बादल सरोज
सामाजिक न्याय
मुकेश चंद्राकर : एक और युवा पत्रकार भ्रष्ट तंत्र की पोल खोलने पर मारा गया
गोदी मीडिया काल में ग्रामीण पत्रकारिता के मजबूत स्तंभ मुकेश चंद्राकर की हत्या सचमुच कष्टप्रद और चिंताजनक है। वर्ष 2014 के बाद अभिव्यक्ति को लेकर जिस तरह से पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं, वह सभी के सामने है। पत्रकारों पर हमले करवाना और उनकी हत्या करवा देना सत्ताधीशों के लिए बहुत सामान्य बात है। बस्तर जंक्शन के मुकेश चंद्राकर की हत्या निडर पत्रकारिता करने वालों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़ा करती है। इस देश में अब विधायिका, कार्यपालिका न्यायपालिका और चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया पूरी तरह से फासीवाद के चपेट में है और इनका अस्तित्व नाममात्र का रह गया है।