भारत जैसे विकासशील देश के ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। जिसके कारण परिवार के पुरुष रोजगार की तलाश में शहरी क्षेत्रों में पलायन को मजबूर हैं। वर्ष 2024-2025 के बजट में केंद्र सरकार ने मनरेगा समेत रोजगार के कई क्षेत्रों में बजट आवंटन को बढ़ाया है। लेकिन इसके बाद भी सरकार को चाहिए कि गाँव में ही रोजगार के ऐसे संसाधन उपलब्ध कराये ताकि उन्हें शहर जाने की जरूरत ही न पड़े।
विस्थापन का एक बड़ा कारण विकास परियोजना के अंतर्गत बड़े-बड़े बांधों का निर्माण है। सरकार द्वारा भले ही बहूद्देशीय बांध बनाए जा रहे हैं लेकिन आदिवासियों का विस्थापन उन्हें विकास की श्रेणी से अनेक साल पीछे धकेल दे रहा है। केवल बांधों से विस्थापित होने वाले आदिवासियों की जनसंख्या 2 से 5 करोड़ तक है
विकास के नाम पर देश के हर हिस्से में गरीब, आदिवासी, दलित, पिछड़े समाज को किसी ना किसी रूप में विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है। इस विस्थापन में अक्सर विस्थापित होने वाले परिवार के वाजिब हक की भरपाई करने में भी सरकारी तंत्र आनाकानी करता दिखता है। यह विस्थापन शहर की गलियों से होता हुआ अब जंगलों तक जा पहुंचा है। मध्य प्रदेश के नौरादेही अभयारण्य में भी अब विस्थापन की तलवार चलाई जा रही है। विस्थापन की इस त्रासदी पर सतीश भारतीय की रिपोर्ट -