इस समाज का यक्ष प्रश्न भी महसूस होता है कि पिछले लगभग पचास सालों से वाराणसी शहर के शिवपुर में रहने वाले लोग आखिर कैसे बिना किसी नागरिकता पहचान के पिछले चालीस से ज्यादा सालों से रह रहे हैं? इस समाज के लोगों के पास आधार, राशन कार्ड जैसी कोई पहचान नहीं है, अपनी कोई जमीन नहीं है, इसलिए जमीन का भी कोई कागज नहीं है।
यही झोंपड़ा उसका घर है, पर इसे घर भी भला कैसे कहा जा सकता है? बस पन्नियों का एक पर्दा भर है, इंसानों से भी और आसमान से भी। पन्नियों को ही पर्दे सा घेर लिया गया है और फिलहाल यही इनका घर है।