Saturday, July 27, 2024

राम पुनियानी

लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं

दुकानों पर नाम प्रकरण : निशाने पर पसमांदा मुसलमान, सुप्रीम कोर्ट ने लोकतन्त्र की हिमायत की

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की भाजपा सरकारों ने जिस तरह से काँवड़ यात्रा की राह में पड़ने वाली दुकानों, ठेलों और होटलों पर मालिक के नाम की तख्ती अथवा फ़्लेक्स लगाने का फरमान जारी किया वह निश्चित रूप मेहनतकश पसमांदा मुसलमानों को निशाने पर लेने का प्रयास था। यह 2024 के चुनाव में घुटनों के बल आई भाजपा की हताशा को दर्शाता है। लेकिन इससे भी बढ़कर विकराल होती बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों को उलझाने का षड्यंत्र भी है। भाजपा को लगता है कि इस तरह के नैरेटिव बनाकर वह न सिर्फ हिंदू दूकानदारों बल्कि रोजगार की उम्मीद में उम्रदराज़ हो रहे युवाओं को भी खुश कर देगी। यह एक खतरनाक कदम था जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाम लगाया।

मानसिक विचलन और असुरक्षा की ज़मीन पर फूलता-फलता बाबावाद

अनुयायियों का असुरक्षा वाला पहलू उनके मनोविज्ञान को समझने की कुंजी है। असुरक्षा जितनी अधिक होगी, बाबा के प्रति समर्पण उतना ही अधिक होगा, अनुयायी सामान्य ज्ञान या तर्कसंगत सोच को पूरी तरह से दरकिनार कर देंगे। असुरक्षा के पहलू को तब ठीक से समझा जा सकता है जब हम वैश्विक परिदृश्य को देखें। जिन देशों में आर्थिक और सामाजिक असुरक्षा कम है, वहां धर्मों के सक्रिय अनुयायियों में गिरावट देखी जा रही है।

वर्ष 2014 से देश में चल रहा है अघोषित आपातकाल

पिछले दस वर्षों से केंद्र सरकार जिस तरह से देश में उनके खिलाफ बोलने, लिखने या आंदोलनकारियों को पकड़-पकड़ कर जेल में डालते हुए उन्हें राष्ट्रद्रोही घोषित कर रही है, वह किसी आपातकाल से कम नहीं है। बल्कि यह उस आपातकाल से भी ज्यादा खतरनाक और हिंसक है।

क्यों लगता है कि नालंदा महाविहार को बख्तियार खिलजी ने नष्ट किया था?

देश में हिंदुतव को लेकर जो माहौल चल रहा है, उसमें मुसलमानों को कटघरे में खड़े करने में संघ ने कभी कोई परहेज नहीं करेगा। अभी हाल में नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया और अपने भाषण में प्राचीन विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को जलाकर नष्ट करने का आरोप बख्तियार खिलजी पर लगाया क्योंकि वह मुसलमान था। लेकिन इतिहास के प्रमाण कुछ और ही बात साबित करते हैं। पढ़िए यह लेख

पिता, पुत्र और हिंदुत्व के एजेंडे की ओर ठेलमठेल

आरएसएस के एक शीर्ष पदाधिकारी इंद्रेश कुमार ने भी कहा कि अहंकार के कारण भाजपा की सीटों में गिरावट आई है। आरएसएस ने तुरंत इस बयान से पल्ला झाड़ लिया और इंद्रेश कुमार ने इसे वापस लेते हुए प्रमाणित किया कि केवल मोदी के नेतृत्व में ही भारत प्रगति कर सकता है। कई टिप्पणीकारों ने डॉ. भागवत के बयान को आरएसएस और भाजपा के बीच दरार के संकेत के रूप में लिया है।

एनडीए सरकार के हिन्दू राष्ट्रवाद का निशाना बनते मुसलमान

पिछले दस वर्षों के दो कार्यकाल में मोदी ने ध्रुवीकरण को करने के लिए साम-दंड-भेद सभी तरीके अपनाए, वह सामने है। मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक ज़हर से भरे हुए भाषण, उनके पहनावे, खान-पान, बुर्का-हिजाब, गाय की तस्करी को लेकर हुई मॉब लिंचिंग, लव जेहाद, सीएए/एनआरसी जैसे अनेक मामले सामने आए। तीसरे कार्यकाल में मुसलमानों की सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक स्थिति में कितना और कैसा बदलाव होगा? समय के साथ सामने आएगा।

क्या पूरी दुनिया में गांधी की पहचान रिचर्ड एटनबरो की फिल्म ‘गांधी’ से हुई?

28 मई को नरेंद्र मोदी ने मीडिया से बातचीत करते हुए बहुत ही हास्यास्पद बयान दिया कि महात्मा गांधी की पहचान के लिए हमारे देश ने पिछले 75 वर्षों में कुछ भी नहीं किया, इस चुनाव से पहले मोदी ने कभी भी प्रेस का सामना नहीं किया, लेकिन अभी के लोकसभा चुनाव में भाजपा की स्थिति को देखते हुए उन्होंने लगभग 70-72 चैनल, अखबारों और पत्रिकाओं को इंटरव्यू दिये, जिसमें कोई भी महत्त्वपूर्ण बात नहीं कही बल्कि अपने पद की गरिमा के खिलाफ जाते हुए इस तरह के प्रतिकूल व गैरजिम्मेदाराना बयान ही दिये।

नरेन्द्र मोदी : तानाशाही से देवत्व की ओर

गुजरात का मुख्यमंत्री रहने के दौरान से ही नरेन्द्र मोदी की छवि को एक करिश्माई नेता की बनाने का जो प्रयास शुरू हुआ, अब वह देवत्व तक आ चुका है।

भाजपा-आरएसएस के राजनैतिक संबंध आज भी पिता-पुत्र की भांति हैं – जेपी नड़ड़ा

वर्ष 2014 से केंद्र में आरएसएस पोषित भाजपा शासन कर रही है। अब वर्ष 2024 में तीसरी बार सरकार बनाने के लिए मशक्कत कर रही है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड़ड़ा ने साफ़तौर पर यह कहा कि लोग अपने मन इस भ्रम को मिटा दें कि इस चुनाव में आरएसएस भाजपा को किसी तरह से कोई सपोर्ट नहीं कर रहा है।

क्या मोदीजी कांग्रेस के न्याय पत्र से डर गए हैं?

