मंदिर हमारे सामुदायिक जीवन का भाग हैं। सामाजिक प्रतिमानों में परिवर्तन के साथ मंदिरों में वस्त्र-संबंधी मर्यादाओं में भी बदलाव आवश्यक है। इनका विरोध करना घड़ी की सुइयों को विपरीत दिशा में घुमाने जैसा होगा। धर्म के नाम पर होने वाली राजनीति में प्रायः हमेशा सामाजिक बदलावों और राजनैतिक मूल्यों में परिवर्तन का विरोध होता है।