मार्क्स का नारा था - दुनिया के मजदूरों एक हो। इस नारे की सबसे बड़ी पूंजीवादी आलोचना यही है कि हमारे देश में मजदूर जब किसी एक संगठन के नीचे नहीं हैं, तो दुनिया के मजदूर कैसे एक होंगे? लेकिन मार्क्स के इस नारे का अर्थ मजदूरों के किसी एक संगठन के नीचे एकत्रित होने का नहीं है। इस नारे का वास्तविक अर्थ यही है कि दुनिया के स्तर पर साम्राज्यवाद के खिलाफ और अपने-अपने देशों के भीतर सरकारों की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष में मजदूर एकजुट हों। आज भारत अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी की तानाशाही की जकड़ में है, कॉर्पोरेट और हिंदुत्व के गठबंधन ने देश की अस्मिता को दांव पर लगा दिया है, संवैधानिक संस्थाएं चरमरा रही है और एक फासीवादी तानाशाही का खतरा देश के दरवाजे पर खड़ा है।
इस प्रदर्शन का उद्देश्य मात्र इतना है कि ई.वी.एम. के बारे में भारत का निर्वाचन आयोग जो दावे कर रहा है कि ई.वी.एम. में कोई गड़बडी नहीं हो सकती, हम उसको गलत साबित कर रहे हैं।
भाजपा के लिए भाजपा का संकल्प पत्र (घोषणापत्र ) आखिर कब काम आएगा ? क्या मोदी की गारंटी में इतना दम नहीं है कि उसके नाम पर वोट मांगे जा सकें? क्या नरेंद्र मोदी के 10 साल के कामों में इतना दम नहीं है कि उस काम के नाम पर वोट मांगे जा सकें?
किसानों ने कहा कि पीएम ने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, पीएम मोदी ने नदियों को जोड़ने और जल संकट से निजात दिलाने का वादा किया था लेकिन कोई वादा पूरा नहीं हुआ।
मणिपुर के 11 मतदान केन्द्रों पर पुनर्मतदान जारी है। 19 अप्रैल को हुए मतदान के दौरान हिंसा, ईवीएम के साथ तोड़फोड़ की घटनाओं के कारण चुनाव आयोग ने 11 मतदान केन्द्रों पर पुनर्मतदान का निर्णय लिया था।
मार्क्स का नारा था - दुनिया के मजदूरों एक हो। इस नारे की सबसे बड़ी पूंजीवादी आलोचना यही है कि हमारे देश में मजदूर जब किसी एक संगठन के नीचे नहीं हैं, तो दुनिया के मजदूर कैसे एक होंगे? लेकिन मार्क्स के इस नारे का अर्थ मजदूरों के किसी एक संगठन के नीचे एकत्रित होने का नहीं है। इस नारे का वास्तविक अर्थ यही है कि दुनिया के स्तर पर साम्राज्यवाद के खिलाफ और अपने-अपने देशों के भीतर सरकारों की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष में मजदूर एकजुट हों। आज भारत अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी की तानाशाही की जकड़ में है, कॉर्पोरेट और हिंदुत्व के गठबंधन ने देश की अस्मिता को दांव पर लगा दिया है, संवैधानिक संस्थाएं चरमरा रही है और एक फासीवादी तानाशाही का खतरा देश के दरवाजे पर खड़ा है।
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उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा आयोजित 10वीं और 12वीं की वार्षिक परीक्षा में बेटियों ने दिखा दिया कि वे किसी से कम नहीं, जरूरत उन्हें मौका देने की है।