विगत कई जनसभाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के घोषणापत्र के खिलाफ तथ्यहीन बातें की हैं क्या वह उनकी संभावित हार और अपने विकास कार्यों के प्रति जनता के अविश्वास का नतीजा है। आखिर वह क्यों इतनी अनर्गल और सांप्रदायिक बातें कर रहे हैं?

बाबाओं के इलाज को खतरनाक बताया सुप्रीम कोर्ट ने

आज हमारे देश में तार्किक सोच और पद्धतियों से परे केवल आस्था पर आधारित ज्ञान का ढोल पीटा जा रहा है। अनेक बाबा इस काम को अंजाम दे रहे हैं लेकिन शैक्षणिक संस्थाओं में भी आस्था आधारित ज्ञान विद्यार्थियों के दिमाग में ठूँसने का काम किया जा रहा है।

इस्लामोफोबिया अन्य धर्मों के प्रति फोबिया से इतना अलग क्यों?

दुनिया भर में जितना इस्लामोफोबिया की चर्चा होती है, उतनी अन्य धर्मों के फोबिया की नहीं जबकि अलग-अलग देशों में प्रचलित और हावी धर्मों के फोबिया का सामना लोगों को करना पड़ता है। क्यों इस्लामोफोबिया अन्य धर्मों के फोबिया से इतना अलग है पढ़िये इस लेख में 

विघटनकारी नैरेटिव को मजबूती देते हुए, सच को तोड़-मरोड़ कर दिखाती फिल्म स्वातंत्र्यवीर सावरकर 

वर्ष 2014 के बाद, जब से लोगों के दिमाग में राष्ट्रवादी विचारधारा ज्यादा मजबूती से हावी हुई है, तब से समाज के सांस्कृतिक परिदृश्य में इसका प्रभाव भी बढ़ा है। जिसमें एक माध्यम सिनेमा भी है, जिसके माध्यम से जनता सबसे ज्यादा अपने ज्ञान को समृद्ध करने पर विश्वास करती है। अभी हाल में ही रणदीप हुड्डा की फिल्म स्वातंत्र्यवीर सावरकर रिलीज हुई है, जिसमें सावरकर को झूठे तथ्यों के साथ महान बताया गया है। 

लोकसभा चुनाव : भाजपा के चार सौ पार दावे की असलियत क्या है?

भाजपा अपने बल पर 2014 से सत्ता में है और तब से उसने कई बार संविधान की उद्देशिका का प्रयोग, उसमें से धर्मनिरपेक्ष व समाजवादी शब्द हटाकर किया है। अबकी लोकसभा चुनाव में भाजपा, 400 पार का नारा दे रही है। उनके सांसद अनंत कुमार हेगड़े ने यह बयान दिया कि लोकसभा में 400 सीटें आने पर भारतीय संविधान में संशोधन आसानी से किया जा सकता है। क्या संविधान में संशोधन करना इतना आसान होगा? यह आने वाला समय ही बता पाएगा ।

बीजेपी सरकार में तार्किक सोच और वैज्ञानिक पद्धति का अभाव

कोई भी समाज वैज्ञानिक पद्धति और तार्किकता के आधार पर ही आगे बढ़ सकता है । वर्तमान बीजेपी सरकार से वैज्ञानिकों के एक समूह ने संयुक्त बयान जारी कर अनुरोध किया है कि वह वैज्ञानिक सोच और पद्धति को अपने क्रिया कलापों से कमजोर करने से बाज आए।

मंदिर आयोजनों में मोदी की व्यस्तता उपनिवेशवाद से मुक्ति नहीं है

किसी भी समाज का विकास लोगों को रोजगार देने, रोजगार के नए अवसर पैदा करने से होता है।बजाय मंदिर और मस्जिदों के उद्घाटन करने के। मोदी इन दिनों लगातार देश और विदेश में मंदिर उदघाटन कर रहे हैं, जो उपनिवेशवाद की तरफ बढ़ता एक कदम है।

आम चुनाव के बीच क्या है भारतीय मुसलमानों के समक्ष विकल्प

जैसे-जैसे 2024 के आमचुनाव नजदीक आ रहे हैं, कुलीन वर्ग के कुछ मुसलमान अपने समुदाय से अपील कर रहे हैं कि भाजपा के बारे...

अनुसूचित जनजातियां आदिवासी हैं या वनवासी?

आदिवासी इलाके देश के सबसे गरीब क्षेत्रों में शामिल हैं और पिछले दो दशकों में वहां आदिवासियों के विरुद्ध हिंसा में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। आंकड़ों से पता चलता है कि यह हिंसा बड़े पैमाने पर नहीं हो रही है परंतु यह लगातार जारी है

लोगों पर शाकाहार थोपना एक राजनैतिक एजेंडा

आज राजनैतिक कारणों से इस सोच को बढ़ावा दिया जा रहा है कि मांसाहार करने वाले नफरत के पात्र हैं। हम बिना अतिश्योक्ति के खतरे के कह सकते हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय को खलनायक सिद्ध करने के लिए शाकाहार का सामाजिक और राजनैतिक हथियार के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।