दीपक शर्मा
लेखक युवा कहानीकार हैं और वाराणसी में रहते हैं।
सामाजिक न्याय
सावित्रीबाई फुले : स्त्री शिक्षा के लिए ब्राह्मणवाद और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ डटकर लड़ीं
आज सावित्री बाई फुले की 194 वीं जयंती है। 1848 में जब सावित्रीबाई ने पहली बार लड़कियों के विद्यालय की शुरुआत की, उस समय ब्रह्मणवाद अपने चरम पर था। ब्रह्मणवाद आज भी खत्म नहीं हुआ है लेकिन उन दिनों उसका मुकाबला करना आज से ज्यादा मुश्किल और कठिन था। तब भी उन्होंने विद्यालय खोला। उन दिनों किसी महिला का, वह भी पिछड़े समाज से आने वाली के लिए साहस का काम था। आज तो पूरे देश में लाखों विद्यालय होंगे, जहां लड़कियां पढ़ रही हैं और पढ़ा भी रही हैं। सब इनके द्वारा शुरू किए गए काम का परिणाम है।
संस्कृति
भिखारी ठाकुर – जिन्होंने अपने रंगकर्म का सरोकार ग्रामीण स्त्रियों के दुःख से जोड़ दिया
भिखारी ठाकुर स्त्री के पक्ष में न्याय करते नहीं दिखते, इसके पीछे कारण यह है कि उन्होंने समाज की सच्चाई को यथार्थ उजागर किया है। उस समय के समाज में पितृसत्ता की ऐसी ही धमक थी। वे समाज के बीच रहकर समाज की समस्या को पढ़ते थे और उनके चरित्र को नाटकों के माध्यम से समाज में अभिव्यक्त करते थे।
सामाजिक न्याय
विकास के नाम पर आदिवासी अपने मूल स्थान से लगातार विस्थापित किए जा रहे हैं
विस्थापन का एक बड़ा कारण विकास परियोजना के अंतर्गत बड़े-बड़े बांधों का निर्माण है। सरकार द्वारा भले ही बहूद्देशीय बांध बनाए जा रहे हैं लेकिन आदिवासियों का विस्थापन उन्हें विकास की श्रेणी से अनेक साल पीछे धकेल दे रहा है। केवल बांधों से विस्थापित होने वाले आदिवासियों की जनसंख्या 2 से 5 करोड़ तक है
लोकल हीरो
रामदास राही जिन्होंने भिखारी ठाकुर की यादों को सँवारने में जीवन लगा दिया
भिखारी ठाकुर के नाट्य शैली को लौंडा नाच कहने वाला जेएनयू का एक शोधार्थी जैनेन्द्र दोस्त है जो कि महाथेथर है। उसने ही रामचंद्र माझी को पाँच हजार रुपया देकर दिल्ली में अश्लीलतापूर्वक नचवाया था। अभिनय और कला की बहुत-सी भाव भंगिमाएं होती है जिसका ज्ञान सबको नहीं है। जगदीशचंद्र माथुर ने भिखारी ठाकुर को भरत मुनि के परंपरा का नाटककार कहा है और राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें अनगढ़ हीरा कहा।
सिनेमा
सताये गए लोगों की लंबी चीख है फिल्म ‘जय भीम’
फिल्म भीम स्टार वैल्यू के कारण चर्चा में आई। तमिल फिल्मों के चर्चित अभिनेता सूर्या शिवकुमार फिल्म के केंद्र में हैं जिन्होंने वकील चंद्रू की भूमिका निभाई है। गौरतलब है कि चंद्रू मद्रास हाईकोर्ट में न्यायाधीश थे। यह उनके जीवन के उन प्रारम्भिक दिनों की एक सच्ची घटना पर आधारित है, जब वे वकालत करते थे।