Thursday, December 12, 2024
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

अमृता कुमारी

लेखिका सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं और पटना में रहती हैं।

बिहार : पितृसत्तात्मक समाज में खेल में हिस्सा लेने के लिए आज भी संघर्ष करना पड़ता है किशोरियों को

'पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे साहब, खेलोगे-कूदोगे बनोगे ख़राब' यह कहावत एक समय बहुत प्रचलित थी क्योंकि तब खेल में आज जैसा करियर नहीं था। आज इसका उलट है, जब लोग खेल में अपना करियर बना रहे हैं। लड़कियों के मामले में आज भी यह कम दिखाई देता है क्योंकि समाज की सोच पितृसत्तात्मक है। लेकिन जिन लड़कियों को खेलने की अनुमति मिलती है, उन्हें खेल सुविधाओं के अभाव का सामना करना पड़ता है। सरकार भले ही लड़कियों को आगे लाने के लिए योजनायें ला रही है लेकिन अभी तक पर्याप्त सफलता नहीं मिल पाई है।