Thursday, September 12, 2024
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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मजदूरों की आवाज के लिए बना ट्रेड यूनियन, आज फासीवाद के दौर में खुद संघर्ष कर रहा है

मार्क्स का नारा था - दुनिया के मजदूरों एक हो। इस नारे की सबसे बड़ी पूंजीवादी आलोचना यही है कि हमारे देश में मजदूर जब किसी एक संगठन के नीचे नहीं हैं, तो दुनिया के मजदूर कैसे एक होंगे? लेकिन मार्क्स के इस नारे का अर्थ मजदूरों के किसी एक संगठन के नीचे एकत्रित होने का नहीं है। इस नारे का वास्तविक अर्थ यही है कि दुनिया के स्तर पर साम्राज्यवाद के खिलाफ और अपने-अपने देशों के भीतर सरकारों की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष में मजदूर एकजुट हों। आज भारत अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी की तानाशाही की जकड़ में है, कॉर्पोरेट और हिंदुत्व के गठबंधन ने देश की अस्मिता को दांव पर लगा दिया है, संवैधानिक संस्थाएं चरमरा रही है और एक फासीवादी तानाशाही का खतरा देश के दरवाजे पर खड़ा है।

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