पिछले कई सालों में पारंपरिक रूप से बनारस के घर-घर में चलने वाला करघा उद्योग, व्यापार, गली और मंदिर तोड़ दिए गए हैं। बनारस की समृद्ध विरासत को खत्म किया जा रहा है। बनारसी साड़ियों पर भी इसका असर देखने को मिला है। बनारसी साड़ी बनाना सामूहिक काम है, इस वजह से जब से साड़ियों का बाजार मंदा हुआ है, उससे जुड़े हर कारीगर अपनी रोजी के लिए भटक रहा है। इससे साड़ी का धागा रंगने वाले (रंगरेज) का काम भी कम हुआ है। सवाल यह है कि जब साड़ी बनाने वाले हर कारीगर मंदी की मार सह रहे हैं, ऐसे में गिरस्ता और बड़े व्यवसायी कैसे दिनों-दिन अमीर होते जा रहे हैं।?