Saturday, July 27, 2024
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दुकानों पर नाम प्रकरण : निशाने पर पसमांदा मुसलमान, सुप्रीम कोर्ट ने लोकतन्त्र की हिमायत की

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की भाजपा सरकारों ने जिस तरह से काँवड़ यात्रा की राह में पड़ने वाली दुकानों, ठेलों और होटलों पर मालिक के नाम की तख्ती अथवा फ़्लेक्स लगाने का फरमान जारी किया वह निश्चित रूप मेहनतकश पसमांदा मुसलमानों को निशाने पर लेने का प्रयास था। यह 2024 के चुनाव में घुटनों के बल आई भाजपा की हताशा को दर्शाता है। लेकिन इससे भी बढ़कर विकराल होती बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों को उलझाने का षड्यंत्र भी है। भाजपा को लगता है कि इस तरह के नैरेटिव बनाकर वह न सिर्फ हिंदू दूकानदारों बल्कि रोजगार की उम्मीद में उम्रदराज़ हो रहे युवाओं को भी खुश कर देगी। यह एक खतरनाक कदम था जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाम लगाया।

बजट 2024 : बेरोजगारी और लघु उद्योगों की बरबादी के साये में चल रही मोदी की तीसरी सरकार के बजट में मेहनतकशों के हिस्से...

वर्ष 2024 का आम बजट पेश हो गया है। इस बजट में सरकार ने 11.11 लाख पूंजी निवेश का प्रावधान रखा है लेकिन इस निवेश से कितने रोजगार पैदा होंगे देखने वाली बात होगी क्योंकि कोरोना में हुए लॉकडाउन के बाद लगभग सभी उद्यमों पर बहुत खराब प्रभाव पड़ा था और बड़े पैमाने पर बेरोजगारी पैदा हुई थी। उसके बाद बेरोजगारी की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ बल्कि दिनों-दिन खराब ही होता रहा। कल पेश हुए बजट में इसका असर साफ दिखाई दिया।

मानसिक विचलन और असुरक्षा की ज़मीन पर फूलता-फलता बाबावाद

अनुयायियों का असुरक्षा वाला पहलू उनके मनोविज्ञान को समझने की कुंजी है। असुरक्षा जितनी अधिक होगी, बाबा के प्रति समर्पण उतना ही अधिक होगा, अनुयायी सामान्य ज्ञान या तर्कसंगत सोच को पूरी तरह से दरकिनार कर देंगे। असुरक्षा के पहलू को तब ठीक से समझा जा सकता है जब हम वैश्विक परिदृश्य को देखें। जिन देशों में आर्थिक और सामाजिक असुरक्षा कम है, वहां धर्मों के सक्रिय अनुयायियों में गिरावट देखी जा रही है।

देश में टूटते समाज और बेरोजगारी का भयावह परिणाम है आत्महत्या की बढ़ती दर

किसी भी आत्महत्या के समाचार मिलने के बाद, कुछ देर आत्महत्या के कारणों के कयास लगाए जाते हैं लेकिन आत्महत्या करने के लिए जिन मानसिक व आर्थिक दबावों का सामना व्यक्ति करता है, उससे उबरने की कोशिश करने का माद्दा उसमें बचा नहीं होता। देश में आत्महत्या के आंकड़ें जिस गति से बढ़ रहे, उसके लिए बढ़ते मानसिक दबाव के साथ अवसाद प्रमुख है। भले यह लोगों को व्यक्तिगत कारण लगे लेकिन इसके लिए सरकार द्वारा लागू नीतियाँ पूर्णत: जिम्मेदार है।

क्या पार्किंग निर्माण के बहाने दीक्षाभूमि को ध्वस्त करने की परियोजना चल रही है

नागपुर स्थित दीक्षाभूमि में विगत कुछ महीनों से दीक्षाभूमि स्मारक समिति के निर्णय के अनुसार एक निर्माण कार्य जारी है जिसके लिये मुख्य स्तूप के नीचे खुदाई करके वाहनों के लिये तीन मंज़िली पार्किंग का निर्माण शुरू हो गया है। इस खुदाई की गहराई और व्यापकता का अंदाज़ इस तथ्य से हो रहा है कि अब तक इतनी मिट्टी खोदी जा चुकी है कि उसका ढेर दीक्षाभूमि के स्तूप की बराबरी कर चुका है। जाहिर है कि यह खुदाई यूँ ही जारी रही तो जल्द ही यह स्तूप और इसके परिसर में डा. भदंत आनंद कौसल्यायन के हाथों से लगाया ऐतिहासिक बोधि वृक्ष नष्ट हो जाएंगे।

दुकानों पर नाम प्रकरण : निशाने पर पसमांदा मुसलमान, सुप्रीम कोर्ट ने लोकतन्त्र की हिमायत की

