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#काशीनाथ_सिंह
बिश्वनाथ की कविताओं में बनारस
इस शहर में धूल
धीरे-धीरे उड़ती है
धीरे-धीरे चलते हैं लोग
धीरे-धीरे बजते हैं घंटे
शाम धीरे-धीरे होती है।...कभी आरती के आलोक में
इसे अचानक देखो
अद्भुत है इसकी बनावट
यह...
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