कल्पनाथ यादव
लेखक आजमगढ़ में रहते हैं। अगोरा प्रकाशन वाराणसी से शीघ्र प्रकाशित महात्मा जोतीराव फुले की पुस्तक गुलामगीरी उनके द्वारा संपादित की गई है। यह लेख पुस्तक की भूमिका से लिया गया है।
बहुजन
क्या आपने गुलामगीरी पढ़ा है?
गुलामगीरी में फुले ने ब्रह्मा के चार मुख, आठ भुजाओं और विभिन्न मिथकों को सीधे-सादे तर्क से खारिज करते हुए उसे एक हास्यास्पद परिघटना में बदल दिया है। इसी प्रकार आगे चलकर शेषशायी विष्णु की नाभि से कमलनाल का उद्भव और उसमें ब्रह्मा का चारमुखी आकार और भी विचित्र और मनगढ़न्त कपोल कल्पना है। फुले ने ब्राह्मणवाद द्वारा फैलाए गए गहरे अंधकार को काटते हुए उस मूल धारा की नष्ट हो चुकी अस्मिता को प्रकाश में लाने के लिए ब्राह्मणवादी स्थापनाओं पर जमकर प्रहार किया है और अपनी तर्क-दृष्टि से उन्हीं मिथकों को उल्टा टाँग दिया है जिनके बल पर ब्राह्मण अपने वर्चस्व की स्थापना करता है।