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की भाजपा सरकारों ने जिस तरह से काँवड़ यात्रा की राह में पड़ने वाली दुकानों, ठेलों और होटलों पर मालिक के नाम की तख्ती अथवा फ़्लेक्स लगाने का फरमान जारी किया वह निश्चित रूप मेहनतकश पसमांदा मुसलमानों को निशाने पर लेने का प्रयास था। यह 2024 के चुनाव में घुटनों के बल आई भाजपा की हताशा को दर्शाता है। लेकिन इससे भी बढ़कर विकराल होती बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों को उलझाने का षड्यंत्र भी है। भाजपा को लगता है कि इस तरह के नैरेटिव बनाकर वह न सिर्फ हिंदू दूकानदारों बल्कि रोजगार की उम्मीद में उम्रदराज़ हो रहे युवाओं को भी खुश कर देगी। यह एक खतरनाक कदम था जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाम लगाया।

बजट 2024 : बेरोजगारी और लघु उद्योगों की बरबादी के साये में चल रही मोदी की तीसरी सरकार के बजट में मेहनतकशों के हिस्से...

वर्ष 2024 का आम बजट पेश हो गया है। इस बजट में सरकार ने 11.11 लाख पूंजी निवेश का प्रावधान रखा है लेकिन इस निवेश से कितने रोजगार पैदा होंगे देखने वाली बात होगी क्योंकि कोरोना में हुए लॉकडाउन के बाद लगभग सभी उद्यमों पर बहुत खराब प्रभाव पड़ा था और बड़े पैमाने पर बेरोजगारी पैदा हुई थी। उसके बाद बेरोजगारी की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ बल्कि दिनों-दिन खराब ही होता रहा। कल पेश हुए बजट में इसका असर साफ दिखाई दिया।

मानसिक विचलन और असुरक्षा की ज़मीन पर फूलता-फलता बाबावाद

अनुयायियों का असुरक्षा वाला पहलू उनके मनोविज्ञान को समझने की कुंजी है। असुरक्षा जितनी अधिक होगी, बाबा के प्रति समर्पण उतना ही अधिक होगा, अनुयायी सामान्य ज्ञान या तर्कसंगत सोच को पूरी तरह से दरकिनार कर देंगे। असुरक्षा के पहलू को तब ठीक से समझा जा सकता है जब हम वैश्विक परिदृश्य को देखें। जिन देशों में आर्थिक और सामाजिक असुरक्षा कम है, वहां धर्मों के सक्रिय अनुयायियों में गिरावट देखी जा रही है।

देश में टूटते समाज और बेरोजगारी का भयावह परिणाम है आत्महत्या की बढ़ती दर

किसी भी आत्महत्या के समाचार मिलने के बाद, कुछ देर आत्महत्या के कारणों के कयास लगाए जाते हैं लेकिन आत्महत्या करने के लिए जिन मानसिक व आर्थिक दबावों का सामना व्यक्ति करता है, उससे उबरने की कोशिश करने का माद्दा उसमें बचा नहीं होता। देश में आत्महत्या के आंकड़ें जिस गति से बढ़ रहे, उसके लिए बढ़ते मानसिक दबाव के साथ अवसाद प्रमुख है। भले यह लोगों को व्यक्तिगत कारण लगे लेकिन इसके लिए सरकार द्वारा लागू नीतियाँ पूर्णत: जिम्मेदार है।

क्या पार्किंग निर्माण के बहाने दीक्षाभूमि को ध्वस्त करने की परियोजना चल रही है

नागपुर स्थित दीक्षाभूमि में विगत कुछ महीनों से दीक्षाभूमि स्मारक समिति के निर्णय के अनुसार एक निर्माण कार्य जारी है जिसके लिये मुख्य स्तूप के नीचे खुदाई करके वाहनों के लिये तीन मंज़िली पार्किंग का निर्माण शुरू हो गया है। इस खुदाई की गहराई और व्यापकता का अंदाज़ इस तथ्य से हो रहा है कि अब तक इतनी मिट्टी खोदी जा चुकी है कि उसका ढेर दीक्षाभूमि के स्तूप की बराबरी कर चुका है। जाहिर है कि यह खुदाई यूँ ही जारी रही तो जल्द ही यह स्तूप और इसके परिसर में डा. भदंत आनंद कौसल्यायन के हाथों से लगाया ऐतिहासिक बोधि वृक्ष नष्ट हो जाएंगे।

पिछड़ों को मुख्यधारा में शामिल करने की चुनौती और पेपरलीक के बढ़ते मामले

4 जून से पहले, चुनाव को लेकर जहां पूरे देश में अलग-अलग पार्टियों की राजनीति चर्चा केंद्र में थी, वहीं 4 जून को नीट के नतीजे आने बाद नीट पपेरलीक होने की चर्चा हो रही है। फिर 18 जून को नेट परीक्षा का पेपरलीक हो गया। परीक्षा एजेंसी ने दुबारा परीक्षा करवाने की बात जरूर कही है लेकिन क्या आने वाले दिनों में पेपरलीक नहीं होगा, इसका भरोसा युवा कैसे करें?