नट समुदाय का नाम आते ही जेहन में रस्सी पर चलने वाले छोटे बच्चों की याद आ जाती है क्योंकि बचपन से हमने नटों का वही तमाशा देखा था। लेकिन बड़े होते-होते अब तमाशा दिखाने वाले वे लोग फिर कभी गली-चौराहे-मोहल्ले में दिखाई नहीं दिए। आज इनकी बात इसलिए याद आ गई क्योंकि हमें बेलवाँ की नट बस्ती में इस समुदाय के बारे में जानने के लिए जाना था, लेकिन वहाँ पहुँचने पर ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया। आम लोगों जैसे ही वे अपनी बस्ती में मगन थे। उनको लेकर प्रचलित मिथक अब अतीत की बात हो चली है।