सामाजिक न्याय
कॉर्पोरेट बस्तर के सेप्टिक टैंक में दफ्न ‘लोकतंत्र’
'कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट' के अनुसार, 2005-24 के बीच जिन देशों में सबसे ज्यादा पत्रकार मारे गए हैं, उनमें भारत का स्थान 7वां है। 2014 से अब तक हमारे देश में 28 पत्रकार मारे गए हैं। वर्ष 2025 में हत्यारों का पहला शिकार पत्रकार मुकेश चंद्राकर बना। न्यूयॉर्क स्थित एक संगठन की रिपोर्ट बताती है कि भारत में मई 2019 से अगस्त 2021 तक मोदी राज के 28 महीनों में पत्रकारों पर 256 हमले हुए हैं, याने हर महीने 9 से ज्यादा और हर तीन दिनों में कम से कम एक। पिछले 10 सालों में 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के पैमाने पर भारत 35 अंक नीचे गिर चुका है और आज वैश्विक प्रेस सूचकांक में हमारा स्थान 180 देशों में 142वें से फिसलकर 159वें पर आ गया है।
सामाजिक न्याय
किसान रहे ठनठनगोपाल : सरकारी खरीद और समर्थन मूल्य की कोई गारंटी नहीं
किसानों को लाभकारी मूल्य पर अपनी फसल बेचने की सहूलियत देने के लिए कृषि उपज मंडियों का निर्माण किया गया था, जिसका उद्देश्य था कि घोषित समर्थन मूल्य से कम पर यहां किसानों के फसल की खरीदी नहीं होगी। लेकिन अब देश में ऐसी कोई भी मंडी नहीं है, जहां इस बात की गारंटी हो। अनाज व्यापारियों को मंडियों से ही खरीदने की बाध्यता खत्म कर दिए जाने के बाद अब ये मंडियां बीमार हो गई है। इस तरह किसानों को न तो खरीद की, न समर्थन मूल्य की और न ही वितरण व्यवस्था की कोई गारंटी प्राप्त है। किसान लगातार परेशान हैं और आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाने को मजबूर हैं।
राजनीति
छत्तीसगढ़ में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ घृणा : खतरनाक रूप ले रहे हैं संघ-भाजपा के कारनामे
भाजपा की नीतियों को ही सरकार की नीतियों के रूप में दिमाग में बैठाने की कोशिशों का नतीजा यह है कि पुलिस और प्रशासन के विभिन्न हलकों में भाजपा की नीतियों का अंधानुकरण करने और पार्टी नेताओं तथा हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं की इच्छानुसार काम करने की प्रवृत्ति पैदा हुई है। बिलासपुर की घटना में पुलिस और सरकार का रूख यही बताता है कि संविधान के मूल्यों और उसकी भावना को खत्म करने और अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने के लिए कानून को तोड़ने-मरोड़ने का काम ऊंचे स्तर से ही जोर-शोर से जारी है।
विविध
संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ के अपने ही दावे को भाजपा ने हाईकोर्ट में नकारा
झारखण्ड में भाजपा लगातार बांग्लादेशी घुसपैठिये, लैंड जिहाद, लव जिहाद आदि के नाम पर साम्प्रदायिकता व झूठ फैला रही है। इसका बहुत ही खुला एजेंडा है झारखंड में हिंदुओं, मुस्लिमों और आदिवासियों के बीच सांप्रदायिक विभाजन करके, उनमें दरार पैदा करके चुनावी वैतरणी पार करना। अपने इसी दुष्प्रचार को विश्वसनीय बनाने के लिए अब भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को इस काम में लगा दिया है। लेकिन झारखण्ड की जनता इन सारे सांप्रदायिक खेल को समझ रही है इसलिए लोकसभा चुनाव से शुरू हुआ भाजपा की हार का सिलसिला झारखंड में रुकने वाला नहीं है।
शिक्षा
