मीनाक्षी सुन्दरेश्वर फिल्म अपनी पहचान को स्थापित करने के लिए रिश्तों यानी परिवार और दाम्पत्य जीवन को भेंट चढ़ाने और फिर से रिश्तों में संवेदना तलाशने की कहानी है। यह फिल्म अपनी प्रस्तुति के अंदाज़ में बहुत सहज और दिलचस्प है वहीं विषय के निर्वाह और निहितार्थ में एक जटिल अभिव्यक्ति है जो बताती है कि पूंजीवादी उत्पादन व्यवस्था में अपनी पहचान को बेचैन पीढ़ियाँ पुरानी सामाजिक संरचनाओं, धारणाओं, पितृसत्तात्मक मूल्यों को पीछे छोडकर आगे निकल रही हैं।