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casteism in haryana
अपना कोई गाँव नहीं था लेकिन पूरा बचपन गाँवों में ही बीता
दलित समाज से जुड़े़ लेखक अपनी आत्मकथाएं लिख रहे हैं। इन आत्मकथाओं में दलित जीवन व दलित समाज से जुड़े़ जातीय भेदभाव को मूल रूप से उजागर किया है। जहां तक लेखिकाओं की आत्मकथाओं का सवाल है तो वहां भी जाति के साथ-साथ लिंग भेद अपने मुखर रूप में मौजूद रहता है। कवि-आलोचक ईश कुमार गंगानिया ने हरियाणा के विभिन्न गाँवों में बीते अपने बचपन की सहज कहानी कही है।

