़ाई में हिस्से लेने के चाहे जितने दावे प्रस्तुत करे लेकिन उसका सच व झूठ सबके सामने है। देश के महान नेताओं की कमियों को सामने रख उनकी छवि बिगाड़ने का काम आरएसएस लगातार कर रहा है जबकि नेताजी सुभाषचंद्र बोस से आरएसएस के संस्थापक और प्रथम संघ प्रमुख डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने स्वस्थ्य रहते हुए बीमारी का बहाना बना उनसे मिलने से इनकार किया। मतलब आरएसएस की सत्ता और कार्यशैली हमेशा से ही झूठ पर चल रही है। आज नेताजी की 128वीं जयंती पर आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार और नेताजी की मुलाक़ात को लेकर हुई घटना का ज़िक्र इस लेख में किया गया है।

भारत के धार्मिक विभाजन के खिलाफ थे खान अब्दुल गफ्फार खान

ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान सीमाप्रांत और बलूचिस्तान के एक महान राजनेता थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और अपने कार्य और निष्ठा के कारण बादशाह खान के नाम से पुकारे जाने लगे। वे भारतीय उपमहाद्वीप में अंग्रेज शासन के विरुद्ध अहिंसा के प्रयोग के लिए जाने जाते हैं। वह 1940 के लाहौर प्रस्ताव में पाकिस्तान के निर्माण का कड़ा विरोध करने वाले पहले लोगों में से एक थे, और उन्हें इस विरोध के परिणाम 15 अगस्त 1947 के बाद भी अपनी मृत्यु तक भुगतने पड़े। भारत में रहते हुए पाकिस्तान के खिलाफ बोलना और लिखना और पाकिस्तान में रहते हुए पाकिस्तान के खिलाफ बोलना और लिखना, दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। उनकी 36वीं पुण्यतिथि पर डॉ सुरेश खैरनार की टिप्पणी।

ईवीएम : भारत का चुनाव आयोग संदेह पैदा कर अपनी विश्वसनीयता खो रहा है

वर्तमान केंद्र सरकार ने शनिवार, 21 दिसंबर को, जबकि हरियाणा विधानसभा चुनाव की याचिका की सुनवाई हरियाणा और पंजाब उच्च न्यायालय, चंडीगढ़ में चल रही है। उसे देखते हुए चुनाव आचार संहिता के नियमों को आनन-फानन में बदलने की कार्रवाई को देखने के बाद, जिससे आम लोग चुनाव के ई-दस्तावेजों को सीधे नहीं देख पाएंगे, इलेक्ट्रॉनिक चुनाव प्रक्रिया के बारे में मेरा संदेह और भी बढ़ गया है

डॉ आंबेडकर के प्रति हिकारत के पीछे संघ-भाजपा की राजनीति क्या है

एक तरफ डॉ अंबेडकर ने जहां संविधान में समानता, बंधुत्व, स्वतंत्रता को शामिल किया, वहीं आरएसएस ने देश में हिंदुत्व को बढ़ावा देते हुए फासीवाद और ब्रह्मणवाद मार्का पर काम कर रहा है, जिसके बाद अम्बेडकरवादी विचारधारा पर लगातार हमला हो रहा है। 

आर एस एस ने संविधान और डॉ अंबेडकर को कभी महत्व नहीं दिया

आरएसएस का संविधान 'मनुस्मृति' है। जब देश में संविधान लागू हुआ था, तभी आरएसएस के प्रमुख ने संविधान का विरोध किया था। ऐसे में कैसे उम्मीद की जा सकती है कि सत्ता में बैठे लोग, जो वास्तव में आरएसएस के धुर एजेंट हैं, वे संविधान और संविधान निर्माता डॉ अंबेडकर को वैसा सम्मान देंगे, जिसके वे हकदार हैं। स्थिति तो यहाँ तक है कि संविधान और डॉ अंबेडकर को मानने वालों का भी घोर विरोध करते हैं और आपत्तिजनक बयान देने मे भी पीछे नहीं रहते हैं। यही कारण है कि समाज के दलित, पिछड़े और आदिवासी जिन्हें संविधान के अनुसार बराबरी का दर्जा व अधिकार मिला हुआ है, उन्हें भी राजनैतिक, सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक मजबूती पाते देख परेशान हो, उनका शोषण करने में पीछे नहीं रहते। देश की संसद में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा दिया गया आपत्तिजनक बयान इस बात का सबूत है।

मानवाधिकार दिवस : सौ वर्षों से मानवाधिकार के उल्लंघन का रिकॉर्ड बनाता आरएसएस

वर्ष 2014 के बाद मानवाधिकार पर लगातार हमले हो रहे हैं। आरएसएस लगातार हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की कवायद में मुस्लिमों पर खुले आम हमला कर रहा है। बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने के बाद संघ ने अन्य मस्जिदों का सर्वे कर मंदिर होने का दावा कर रही है। मुद्दों पर विचार न कर धार्मिक हमलों में मुस्लिमों को आरोपी बनाकर जेल में डाला जा रहा है। ऐसी घटनाएं एक या दो नहीं बल्कि अनेक हैं। मानवाधिकार दिवस पर संघ की कारास्तानी की पोल खोलता डॉ सुरेश खैरनार का यह लेख