छत्तीसगढ़ में किफायती व्यवस्था के नाम पर शिक्षा के विनाश पर तुली सरकार
भाजपा पिछले 10 वर्षों से लगातार शिक्षा पर हमला कर रही है। देश के बड़े और स्थापित विवि उसके निशाने पर रहे हैं लेकिन इधर पिछले कुछ वर्षों से भाजपा शिक्षा के प्रारम्भिक स्तर पर भी नजर गड़ाए हुए है। जुलाई में स्कूल खुलने पर उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा के अंतर्गत आने वाले अध्यापक निशाने पर थे। अब छतीसगढ़ में भाजपा की सरकार आ जाने के बाद नए स्कूल भवन बनाने, पुरानों का जीर्णोद्धार करने और शिक्षकों की भर्ती करने के बजाय भाजपा सरकार द्वारा युक्तियुक्तकरण के नाम पर स्कूलों को बंद करने और शिक्षकों का तबादला करने का अभियान चलाया जा रहा है। जबकि यहाँ प्राथमिक विद्यालयों में अनेक चुनौतियाँ हैं, जिनसे निपटना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए लेकिन यह उसे खत्म करने की साजिश में लगे हुए हैं।
राजनीति
बुद्धदेव भट्टाचार्य : हाशिए के समाजों का भरोसेमंद नेता
कॉमरेड बुद्धदेव भट्टाचार्य ग्यारह वर्ष तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन उन्होंने हमेशा अपने को एक मेहनतकश मजदूर से ज्यादा कुछ नही समझा। अपने जीवन को मेहनतकशों के जीवन का ही हिस्सा मानते थे, मेहनतकशों की जीवन संस्कृति ही उनकी संस्कृति थी।
राष्ट्रीय
मजदूरों की आवाज के लिए बना ट्रेड यूनियन, आज फासीवाद के दौर में खुद संघर्ष कर रहा है
मार्क्स का नारा था - दुनिया के मजदूरों एक हो। इस नारे की सबसे बड़ी पूंजीवादी आलोचना यही है कि हमारे देश में मजदूर जब किसी एक संगठन के नीचे नहीं हैं, तो दुनिया के मजदूर कैसे एक होंगे? लेकिन मार्क्स के इस नारे का अर्थ मजदूरों के किसी एक संगठन के नीचे एकत्रित होने का नहीं है। इस नारे का वास्तविक अर्थ यही है कि दुनिया के स्तर पर साम्राज्यवाद के खिलाफ और अपने-अपने देशों के भीतर सरकारों की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष में मजदूर एकजुट हों। आज भारत अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी की तानाशाही की जकड़ में है, कॉर्पोरेट और हिंदुत्व के गठबंधन ने देश की अस्मिता को दांव पर लगा दिया है, संवैधानिक संस्थाएं चरमरा रही है और एक फासीवादी तानाशाही का खतरा देश के दरवाजे पर खड़ा है।
पूर्वांचल
छत्तीसगढ़: राष्ट्रवाद की चाशनी में लिपटा कॉर्पोरेटपरस्त और चुनावी जुमलेबाजी वाले बजट में किसानों-मजदूरों के लिए कुछ नहीं
असल में मोदी गारंटी के नाम पर जितनी भी लोक-लुभावन घोषणाएं बजट में की गई हैं, उनका असली उद्देश्य आम जनता को फायदा पहुंचाना नहीं, केवल चुनावी लाभ बंटोरना है। इसलिए इन योजनाओं में पात्रता के नाम पर ऐसी शर्तें थोपी जा रही हैं, जिससे अधिक से अधिक लोग इन योजनाओं के दायरे से ही बाहर हो जाए।
पूर्वांचल
छत्तीसगढ़ में जमीनों पर जबरदस्ती कब्जे हेतु आदिवासी निशाने पर
विकास के नाम पर आज पूरे देश में किसान और आदिवासियों की जमीनों पर सरकार की नज़रें हैं। केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें सभी का विकास मॉडल किसान और आदिवासियों को उनकी जमीनों से विस्थापित कर गुजरता है। उनके द्वारा किये जा रहे शांतिपूर्ण विरोध से सरकार इतनी डरी हुई है कि आन्दोलनकारियों को उत्पीड़ित कर डरा रही है।