Monday, May 13, 2024
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मिर्ज़ापुर : शायर की क़ब्र पर उगी घास और समय की मांग से बाहर होती जा रही मिर्ज़ापुरी कजरी

उत्तर प्रदेश के लोकगायन में बहुत चर्चित विधा है कजरी। कजरी की बात होने पर मिर्ज़ापुरी कजरी और लोककवि बप्फ़त का नाम आना सहज है। दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। आज भले ही कजरी गायन की रौनक कम हो रही है लेकिन कजरी लेखक बफ़्फ़्त की लिखी कजरी आज भी गाई और सुनी जाती हैं। बेशक उनकी कब्र वीरान पड़ी है, उन्हें याद करने वाले कम हो गए हों लेकिन जब-जब कजरी की बात होगी बप्फ़त की याद जरूर आएगी।

बनारस के मनोज मौर्य की बनाई जर्मन फिल्म ‘बर्लिन लीफटाफ’ फिल्म समारोह की बेस्ट फीचर फिल्म बनी

मनोज मौर्य एक युवा फ़िल्मकार हैं। गाजीपुर में जन्मे और बनारस में पले-बढ़े मनोज अपने को बनारसी कहने में फख्र महसूस करते हैं। लंबे समय से मुंबई में रह रहे मनोज की इस वर्ष दो फीचर फिल्में , हिन्दी में 'आइसकेक' और जर्मन में 'द कंसर्ट मास्टर' रिलीज हो रही हैं। 'द कंसर्ट मास्टर' बर्लिन सहित अनेक फिल्म समारोहों में दिखाई गई और तगड़ी प्रतियोगिता करते हुये बेस्ट फीचर फिल्म नामित हुई।

जनवादी लेखक संघ की ओर से सुप्रसिद्ध आलोचक चन्द्रबली सिंह की जन्म-शताब्दी मनाई गई

चंद्रबली सिंह का कहना था कि कविता मानव-मुक्ति के लिए संघर्ष करना सिखाती है। समाज की तरह साहित्य में भी सुंदर और असुंदर की लड़ाई सदा से रही है। कभी-कभी ऐसे दौर भी आते हैं,जब असुंदर की जीत होती है, लेकिन सुंदर का पक्षधर होने के कारण साहित्य और कला जीवित रहते हैं।

राजस्थान के अजमेर जिले में अपनी विरासत सहेजने की जद्दोजहद करता कालबेलिया समुदाय

आधुनिकता की चकाचौंध और वैज्ञानिक चिकित्सा से प्रभावित होकर अब कालबेलिया समुदाय की नई पीढ़ी अपनी इस विरासत से दूर भागने लगी है।

फिल्म आत्मपॅम्फ्लेट : मराठी की फॉरेस्ट गंप, जो देश के बहुजन सामाजिक-राजनैतिक मुद्दों पर सहजता से प्रहार करती है

फिल्म आत्मपॅम्फ्लेट,ब्लैक कॉमेडी के माध्यम से समाज में चल रही जाति, धर्म और अन्य गंभीर सामाजिक मसलों को बहुत ही संतुलित तरीके से पेश करती है। निर्माता-निर्देशक के लिए आज के समय में ऐसी प्रस्तुति वाकई  साहस का काम है।  फिल्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह दो अलग विषयों प्रेम और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को बहुत ही खूबसूरती से एक साथ लेकर चलती है।

मिर्ज़ापुर : शायर की क़ब्र पर उगी घास और समय की मांग से बाहर होती जा रही मिर्ज़ापुरी कजरी

उत्तर प्रदेश के लोकगायन में बहुत चर्चित विधा है कजरी। कजरी की बात होने पर मिर्ज़ापुरी कजरी और लोककवि बप्फ़त का नाम आना सहज है। दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। आज भले ही कजरी गायन की रौनक कम हो रही है लेकिन कजरी लेखक बफ़्फ़्त की लिखी कजरी आज भी गाई और सुनी जाती हैं। बेशक उनकी कब्र वीरान पड़ी है, उन्हें याद करने वाले कम हो गए हों लेकिन जब-जब कजरी की बात होगी बप्फ़त की याद जरूर आएगी।

बनारस के मनोज मौर्य की बनाई जर्मन फिल्म ‘बर्लिन लीफटाफ’ फिल्म समारोह की बेस्ट फीचर फिल्म बनी

मनोज मौर्य एक युवा फ़िल्मकार हैं। गाजीपुर में जन्मे और बनारस में पले-बढ़े मनोज अपने को बनारसी कहने में फख्र महसूस करते हैं। लंबे समय से मुंबई में रह रहे मनोज की इस वर्ष दो फीचर फिल्में , हिन्दी में 'आइसकेक' और जर्मन में 'द कंसर्ट मास्टर' रिलीज हो रही हैं। 'द कंसर्ट मास्टर' बर्लिन सहित अनेक फिल्म समारोहों में दिखाई गई और तगड़ी प्रतियोगिता करते हुये बेस्ट फीचर फिल्म नामित हुई।

जनवादी लेखक संघ की ओर से सुप्रसिद्ध आलोचक चन्द्रबली सिंह की जन्म-शताब्दी मनाई गई

चंद्रबली सिंह का कहना था कि कविता मानव-मुक्ति के लिए संघर्ष करना सिखाती है। समाज की तरह साहित्य में भी सुंदर और असुंदर की लड़ाई सदा से रही है। कभी-कभी ऐसे दौर भी आते हैं,जब असुंदर की जीत होती है, लेकिन सुंदर का पक्षधर होने के कारण साहित्य और कला जीवित रहते हैं।

राजस्थान के अजमेर जिले में अपनी विरासत सहेजने की जद्दोजहद करता कालबेलिया समुदाय

आधुनिकता की चकाचौंध और वैज्ञानिक चिकित्सा से प्रभावित होकर अब कालबेलिया समुदाय की नई पीढ़ी अपनी इस विरासत से दूर भागने लगी है।

फिल्म आत्मपॅम्फ्लेट : मराठी की फॉरेस्ट गंप, जो देश के बहुजन सामाजिक-राजनैतिक मुद्दों पर सहजता से प्रहार करती है

फिल्म आत्मपॅम्फ्लेट,ब्लैक कॉमेडी के माध्यम से समाज में चल रही जाति, धर्म और अन्य गंभीर सामाजिक मसलों को बहुत ही संतुलित तरीके से पेश करती है। निर्माता-निर्देशक के लिए आज के समय में ऐसी प्रस्तुति वाकई  साहस का काम है।  फिल्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह दो अलग विषयों प्रेम और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को बहुत ही खूबसूरती से एक साथ लेकर चलती है।

नव दलित लेखक संघ की ‘नव सृजन नव उल्लास’ मासिक गोष्ठी हुई संपन्न

कार्यक्रम में काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया था। काव्य गोष्ठी की शुरुआत राधेश्याम कांसोटिया के गीतों से होती है। राधेश्याम कांसोटिया ने गीतों के माध्यम से लोगों का मन मोह लिया