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वाराणसी की जुलाहा स्त्रियाँ : मेहनत का इतना दयनीय मूल्य और कहीं नहीं
अपर्णा -
बनारसी सदी उद्योग में आई गिरावट ने बुनकर परिवारों के सामने कई तरह के संकट खड़े कर दिये हैं। पहले जहां बुनकरों के पास लगातार काम होता था और बुनकर परिवार की महिलाओं को किनारा, दुपट्टा, शीशा लगाने आदि कामों से प्रतिदिन साठ-सत्तर रुपये मजदूरी मिलती थी वहीं अब यह बीते जमाने की बात हो चुकी है। अब वे जो काम करती हैं वह पीस के हिसाब से बहुत सस्ती दर पर करना पड़ता है और उन्हें प्रतिदिन बमुश्किल पाँच-दस रुपए ही मजदूरी मिल पाती है। गरीबी, मंदी और अर्द्धबेरोजगारी झेलते परिवार चलाने के लिए जद्दोजहद करती महिलाओं पर अपर्णा की ग्राउंड रिपोर्ट।
बनारस के उजड़ते बुनकरों के सामने आजीविका का संकट गहराता जा रहा है
अपर्णा -
रेशम की किल्लत और उसको लेकर रोज आनेवाली नई-नई परेशानियों ने धीरे-धीरे बनारसी साड़ी उद्योग की कमर तोड़ दी। फिर शुरू हुई भूखमरी और पलायन की रोंगटे खड़े कर देनेवाली कहानियाँ। बुनकरों की विशाल आबादी छिन्न-भिन्न होने लगी। किसी ने रिक्शे में जीवन की राह तलाशी, कोई मजदूरी करने लगा और कुछ ने आत्महत्या भी कर ली।

