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#bans shilp kala
छत्तीसगढ़ के बसोड़ जिनकी कला के आधे-अधूरे संरक्षण ने नई पीढ़ी की दिलचस्पी खत्म कर दी है
अपर्णा -
कोसमनारा में कुल 45 परिवार बांस से बनाए जाने वाले सामान बनाते हैं लेकिन आज भी वे अपने उत्पादों का समुचित लाभ नहीं उठा पाते। गनपत लाल बताते हैं कि ‘बांस का पारंपरिक काम करने वाले अनेक लोग गाँव के व्यापारियों के चंगुल में फंस जाते हैं जिससे वे अपने उत्पाद औने-पौने दाम पर बेच देते हैं। यह इस पर भी निर्भर है कि किसकी गर्दन कितनी फांसी है। मतलब जब बसोड़ किसी तरह की मदद या काम-परोजन के लिए इन व्यापारियों से कर्ज़ लेते हैं, तो उन्हें एक शर्त माननी ही पड़ती है।

