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जाने कब से जमीन तलाश रही है बांस की खपच्चियों में उलझी हुई ज़िंदगी
यही झोंपड़ा उसका घर है, पर इसे घर भी भला कैसे कहा जा सकता है? बस पन्नियों का एक पर्दा भर है, इंसानों से भी और आसमान से भी। पन्नियों को ही पर्दे सा घेर लिया गया है और फिलहाल यही इनका घर है।
छत्तीसगढ़ के बसोड़ जिनकी कला के आधे-अधूरे संरक्षण ने नई पीढ़ी की दिलचस्पी खत्म कर दी है
अपर्णा -
कोसमनारा में कुल 45 परिवार बांस से बनाए जाने वाले सामान बनाते हैं लेकिन आज भी वे अपने उत्पादों का समुचित लाभ नहीं उठा पाते। गनपत लाल बताते हैं कि ‘बांस का पारंपरिक काम करने वाले अनेक लोग गाँव के व्यापारियों के चंगुल में फंस जाते हैं जिससे वे अपने उत्पाद औने-पौने दाम पर बेच देते हैं। यह इस पर भी निर्भर है कि किसकी गर्दन कितनी फांसी है। मतलब जब बसोड़ किसी तरह की मदद या काम-परोजन के लिए इन व्यापारियों से कर्ज़ लेते हैं, तो उन्हें एक शर्त माननी ही पड़ती है।

