मनुष्य के सामाजिक सरोकार का सबसे सशक्त माध्यम है उसकी मातृभाषा। शैशवास्था से युवावस्था तक मातृभाषा के साथ सांस्कृतिक धरोहर विरासत के रूप में प्राप्त हो जाती है। हम सभी की मातृभाषा ही हमारे भावनात्मक और वैचारिक अभिव्यक्ति का सहज और सुगम माध्यम है। लगभग 5 दशकों से भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की जाती रही है लेकिन किसी भी सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया।